दिल्ली

delhi

ETV Bharat / bharat

यहां नाग पंचमी पर कालसर्प योग से मिलती है मुक्ति - कालसर्प योग से मिलती है मुक्ति

वाराणसी रहस्यमयी नगरी है और इस नगर में जैतपुरा इलाके में स्थित नागनकूप पाताल लोक के दरवाजे के रूप में विख्यात है. नाग पंचमी यानी नाग देवता को खुश करने का दिन और यह दिन देवाधिदेव महादेव को समर्पित होता है. ऐसी मान्यता है कि नागपंचमी के दिन नाग की पूजा और कालसर्प योग से मुक्ति के लिए विशेष अनुष्ठान संपन्न कराए जाते हैं, लेकिन आज हम आपको उस पवित्र स्थान पर लेकर चल रहे हैं जिसे नाग लोक के नाम से जाना जाता है.

नाग पंचमी
नाग पंचमी

By

Published : Aug 13, 2021, 8:26 AM IST

वाराणसी : नागपंचमी यानी नाग देवता को खुश करने का दिन माना जाता है, और यह दिन देवाधिदेव महादेव को समर्पित होता है. ऐसी मान्यता है कि नाग पंचमी के दिन नाग की पूजा और कालसर्प योग से मुक्ति के लिए विशेष अनुष्ठान संपन्न कराए जाते हैं, लेकिन आज हम आपको उस पवित्र स्थान पर लेकर चल रहे हैं जिसे नाग लोक के नाम से जाना जाता है. काशी में स्थित नाग कुआं महर्षि पतंजलि की तपोस्थली के रूप में विख्यात है. महर्षि पतंजलि जिन्हें शेषनाग का अवतार कहा जाता है. यही वजह है कि यहां पर मौजूद कुंड के नीचे नाग लोक होने के दावे किए जाते हैं और इस पवित्र स्थान से जुड़ी कई ऐसी कथाएं हैं जो आपको आश्चर्य में डाल देंगी.

महर्षि पतंजलि की तपोभूमि

दरअसल वाराणसी रहस्यमयी नगरी है और इस नगर में जैतपुरा इलाके में स्थित नागनकूप पाताल लोक के दरवाजे के रूप में विख्यात है. यहां के पुजारी पंडित कुंदन की माने तो कई हजार साल पुरानी इस पवित्र स्थली को कारकोटक नागी तीर्थ के नाम से जाना जाता है. इससे जुड़ी कथा के बारे में यदि बात की जाए तो पुराणों में वर्णित है, कि यह पवित्र स्थान शेषनाग अवतार महर्षि पतंजलि की तपोस्थली रही है. यहीं पर कई हजार वर्ष तक उन्होंने कठिन तपस्या की थी.

नागनकूप पाताल लोक की विशेषता

कूप के अंदर स्थापित है शिवलिंग

महर्षि पतंजलि को नागों के देवता के रूप में पूजा जाता है और उनके द्वारा स्थापित कई हजार साल पुराना शिवलिंग इस कूप के अंदर आज भी मौजूद है. जिसके दर्शन साल में एक बार यहां सफाई होने के दौरान ही हो पाते हैं. उस शिवलिंग के ठीक नीचे एक बड़ा सा गहरा रास्ता है. ऐसा कहा जाता है कि यह रास्ता पाताल लोक यानी नाग लोक जाने का है. यह कितना गहरा है कितने अंदर तक इसकी गहराई है-यह किसी को नहीं पता.

3000 वर्ष पहले हुआ जीर्णोद्धार

जैतपुरा इलाके में स्थित नागनकूप

मंदिर के पुजारी की माने तो अंदर मौजूद एक शिलापट्ट के मुताबिक इसका जीर्णोद्धार लगभग 3000 वर्ष पहले किया गया था. जब जीर्णोद्धार 3000 वर्ष पूर्व हुआ है तो यह स्थान कितने हजार वर्ष पुराना है यह अपने आप में बड़ा सवाल है. मंदिर के पुजारी की माने तो इस स्थान पर आज भी नागों का बसेरा है. ऐसा भी कहा गया है कि सतयुग में इसी स्थान पर महाराजा हरिश्चंद्र के बेटे को सर्प ने काटा था.

जैतपुरा इलाके में स्थित नागनकूप

कालसर्प योग से मिलती मुक्ति

ऐसी मान्यता है कि यहां पर यदि कालसर्प योग की पूजा की जाए तो इसके प्रभाव से मुक्ति मिलती है. इतना ही नहीं इसके पानी को यदि आप अपने घर में रखते हैं और इस पानी का छिड़काव या आचमन करते हैं तो जहरीले जीव जंतुओं के खतरे और नाग के घर में आने के डर से भी मुक्ति मिलती है.

नागनकूप पाताल लोक तक जाने का मार्ग

छोटे गुरु बड़े गुरु की होती है पूजा

नाग पंचमी के दिन छोटे गुरु बड़े गुरु की पूजा का भी विधान है. मंदिर के पुजारी की माने तो छोटे गुरु और बड़े गुरु से तात्पर्य महर्षि पतंजलि और उनके गुरु महर्षि पाणिनि से है, क्योंकि महर्षि पतंजलि नाग देवता के रूप में विराजमान हैं और उनके गुरु बड़े गुरु यानी महर्षि पाणिनि का पूजन भी किया जाता है. यह भी कहा है कि महर्षि पतंजलि ने महर्षि पाणिनि के भाषा की रचना भी यहीं पर की थी.

नागनकूप पाताल लोक में स्थित महादेव की प्रतिमा

पाताल लोक का रास्ता

पुराणों में वर्णित है कि इसके अंदर पाताल लोक जाने वाला रास्ता आज भी मौजूद है और उसके अंदर भी साथ में विद्यमान है. कूप के अंदर विद्यमान शिवलिंग के दर्शन नहीं होते इसलिए बाहर मौजूद मंदिर में इस शिवलिंग के प्रतिरूप दूसरा शिवलिंग स्थापित किया गया है. जहां लोग पूजन पाठ कर कालसर्प योग और अन्य मनोकामना पूर्ण करने के लिए दूर-दूर से यहां पहुंचते हैं.

ABOUT THE AUTHOR

...view details