अमरावती :आधुनिकता के इस दौर में आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले का कुर्मा गांव आज भी बिजली और स्मार्टफोन से संचालित किसी भी सुविधा का उपयोग किए बिना ग्रामीण प्राकृतिक परिवेश में सभी काम करते हैं. इतना ही नहीं यहां के लोगों ने अपने आपको प्रकृति के मुताबिक न केवल अपने आप को ढाल लिया है जिससे वे उसी के अनुसार काम करते हैं. एक तरफ जहां खासकर स्मार्टफोन उपलब्ध होने के बाद मनुष्य का जीवन बदल गया है लेकिन यहां पर स्मार्टफोन ही नहीं अन्य आधुनिक सुविधाओं का उपयोग नहीं किया जाता है. इस गांव की खासियत है कि यहां पर बिजली नहीं है और न ही यहां सीमेंट और लोहे का उपयोग इमारतों को बनाने के लिए नहीं किया जाता है.
यहां पर शिक्षा के लिए शुल्क नहीं लिया जाता है. एक तरफ लोग उच्च अध्ययन और बड़ी नौकरियों के साथ एक समृद्ध जीवन जीते हैं और वे सोचते हैं कि यह जीवन का अंतिम अर्थ नहीं है. इससे इतर परमात्मा तक पहुंचने के लिए विकास के तरीके के रूप में वे धार्मिक जीवन जीते हैं. इस गांव में लोग आज भी पुराने तरीकों का पालन कर एक अलग रास्ते पर चल रहे हैं. इस गांव को एक ऐसे गांव के रूप में पहचाना जाता है जो अभी भी प्राचीन वैदिक वर्णाश्रम प्रथाओं के अनुसार संचालित होता है.
लोग प्राचीन भारतीय प्रथाओं का करते हैं पालन -इस गांव में लोग प्राचीन भारतीय प्रथाओं और गुरुकुल के जीवन की तरह जीवन व्यतीत करते हैं. यहां पर 200 साल पुराना भारतीय ग्रामीण जीवन, परंपराएं, प्रथाएं, खान-पान, पहनावा और पेशा कुर्मा गांव को खास बना देते हैं. इस गांव की स्थापना जुलाई 2018 में भक्ति वेदांत स्वामी प्रभुपाद, अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ के संस्थापक और उनके शिष्यों द्वारा की गई थी. चंद लोगों से शुरू हुए इस गांव में अब 12 परिवार, 16 गुरुकुल के छात्र और छह ब्रह्मचारियों सहित 56 लोग हैं. गांव के लोग दुनिया को वापस सनातन धर्म की ओर मोड़ने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं क्योंकि ब्रिटिश शासन के तहत भारतीय वर्णाश्रम प्रणाली अस्त-व्यस्त हो गई थी और इस उद्देश्य के लिए अभियान और सेवा कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं.
मिट्टी से बने घर या झोपड़ी में रहते हैं लोग-एक तरफ आधुनिकता के दौर में आदमी जहां मशीन की तरह काम करने से बीमार पड़ जाता है. लेकिन यहां के लोग प्रकृति के साथ जीवन यापन करते हुए खुश रहते हैं. इतना ही नहीं गांव के सभी लोग धनी परिवारों में पैदा होने के साथ ही उच्च शिक्षा हासिल करने के साथ लाखों में वेतन वाली कंपनियों में काम किया है. लेकिन मशीनी जिंदगी से ऊब कर वे सब कुछ पीछे छोड़कर प्राकृतिक वातावरण अपने परिवार के साथ कुर्मा गांव में रहते हैं. इन ग्रामीणों का कहना है कि मिट्टी से बने घर या छोटी सी झोपड़ी में रहने से जो खुशी होती है वह कार और बंगले से मिलने वाली खुशी से अधिक होती है.
फसल के साथ सब्जी भी उगाते हैं ग्रामीण-न केवल देश के विभिन्न राज्यों से बल्कि अन्य देशों से भी अपने परिवारों को छोड़कर कई लोग भगवान की सेवा के लिए कुर्मा गांव आ रहे हैं. सादा जीवन उच्च विचार इस गांव वालों की विशेषता है. यह सिद्ध करते हुए कि ऊन और कपड़ा जैसी आवश्यक सामग्री प्रकृति से प्राप्त की जा सकती है, ये प्राकृतिक खेती से ही प्राप्त होती हैं. इसीक्रम में इस साल सभी ग्रामीणों ने मिलकर 198 बोरी अनाज की फसल ली और पर्याप्त मात्रा में सब्जियां भी उगाई जा रही हैं. गांव में बीज बोने से लेकर कटाई तक वे दूसरों पर निर्भर नहीं हैं. फलस्वरूप वे रसायन मुक्त खेती से अपनी मनपसंद सब्जियां उगाने के साथ पशुपालन भी करते हैं.