शुक्रवार को पैतृक गांव आयेगा शहीद कर्नल मनप्रीत सिंह का पार्थिव शरीर. पंचकूला/मोहाली: अनंतनाग में आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में शहीद हुए कर्नल मनप्रीत सिंहका पार्थिव शरीर शुक्रवार को दोपहर करीब 12 बजे उनके पैतृक गांव भारौंजियां पहुंचेगा. 15 सितंबर को सेना के अधिकारी जम्मू कश्मीर से उनका पार्थिव शरीर लेकर यहां पहुंचेंगे. अंतिम संस्कार की व्यवस्था के लिए सेना के अधिकारी शहीद कर्नल मनप्रीत सिंह के घर पहुंच चुके हैं. वो अंतिम विदाई को लेकर मनप्रीत सिंह के भाई संदीप के साथ बातचीत कर रहे हैं.
मोहाली में पैदा हुए थे कर्नल मनप्रीत- शहीद मनप्रीत सिंह के भाई संदीप सिंह ने कहा कि सेना के अधिकारियों ने हमें बताया है कि कल करीब 12 बजे मनप्रीत का पार्थिव शरीर घर पर लाया जाएगा. हो सकता है कि थोड़ा और देर हो जाए. एकदम सही वक्त नहीं बताया है. यहां आने के बाद उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा. कर्नल मनप्रीत का जन्म 11 मार्च 1982 को हुआ मोहाली के भारौंजियां गांव में हुआ था. मनप्रीत का गांव भ्रैंजियां चंडीगढ़ से करीब छह किलोमीटर दूर पंजाब के मोहाली जिले में है. मनप्रीत सिंह का सपना शुरू से ही सेना में जाने का था.
ये भी पढ़ें-Anantnag Encounter Update News: देश के लिए हरियाणा के कर्नल मनप्रीत सिंह और मेजर आशीष धौंचक शहीद, कल पहुंचेगा पार्थिव शरीर
कर्नल मनप्रीत के परिवार के 22 लोग सेना में रह चुके हैं. मनप्रीत के दो बच्चे हैं-कर्नल मनप्रीत सिंह केपिता लखमीर सिंह का 2014 में निधन हो चुका है, वो भी सेना से रिटायर थे. उनके परिवार में भाई संदीप सिंह, बहन संदीप कौर और मां मंजीत कौर हैं. मनप्रीत सिंह की पत्नी का नाम जगमीत ग्रेवाल है. उनके 6 साल का बेटा कबीर सिंह और 2 साल की बेटी बानी कौर हैं. मनप्रीत सिंह की पत्नी हरियाणा में शिक्षा विभाग में कार्यरत हैं.
कर्नल मनप्रीत का पैतृक गांव मोहाली का भारौंजियां है. परिवार से 22 लोग रह चुके सेना में- कर्नल मनप्रीत सिंह का जीवन और पूरा परिवार देशप्रेम की मिसाल है. उनते पिता और दादा दोनों फौज में थे. उनके अलावा मनप्रीत सिंह के परिवार के करीब 22 लोग सेना में रह चुके हैं. इनमें से करीब छह लोग अभी भी सेवा में हैं, जिनमें से एक एनएसजी कमांडो हैं. मनप्रीत के पिता और दादा ने अंग्रेजी सेना में भी सेवाएं दी थी. उनके गांव में शहीद भाग सिंह के नाम पर एक सड़क मार्ग भी बना है, जो कि सेना में जवान थे और 1965 की लड़ाई में शहीद हुए थे. 1962 में हुई लड़ाई में उनके गांव के ही सेना में जवान रहे हरदेव सिंह शहीद हुए थे.
मनप्रीत सिंह की गली से 19 लोग सेना में- मनप्रीत के घर की गली में ही 19 लोग सेना में अलग-अलग पदों पर रह चुके हैं. आज भी उनकी गली के ही तीन लोग सेना में सेवाएं दे रहे हैं. गांव के लोग कहते हैं कि उनके गांव के लोग अंग्रेजों के समय से सेना में कार्य करते रहे हैं. अंग्रेजों के समय से बात की जाए तो उनके गांव के करीब 50 लोग सेना में रह चुके हैं.
ये भी पढ़ें-Anantnag Encounter: गृह प्रवेश और जन्मदिन के लिए अगले महीने छुट्टी पर आने वाले थे मेजर आशीष, शहादत से परिवार पर टूटा दुखों का पहाड़