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उत्तराखंड विधानसभा में रखा गया कठोर धर्मांतरण विरोधी विधेयक, महिला आरक्षण बिल भी पेश - उत्तराखंड लेटेस्ट न्यूज

उत्तराखंड विधानसभा का शीतकालीन सत्र का आगाज हो गया है. सत्र 5 दिसंबर तक चलेगा. ऐसे में आज सत्र के पहले दिन सरकार ने सदन में अनुपूरक बजट पेश किया. वहीं, इस सत्र के पहले दिन प्रदेश में धर्मांतरण कानून को लेकर भी संशोधन किया गया है. इसके साथ ही सरकार की तरफ से महिला आरक्षण विधेयक भी सदन के पटल पर रखा गया.

anti-conversion bill
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Published : Nov 29, 2022, 6:46 PM IST

Updated : Nov 29, 2022, 7:08 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड विधानसभा के शीतकालीन सत्र 2022 के पहले दिन जहां सदन में ₹5440 करोड़ से अधिक का अनुपूरक बजट पेश किया गया, वहीं प्रदेश में धर्मांतरण कानून को लेकर संशोधन भी किया गया है. एक अधिक कठोर धर्मांतरण विरोधी विधेयक सदन में पेश किया गया. उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम 2022 में गैर-कानूनी धर्मांतरण को एक संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध बनाया गया है. कानून को और भी सशक्त बनाने के लिए इसकी सजा को 2 से लेकर 7 साल तक निर्धारित कर दिया गया है. अपराधी पर 25 हजार रुपये तक का जुर्माना भी लगाया जाएगा.

कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने जानकारी दी कि, चूंकि उत्तराखंड चीन और नेपाल से सटा हुआ राज्य है, इसके चलते प्रदेश में धर्मांतरण किए जाने के आसार बने रहते हैं. इसलिए इस कानून को और भी सशक्त बनाया गया है. महाराज ने बिल के उद्देश्यों और कारणों को बताते हुए कहा कि, भारत के संविधान के अनुच्छेद 25, 26, 27 और 28 के तहत, धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार के तहत, प्रत्येक धर्म के महत्व को समान रूप से मजबूत करने के लिए उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता अधिनियम 2018 में कुछ कठिनाइयों को दूर करने के लिए संशोधन आवश्यक है.
पढ़ें- उत्तराखंड में धर्मांतरण कानून के तहत दर्ज हुए हैं 5 मामले, शिकायत करना होगा आसान

इस धर्मांतरण कानून में सख्त संशोधन किए गए हैं. जिसके तहत अब से जबरन धर्म परिवर्तन संज्ञेय अपराध (Cognizable offence) होगा. नए कानून में जबरन धर्मांतरण कराने पर 10 साल की सजा का प्रावधान है. विधेयक के ड्राफ्ट में कहा गया है, 'कोई भी व्यक्ति, सीधे या अन्यथा, किसी अन्य व्यक्ति को एक धर्म से दूसरे धर्म में गलत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन या किसी भी धोखाधड़ी के माध्यम से परिवर्तित नहीं करेगा. कोई भी व्यक्ति इस तरह के धर्म परिवर्तन को बढ़ावा नहीं देगा, मना नहीं करेगा या साजिश नहीं करेगा'.

गौर हो कि उत्तराखंड में वर्ष 2018 में धर्मांतरण कानून (Anti Conversion Law) अस्तित्व में आया था लेकिन, उस वक्त इसे लचीला कहा जा रहा था. क्योंकि अब तक यह एक जमानती अपराध था. लेकिन, 16 नवंबर 2022 को उत्तराखंड की धामी सरकार की कैबिनेट बैठक में इसे यूपी में लागू धर्मांतरण कानून की तर्ज पर कठोर बनाने की मंजूरी दे दी गई. इसके बाद विधानसभा सत्र के पहले दिन धर्मांतरण कानून को लेकर संशोधन भी किया गया है.

