पटना: बिहार के गोपालगंज जिले में एक नहीं दो-दो जिलाधिकारियों का मर्डर हो चुका है. जिनमें 1983 में गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी महेश प्रसाद नारायण शर्मा और 1994 में डीएम जी. कृष्णैया का नाम शामिल है. दरअसल गोपालगंज के तत्कालीनजिलाधिकारी जी कृष्णैयाकी जब हत्या हुई थी तो उसी वक्त गोपालगंज जिला चर्चा में आया था. जी कृष्णैया की हत्या 1994 में हुई थी. इससे करीब 11 साल पहले भी गोपालगंज एक ऐसे इतिहास को लिख चुका था, जिसको लेकर उसकी पूरे देश विदेश में चर्चा हुई थी. हालांकि यह चर्चा किसी अच्छे संदर्भ में नहीं बल्कि बहुत बड़ी घटना के रूप में गोपालगंज के इतिहास में हमेशा हमेशा के लिए दर्ज हो गई थी.
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तत्कालीन डीएम महेश प्रसाद की हत्याः1994 से ठीक 11 साल पहले 11 अप्रैल 1983 को गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी महेश प्रसाद नारायण शर्मा की भी हत्या कर दी गई थी. महेश प्रसाद नारायण शर्मा की हत्या कहीं और नहीं बल्कि समाहरणालय की सीढ़ियों पर ही कर दी गई थी, जब वह अपने ऑफिस में मौजूद थे. जानकारी के अनुसार तब जगन्नाथ मिश्र राजधानी पटना में केंद्र सरकार की एक विशेष योजना के बारे में जानकारी देने के लिए अपनी पूरी तैयारी कर रहे थे, उसी दौरान एक ऐसी खबर पटना पहुंची, जिसके बाद सारा महकमा हिल गया और सभी लोग सकते में आ गए. हुआ यूं कि 11 अप्रैल की दोपहर करीब 1 बजे तत्कालीन डीएम महेश प्रसाद अपने घर जाने के लिए गोपालगंज समाहरणालय की ऑफिस से बाहर निकले. उनके ठीक पीछे उनका अर्दली हरिशंकर राम चल रहा था, जबकि उनके भाई परेश प्रसाद थोड़ी दूरी पर थे. एक और शख्स था जो डीएम महेश प्रसाद की हर गतिविधि पर बारीकी से नजर रखे हुए था और अनजान बनकर डीएम के साथ-साथ चल रहा था.
डीएम महेश प्रसाद पर फेंका गया बमः घर जाने के लिए डीएम महेश प्रसाद अभी सीढ़ियों से कुछ ही दूर तक नीचे उतरे थे. तभी उस अनजान शख्स ने अपने कंधे पर टंगे हुए झोले से एक बम निकाला और डीएम के ऊपर चला दिया. बम लगते ही डीएम महेश प्रसाद की चिथड़े उड़ गए और मौके पर ही उनकी मौत हो गई. इधर बम की आवाज से पूरा जिलाधिकारी कार्यालय दहल उठा. आसपास के लोग भी सहम गए लेकिन किसी को तब तक समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर हुआ क्या है? इसके बाद डीएम के भाई परेश प्रसाद जो उनके साथ ही चल रहे थे, उन्होंने जोर से चिल्लाकर यह कहा कि इसने मेरे भाई को मारा है.
संत ज्ञानेश्वर के शिष्य ने फेंका था बमःउधर परेश प्रसाद के इतना कहते ही बम चलाने वाला शख्स ऑफिस से निकल कर सामने की सड़क की तरफ भागा लेकिन जिला बोर्ड ऑफिस के करीब उसे पकड़ लिया गया. जिसके बाद भीड़ ने उसकी पिटाई करनी शुरू कर दी. लोगों की भीड़ उसकी जान लेने पर उतारू थी, जब उसका नाम पूछा गया तो उसने अपना नाम परमहंस यादव बताया. जब भीड़ उसकी पिटाई कर रही थी तभी उसने चिल्लाकर कहा कि तुम लोग मुझे क्यों मार रहे हो? मैंने तो संत ज्ञानेश्वर के कहने पर डीएम के ऊपर बम फेंका है. परमहंस यादव के द्वारा यह बात कहने के साथ ही मौके पर उपस्थित सभी लोगों की पैरों तले जमीन खिसक गई और सब भौंचक हो गए.
