नई दिल्ली :कोरोना को लेकर ऐसा माना जा रहा है कि आने वाले पर्व व त्योहारों के मौसम के मद्देनजर यह जानलेवा वायरस फिर अपना स्वरूप बदल सकता है. दूसरी लहर की तरह क्या जनजीवन को प्रभावित कर सकता है और यदि हां तो ऐसी किसी भी प्रतिकूल परिस्थिति से निपटने की क्या तैयारी है.
इन्हीं मुद्दों पर नयी दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के निदेशक रणदीप गुलेरिया से कुछ सवालों के जवाब दिए हैं. जब उनसे पूछा गया कि राष्ट्रव्यापी टीकाकरण अभियान के तहत अब तक 101.30 करोड़ कोविड-19 रोधी टीके लगाए जा चुके हैं और देश में रोजाना 16 हजार के करीब संक्रमण के नए मामले सामने आ रहे हैं. इस स्थिति को आप कैसे देखते हैं?
गुलेरिया ने कहा कि टीकाकरण अब तो बहुत तेजी से हो रहा है और हम 100 करोड़ का आंकड़ा भी पार कर चुके हैं. वैज्ञानिकों, स्वास्थ्यकर्मियों और प्रशासकों की बदौलत हम इतनी जल्दी इस आंकड़े को पार कर पाए. अब हमारे यहां संक्रमण के मामले भी कम हो रहे हैं. अगर हम टीकाकरण अभियान को तेजी से बढ़ाते रहें और कुछ हफ्तों के लिए कोविड से बचाव के उपायों को अपनाते रहें तो वायरस को फैलने का मौका नहीं मिलेगा.
हम ऐसी स्थिति में पहुंच सकते हैं कि इस महामारी से जल्दी ही बाहर आ जाएं. हमें बहुत सतर्क रहने की भी जरूरत है क्योंकि वायरस अगर अपना रूप परिवर्तित कर ले तो हमारी स्थिति थोड़ी सी बिगड़ सकती है. इसलिए वायरस की निगरानी के साथ ही संक्रमण के मामलों की निगरानी करना भी जरूरी है. इसलिए टीकाकरण के साथ-साथ यदि बचाव के सभी एहतियातों को बरतें तो हम इस साल के अंत तक या अगले साल की शुरुआत में काफी अच्छी स्थिति में हो सकते हैं.
जिस प्रकार से यूरोपीय देशों में संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं और वायरस के नए स्वरूप भी सामने आ रहे हैं, भारत को कितना सतर्क रहने की आवश्यकता है? इसके जवाब में एम्स निदेशक ने कहा कि डेल्टा वायरस के नए स्वरूप एवाई.4.2 को लेकर कुछ लोगों को आशंका है कि वह कुछ ज्यादा संक्रामक है.
हमारे यहां जो आंकड़े उपलब्ध हैं, उसमें कहीं भी यह नहीं देखा गया कि एवाई.4.2 के मामले बढ़ रहे हैं. फिर भी पूरी तरह से सतर्क रहने की जरूरत है. कोई भी स्वरूप (वेरिएंट) हो, अगर हम कोविड से बचाव अनुकूल व्यवहार करेंगे तो उसको हम हम आगे फैलने नहीं देंगे. साथ ही टीका भी लगाते रहें. जहां भी मामले बढ़ रहे हैं, वहां अस्पतालों में भर्ती होने वालों और मरने वालों की संख्या में वृद्धि नहीं देखी जा रही है.
इसका यह मतलब है कि जिन्होंने टीके लगवाए हैं, उनको सुरक्षा मिली है. जिन लोगों ने टीके नहीं लगवाए हैं, उन्हें ही अस्पतालों में भर्ती होने की जरूरत पड़ी है. यूरोप में और रूस में टीकों को लेकर लोगों में अब भी हिचक देखने को मिल रही है. इसलिए टीके लगवाना और बचाव करना बहुत जरूरी है.