अमरावती:आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने राज्य सीआईडी के अधिकार क्षेत्र पर कड़ी आपत्ति जताते हुए मार्गदर्शी चिटफंड प्राइवेट लिमिटेड (MCFPL) के अध्यक्ष रामोजी राव और प्रबंध निदेशक शैलजा किरण के खिलाफ आंध्र प्रदेश सीआईडी द्वारा दर्ज मामले में आठ सप्ताह के लिए कार्यवाही पर रोक लगा दी है.
मामले में शिकायतकर्ता जी यूरी रेड्डी ने जालसाजी के माध्यम से शेयरों के हस्तांतरण का आरोप लगाया था. मामले में कोर्ट ने मुकदमे में प्रतिवादी सीआईडी और शिकायतकर्ता रेड्डी को बुधवार को नोटिस जारी किया. साथ ही कोर्ट ने जवाब दाखिल करने का निर्देश देते हुए छह दिसंबर तक के लिए सुनवाई स्थगित कर दी. सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने सीआईडी के आचरण को लेकर कई सवाल पूछे और मामले में उसके अधिकार क्षेत्र पर कड़ी आपत्ति जताई. हाई कोर्ट ने शिकायतकर्ता के द्वारा कहे जाने पर ही घटना हैदराबाद में हुई थी, एपी सीआईडी से मामला दर्ज करने के उसके अधिकार क्षेत्र के बारे में पूछा.
यूरी रेड्डी ने सीआईडी को दी शिकायत में कहा है कि उन्होंने शेयरों के ट्रांसफर पर हस्ताक्षर किए थे. इस पर हाई कोर्ट ने एपी सीआईडी का हवाला देते हुए उदाहरण देते हुए पूछा कि यदि आभूषण हैदराबाद में खरीदा जाता है वह वहां चोरी हो जाता है तो इस आधार पर विजयवाड़ा में मामला दर्ज करना कैसे वैध है कि आभूषण विजयवाड़ा में अर्जित धन से खरीदा गया था? इन बातों को ध्यान में रखते हुए हाई कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस बीवीएलएन चक्रवर्ती ने बुधवार को अंतरिम आदेश देते हुए सीआईडी द्वारा दर्ज मामले में आगे की सभी कार्यवाही को 8 सप्ताह के लिए निलंबित कर दिया.
इस संबंध में मंगलागिरी सीआईडी पुलिस ने 13 अक्टूबर को यूरी रेड्डी द्वारा दी गई शिकायत के आधार पर मार्गदर्शी चिटफड के अध्यक्ष रामोजी राव और एमडी शैलजा किरण के खिलाफ मामला दर्ज किया था. यूरी ने आरोप लगाया था उनके पिता के नाम से पंजीकृत 288 शेयरों को फर्जी साइन के आधार पर हस्तांतरित कर दिया. मालूम हो कि दोनों ने अपने खिलाफ दर्ज मामले को खारिज करने के लिए हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी. याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा, नागामुथु और पोसानी वेंकटेश्वरलू उपस्थित हुए. यूरी रेड्डी ने आरोप लगाया कि शेयर खरीदने के लिए मार्गदर्शी कंपनी ने उन्हें चेक के रूप में पैसे का भुगता किया. इसके अलावा उन शेयरों को मार्गदर्शी कंपनी को हस्तांतरित करने पर हस्ताक्षर किए.
यूरी रेड्डी ने रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज से शिकायत की कि उन्होंने चेक भुनाया नहीं और गलती से एक खाली फॉर्म पर हस्ताक्षर कर दिए. हालांकि यह अभी भी लंबित है. लेकिन छह साल बाद अचानक उन्होंने एपी सीआईडी में शिकायत दर्ज कराई. इसमें एक नया आरोप सामने आया कि उन्होंने धमकी देकर हस्ताक्षर किये थे. इतना ही नहीं शिकायतकर्ता ने 15 जून 2016 को एक ई-मेल भेजकर याचिकाकर्ता (रामोजी राव) को उनके शेयर पहले खरीदने के लिए धन्यवाद दिया था. मार्गदर्शी कंपनी हैदराबाद में पंजीकृत है और वहां शेयरों का ट्रांसफर हुआ. शिकायतकर्ता के आरोप के मुताबिक घटना हैदराबाद की है. इस संदर्भ में मार्गदर्शी चिटफंड का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ताओं ने पूछा कि सीआईडी के पास मामला दर्ज करने और जांच करने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है.
उन्होंने कहा कि अगर सीआईडी कोई मामला दर्ज करती है तो इसे तेलंगाना स्थानांतरित किया जाना चाहिए क्योंकि यह उसके दायरे में नहीं है. मामले में मार्गदर्शी एमडी शैलजा किरण का शेयरों के हस्तांतरण से कोई लेना-देना नहीं है. अधिवक्ताओं ने बताया कि जब प्रक्रिया हुई तो वह वहां नहीं थी. साथ ही बताया कि यूरी रेड्डी से कंपनी को शेयर हस्तांतरित करने के बाद कानून के प्रावधानों का पालन करते हुए शेयर शैलजा किरण के नाम पर स्थानांतरित कर दिए गए. एफआईआर में भी उनके खिलाफ कोई आरोप नहीं हैं. इसके अलावा शिकायतकर्ता ने शिकायत दर्ज करने में अत्यधिक देरी के कारणों का उल्लेख नहीं किया. उन्होंने कोर्ट से अपील की कि इन बातों को ध्यान में रखते हुए सीआईडी द्वारा दर्ज मामले की जांच रोक दी जाए.
सीआईडी की ओर शिवकल्पना रेड्डी ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने पंजीकरण के तीन दिनों के भीतर एफआईआर को रद्द करने के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. उन्होंने कोर्ट से कहा कि इस स्तर पर कोई अंतरिम आदेश नहीं दिया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि अदालतें यंत्रवत् अंतरिम आदेश जारी नहीं कर सकतीं. उन्होंने उन्हें काउंटर दाखिल करने के लिए समय देने को भी कहा. उन्होंने कहा कि अगर सीआईडी यह निष्कर्ष निकालती है कि मामला उनके दायरे में नहीं आता है तो इसे तेलंगाना स्थानांतरित कर दिया जाएगा. इस पर जस्टिस चक्रवर्ती ने जवाब दिया कि कोर्ट को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसलों की जानकारी है. सुनवाई के बाद सीआईडी द्वारा दर्ज की गई एफआईआर के आधार पर एक अंतरिम आदेश पारित किया गया, जिसमें जांच सहित आगे की सभी कार्यवाही पर 8 सप्ताह के लिए रोक लगा दी गई.
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