संत ज्ञानेश्वर पर हत्या कराने का आरोपःदरअसल संत ज्ञानेश्वर वही संत था, जिसके आश्रम में महिला और पुरुष को एक साथ रहने की अनुमति थी और संत ज्ञानेश्वर के आगे पीछे महिला भक्तों की भीड़ रहती थी. शुरुआती जांच में यह पता चला है कि हमलावर परमहंस ने जो बात कही थी वह बिल्कुल सही थी और परमहंस ने जो बम डीएम के ऊपर फेंका था, वह बम उसे किसी सादिक मियां नाम के आदमी ने दिया था. हमले की खबर सुनते ही तत्कालीन पुलिस इंस्पेक्टर रामचंद्रिका शर्मा मौके पर पहुंचे और उन्होंने मृत डीएम के भाई का फर्ज बयान दर्ज किया. इसके बाद गोपालगंज के तत्कालीन डीएसपी भी वहां पहुंचे और उन्होंने जांच अपने हाथों में ले ली.
संत ज्ञानेश्वर मूल रूप से यूपी का थाः जांच के क्रम में यह भी सामने आया था कि जब पुलिस ने स्निफर डॉग की मदद ली तो पुलिस के कुत्ते ने डीएम के पास रखे सामानों को सूंघकर परमहंस यादव के पास जाकर उसे पकड़ लिया था. परमहंस यादव ने जो कपड़ा उस वक्त पहना था, उन कपड़ों से भी तब विस्फोटक की गंध आ रही थी. जानकारी के अनुसार संत ज्ञानेश्वर मूल रूप से बिहार का रहने वाला नहीं था बल्कि वह गोपालगंज से सटे उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के बघौचघाट का निवासी था. संत ज्ञानेश्वर का असली नाम सदानंद त्रिपाठी था. उसका बचपन बहुत तंग हाल में गुजरा था. बड़ा होने पर जीवन यापन करने के लिए उसने स्थानीय बसों में कंडक्टरी करना शुरू किया, साथ ही साथ वो पढ़ाई भी करता था. उसने आगे चलकर कानून की डिग्री भी हासिल कर ली लेकिन उसके दिल और दिमाग में कुछ और चल रहा था.
संत ज्ञानेश्वर ने वकालत की डिग्री भी हासिल की थीः जानकार बताते हैं कि संत ज्ञानेश्वर अमीर और ख्याति अर्जित करना चाहता था. सदानंद त्रिपाठी उर्फ संत ज्ञानेश्वर ने वकालत की डिग्री हासिल करने के बाद कुछ समय के लिए देवरिया के जिला न्यायालय में अभ्यास भी किया और उसके बाद उसने धर्म का प्रचार शुरू कर दिया इस दौरान वह कई जगहों पर प्रवचन भी देता रहा. उत्तर प्रदेश में ही रहने के दौरान 1971 में उसकी शादी भी हो गई थी लेकिन शादी के तीन साल बाद ही वह अपने घर से भाग गया और ठीक तीन साल बाद जब सदानंद त्रिपाठी दुनिया के सामने आया तो उसका रूप बदल चुका था.
सदानंद त्रिपाठी से बना संत ज्ञानेश्वरःअब दुनिया वालों के सामने वह सदानंद त्रिपाठी नहीं बल्कि संत ज्ञानेश्वर था. ऐसा संत जो प्रवचन देता था, धर्म और कर्म की बात करता था. संत ज्ञानेश्वर बनने के बाद सदानंद त्रिपाठी उत्तर प्रदेश और बिहार के साथ ही पड़ोसी देश नेपाल में भी अपने प्रवचन को देने लगा. दरअसल एक संत के रूप में ख्याति मिलने के बाद सदानंद त्रिपाठी उर्फ संत ज्ञानेश्वर उच्छृंखल हो गया था. हालांकि कालक्रम में उसके भक्तों की भीड़ भी बढ़ने लगी थी. कई ऐसे लोग उसके भक्तों में शामिल हो रहे थे जो सरकारी नौकरी भी कर रहे थे.