कानून में संशोधन के बाद जबरन धर्मांतरण करने पर अब दो से सात साल की सजा हो सकती है. पहले एक से पांच साल की सजा का प्रावधान था. उत्तराखंड धर्मांतरण कानून में संशोधन कर सामूहिक धर्म परिवर्तन पर भी अब अधिकतम 10 साल की सजा का प्रावधान कर दिया गया है.
पढ़ें- उत्तराखंड में यूपी जैसा सख्त होगा धर्मांतरण कानून, सामूहिक धर्म परिवर्तन की सजा 10 साल

उत्तराखंड में धर्मांतरण के मामले: यह कानून लागू होने के बाद से प्रदेश में अब तक धर्मांतरण के सिर्फ 5 मामले दर्ज हुए हैं और इन मामलों की जांच पुलिस कर रही है. दरअसल, उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में तेजी से गैर-हिंदुओं की मौजूदगी बढ़ रही है. ज्यादातर यह संख्या हरिद्वार, उधम सिंह नगर, देहरादून जिलों में है. लेकिन सबसे बड़ी बात है कि उत्तराखंड में धर्मांतरण को लेकर अब तक सिर्फ 5 मामले पुलिस में दर्ज किए है. इसमें तीन हरिद्वार से और दो देहरादून से मामले दर्ज किए गए हैं. ये सारे मामले 2018 में बने धर्मांतरण कानून को लेकर दर्ज किए गए हैं. यानी इससे पहले हुए धर्मांतरण का कोई पुलिस के पास रिकॉर्ड नहीं है.

उत्तराखंड में धर्मांतरण कानून.

सदन में अनुपूरक बजट हुआ पेश:वहीं, सत्र में लंच के बाद विधानसभा में ₹5440 करोड़ से अधिक का अनुपूरक बजट पेश किया गया. वित्त मंत्री प्रेमचंद्र अग्रवाल और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी बजट की कॉपी लेकर विधानसभा पहुंचे थे. वहीं, उत्तराखंड विधानसभा शीतकालीन सत्र के पहले दिन सरकार की तरफ से महिला आरक्षण बिल सदन के पटल पर रखा गया.

क्या है महिला आरक्षण बिल: उत्तराखंड में सरकारी नौकरियों में महिलाओं को 18 जुलाई 2001 को तत्कालीन नित्यानंद स्वामी सरकार ने 20 फीसदी आरक्षण की सुविधा दी थी. इसके बाद कांग्रेस की एनडी तिवारी सरकार ने इसे 30 फीसदी कर दिया था. तभी से सिर्फ एक जीओ के आधार पर यह लाभ दिया जा रहा था. हालांकि, यह लाभ देने के लिए विधानसभा के पटल पर इसे विधेयक के रूप में लाना जरूरी था, जिसे अब सरकार ने पूरा किया है.

महिला आरक्षण पर क्या था बवाल: उत्तराखंड सम्मिलत राज्य सिविल एवं प्रवर अधीनस्थ सेवा प्री परीक्षा नतीजों के बाद हरियाणा की पवित्रा चौहान समेत दूसरे राज्य की महिला अभ्यर्थियों ने नैनीताल हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. याचिका पर सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने स्थानीय महिलाओं को मिल रहे आरक्षण पर रोक लगा दी थी. हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ धामी सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए उत्तराखंड की स्थानीय महिलाओं को मिल रहे आरक्षण को बरकरार रखा.

  1. सदन में पुर्नस्थापित किये गए ये 9 विधेयक:बंगाल, आगरा और आसाम सिविल न्यायालय (उत्तराखंड संशोधन एवं अनुपूरक उपबंध) विधेयक 2022 पुर:स्थापित किया गया.
  2. उत्तराखंड दुकान एवं स्थापन (रोजगार विनियमन एवं सेवा शर्त) संशोधन विधेयक 2022 सदन में पुर:स्थापित किया गया.
  3. पेट्रोलियम विश्वविद्यालय संशोधन विधेयक को भी सदन में पुर: स्थापित गया.
  4. उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक को भी सदन में पुर:स्थापित किया गया.
  5. भारतीय स्टांप (उत्तराखंड संशोधन) विधेयक को भी सदन में पुर:स्थापित किया गया.
  6. उत्तराखंड माल एवं सेवा कर (संशोधन) विधेयक को भी सदन में पुर:स्थापित किया गया.
  7. उत्तराखंड कूड़ा फेंकना एवं थूकना प्रतिषेध ( संशोधन ) विधेयक 2022 को भी सदन में पुर:स्थापित किया गया.
  8. उत्तराखंड जिला योजना समिति (संशोधन) विधेयक 2022 को सदन के पटल पर पुर:स्थापित किया गया.
  9. उत्तराखंड पंचायती राज (संशोधन) विधेयक 2022 को पुर:स्थापित किया गया.
Last Updated : Nov 29, 2022, 7:08 PM IST

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