हैदराबाद: भारत का पड़ोसी देश श्रीलंका 70 वर्षों में सबसे खराब वित्तीय संकट का सामना कर रहा है. पेट्रोल, रसोई गैस और अन्य जरूरत का सामान लेने के लिए नागरिकों को घंटों लाइन में लगना पड़ रहा है. यह देश, पिछले कई दिनों से बिजली कटौती से जूझ रहा है. श्रीलंकाई सरकार का कहना है कि विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट के कारण 51 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज भारी पड़ रहा है. दरअसल, इसी तरह का कर्ज भारतीय राज्यों को भी डूबा सकता है.
केंद्र सरकार ने जताई चिंता:हाल ही में प्रकाशित एक लेख में कहा गया है, कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्र सरकार के अधिकारियों के साथ बैठक की. जिसमें देश के कुछ राज्यों की बिगड़ती आर्थिक स्थिति पर प्रमुखता से चर्चा की गई. लेख में अधिकारियों के हवाले से दावा किया गया है कि देश के कुछ राज्यों की स्थिति श्रीलंका से अलग नहीं होने वाली. यदि राज्य वित्त सुधार किए बिना मुफ्त योजनाओं को लागू करते हैं, तो हालात निश्चित तौर पर बिगड़ेंगे.
क्यों बढ़ा राज्यों का कर्ज:भारतीय राज्यों पर बढ़े कर्ज का कारण कोविड महामारी को माना जा रहा है. हालांकि यह भी सच है कि महामारी से दो साल पहले ही यानी वित्त वर्ष 2018-19 से ही कई राज्य आर्थिक मंदी की चपेट में आ गये थे. जैसे ही राज्यों के कर राजस्व में गिरावट आई, उन्होंने अपने खर्च को पूरा करने के लिए उधार लेना शुरू कर दिया. इसमें केंद्र सरकार की उज्ज्वल केंद्र DISCOM एश्योरेंस योजना (UDAY) भी कारक है, जो राज्यों की खराब आर्थिक स्थिति का एक और कारण है.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स:बीआर अंबेडकर स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स बेंगलुरु के कुलपति एनआर भानुमूर्ति ने कहा कि 14वें वित्त आयोग के बाद राज्यों को कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च करने में अधिक छूट मिल रही है. उन्होंने कहा कि राजस्व में गिरावट इसलिए आई है क्योंकि राज्य लोकलुभावन योजनाओं पर अधिक खर्च कर रहे हैं. इन नीतियों के कारण राज्यों का जीएसडीपी में कर्ज का हिस्सा बढ़ रहा है.
कैग रिपोर्ट में क्या है:कैग की रिपोर्ट से पता चला है कि पिछले पांच वर्षों में राज्यों में राजस्व की तुलना में ब्याज भुगतान में वृद्धि हुई है. इससे वे राज्य कर्ज में डूबे जा रहे हैं. पंजाब और उत्तर प्रदेश में हाल के चुनावों में कई लोकलुभावन योजनाओं की घोषणा की गई है. स्थिति तब और खराब हो जाएगी जब इन योजनाओं का बोझ सरकारी खजाने पर पड़ेगा. इनमें आंध्र प्रदेश, बिहार और राजस्थान में कर्ज की स्थिति काफी खराब है. वित्त वर्ष 2021-22 के अंत तक आंध्र प्रदेश में कुल कर्ज 3.89 लाख करोड़ रुपये है. यह पिछले वर्ष की तुलना में 40000 करोड़ रुपये की वृद्धि है. इस बीच राज्य का कर्ज जीएसडीपी अनुपात 32.4 प्रतिशत पहुंच गया है.