मीरगंज थाना अंतर्गत बनाया था आश्रम:जानकार बताते हैं कि तब संत ज्ञानेश्वर ने जिले के मीरगंज थाना अंतर्गत भागवत परसा में अपना आश्रम बनाया हुआ था. हालांकि अब भागवत प्रसाद फुलवरिया थाना अंतर्गत आता है. आश्रम बनने के बाद यह भी सूचनाएं सामने आने लगी कि यहां पर अनैतिक कार्य भी होते हैं, साथ ही साथ आश्रम के माध्यम से सरकारी जमीन पर दखल भी किया जा रहा है. चर्चा यहां तक थी कि संत ज्ञानेश्वर ने जिस आश्रम को बनाया था वह आश्रम सरकारी जमीन पर ही था और सरकारी जमीन को दखल करके आश्रम बनाया गया था. संत ज्ञानेश्वर की गतिविधियां चलती रही और उसकी आश्रम की भी ख्याति बढ़ती जा रही थी. आश्रम में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या भी लगातार बढ़ रही थी.
आश्रम में अनैतिक गतिविधियां होती थी संचालितः इसी क्रम यह बात भी सामने आने लगी कि आश्रम में रहने वाले संत ज्ञानेश्वर के चेलों की नजर सरकारी जमीन पर है और वह उसे बारी-बारी से सुनियोजित तरीके से कब्जे में ले रहे हैं. इतना ही नहीं स्थानीय निवासियों ने भी यह शिकायत करनी शुरू कर दी कि आश्रम में रहने वाले श्रद्धालु अक्सर उनसे मारपीट भी करते हैं. हालांकि इसी क्रम में एक और बात भी सामने आई जिससे पूरा प्रशासन हिल गया. जानकारों की माने तो तब एक तत्कालीन एसडीएम भी अपने पूरे परिवार के साथ संत ज्ञानेश्वर के शिष्य बन गए थे. जिसके बाद सरकारी अमला हरकत में आया. हालांकि सरकारी अमले के पास यह जानकारी तब तक मिल चुकी थी कि आश्रम में अनैतिक गतिविधियां संचालित की जा रही है.
आश्रम से आपत्तिजनक चीजें हुईं थी बरामदःस्थानीय निवासियों की तरफ से अनैतिक कार्यों के बारे में मिल रही लगातार शिकायत के बाद सरकारी अमला हरकत में आया और 10 जुलाई 1982 को पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों ने संत ज्ञानेश्वर के बहुचर्चित आश्रम पर एक साथ छापा मारा. जानकार बताते हैं कि उस आश्रम में प्रशासन को बहुत सारी आपत्तिजनक चीजें बरामद हुई. यहां तक कि असलहा और बम भी मिला. इसके साथ ही आश्रम में संत ज्ञानेश्वर की 26 शिष्याएं भी सामने आई थीं, जिसके बाद प्रशासन ने कार्रवाई करते हुए संत ज्ञानेश्वर और उसके चेलों को गिरफ्तार कर लिया और उसे जेल भेज दिया. डीएम के आदेश पर छापा मारने के पांचवे दिन संत ज्ञानेश्वर के बहुचर्चित आश्रम को नेस्तनाबूद कर दिया गया. खास बात यह है कि इतना कड़ा निर्णय लेने वाले डीएम महेश प्रसाद नारायण प्रसाद ही थे.
संत ज्ञानेश्वर पर गोपालगंज में थे 16 मामले दर्जः जानकार यह भी बताते हैं कि तब कथित संत ज्ञानेश्वर के ऊपर गोपालगंज में हत्या, लूट, प्रताड़ना, चोरी, मारपीट और जमीन पर जबरन कब्जा करने के 16 मामले दर्ज थे. उसने जो आश्रम बनाया था. उसका नाम अमर पुरी आश्रम रखा गया था. हत्या के बाद आरोपी परमहंस यादव ने कहा था कि उसने अपने गुरु की सेवा के लिए अपने परिवार और दुनिया को त्याग दिया है. उसने यह भी कहा था कि मैंने अपने गुरु के आग्रह पर जिलाधिकारी की हत्या कर दी. उसे स्थानीय जिला जेल से उस बम की आपूर्ति की गई थी, जहां परमहंस यादव के कथित गुरु संत ज्ञानेश्वर को कैद रखा गया था.
निचली अदालत ने संत ज्ञानेश्वर को दोषी ठहरायाःडीएम की हत्या की साजिश को रचने के आरोप में निचली अदालत ने संत ज्ञानेश्वर और परमहंस यादव को सुनवाई करने के बाद दोषी भी ठहरा दिया. निचली अदालत में इन दोनों को ही फांसी की सजा सुना दी. यहां तक की आरोपियों की तरफ से सुनवाई करने के लिए पटना हाईकोर्ट में जब मामला पहुंचा तो पटना हाईकोर्ट ने भी निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा. इसके बाद आरोपी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे, जहां सुप्रीम कोर्ट ने सुबूत के अभाव में संत ज्ञानेश्वर को तो बरी कर दिया लेकिन डीएम के ऊपर बम चलाने वाले परमहंस यादव की सजा को बरकरार रखा. परमहंस यादव ने अपनी फांसी की सजा माफ करने की याचिका राष्ट्रपति के पास भी भेजी लेकिन राष्ट्रपति की तरफ से किसी भी प्रकार का रहम नहीं किया गया और याचिका खारिज कर दी गई. अंततः 1988 में परमहंस यादव को भागलपुर जेल में फांसी पर लटका दिया गया.
सबूत को अभाव में सुप्रीम कोर्ट से हुआ बरीः जानकार बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट से बरी होने के बाद संत ज्ञानेश्वर उर्फ सदानंद त्रिपाठी ने बिहार को छोड़ दिया और अपना पूरा ध्यान पूर्वी यूपी पर केंद्रित कर लिया. संत ज्ञानेश्वर के रूप में वह फेमस होता जा रहा था. खास बात यह कि वह अपनी सुरक्षा में महिला कमांडो को लेकर चलता था. वाहनों के काफिले कई कई किलोमीटर तक लंबे होते थे. रुतबा ऐसा था कि किसी को भी कुछ कहने सुनने के लिए कई बार सोचना पड़ता था. संत ज्ञानेश्वर उर्फ सदानंद त्रिपाठी ने बनारस, अयोध्या समेत यूपी के कई शहरों में अपना आश्रम भी बना लिया था हालांकि उन आश्रमों को बनाने के पीछे भी कई कहानियां हैं.
2006 में कई शिष्यों के साथ संत ज्ञानेश्वर की हत्याः वहीं, 10 फरवरी 2006 को अचानक तत्कालीन इलाहाबाद के हंडिया इलाके के पास अचानक एक ऐसी खबर आई जिससे पूरे देश में सनसनी फैल गई. दरअसल खबर ये आई कि संत ज्ञानेश्वर उर्फ सदानंद त्रिपाठी की हंडिया कस्बे के पास स्थित बगहा रेलवे क्रॉसिंग पर हत्या कर दी गई है. तब संत ज्ञानेश्वर इलाहाबाद में आयोजित महाकुंभ में स्नान करने के लिए अपने पूरे काफिले के साथ बनारस से इलाहाबाद जा रहा थे. इसी बीच बगहा रेलवे क्रॉसिंग के पास संत ज्ञानेश्वर की गाड़ी को कुछ अपराधियों ने घेर लिया और उसे निशाना बनाते हुए एके-47 से गोलियों की बौछार कर दी. इस गोलीकांड में संत ज्ञानेश्वर तो मारा ही गया साथ ही साथ उसकी महिला शिष्य पूजा, नीलम, गंगा और पुष्पा के साथ उसके चेलों ओमप्रकाश, रामचंद्र और मिथिलेश की भी जान चली गई.