रांची: छत्तीसगढ़ के चुनाव परिणाम ने राजनीति की समझ रखने वालों का माथा घूमा दिया है. एक्जिट पोल पूरी तरह फेल साबित हुआ है. सत्ता दोहराने के भूपेश बघेल के सपने चकनाचूर हो गये. बेशक, राजस्थान और छत्तीसगढ़ गंवाने वाली कांग्रेस के जख्म पर तेलंगाना के लोगों ने मरहम जरुर लगाया है. लेकिन छत्तीसगढ़ के अप्रत्याशित चुनाव परिणाम ने झारखंड की राजनीति में खलबली मचा दी है. इसकी वजह भी है.
छत्तीसगढ़ भी झारखंड की तरह एक आदिवासी बहुल राज्य है. दोनों प्रदेशों के बीच बेटी-रोटी का संबंध है. छत्तीसगढ़ में एसटी की 29 और एससी की 10 सीटें किसी भी पार्टी को सत्ता के करीब पहुंचाने में सबसे बड़ी भूमिका निभाती हैं. यही हाल झारखंड का है. यहां एसटी की 28 और एससी की 09 सीटें तय करती हैं कि सत्ता की चाबी किसके पास जाएगी. अब सवाल है कि पड़ोसी राज्य में फेल साबित हुए "छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया" के भूपेश बघेल के नारे की तुलना में "हेमंत है तो हिम्मत है" का नारा क्या आगामी चुनाव में टिक पाएगा. क्या छत्तीसगढ़ का चुनाव परिणाम झारखंड की राजनीति को प्रभावित करेगा. क्या बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में पार्टी अपनी खोई जमीन वापस ले पाएगी.
वरिष्ठ पत्रकार बैजनाथ मिश्रा का कहना है कि छत्तीसगढ़ का चुनाव परिणाम झारखंड के लिए प्रस्तावना है. यह प्रस्तावना उपन्यास में बदलेगा या नहीं यह तो अभी कहना जल्दबाजी होगी. लेकिन चार राज्यों में वंशवाद और भ्रष्टाचार पराजित हुआ है. छत्तीसगढ़ में सरकारें धान के खेत में बनती हैं और बिखर जाती हैं. वहां भाजपा ने धान का दर बढ़ाया और महतारी योजना शुरू की. शराब घोटाला से ज्यादा भोलेनाथ घातक हुए. हो सकता है भाजपा कहीं झारखंड में कृष्ण की जन्मभूमि का दर्शन भी करा दें.
उन्होंने कहा कि 2024 के चुनाव में भ्रष्टाचार और वंशवाद सबसे बड़ा मुद्दा होगा. भाजपा के पास गवर्नेंस और विकास की चासनी है. अब जातीय पहचान का संकट देश में नहीं है. नवउदारवाद का पहला चरण खत्म हो चुका है. अब लोग जाति से ऊपर उठकर आकाश में उड़ना चाह रहे हैं. वक्त बदल गया है. छत्तीसगढ़ के चुनाव परिणाम का जबरदस्त असर झारखंड में देखने को मिल सकता है. उन्होंने कहा कि मोदी की स्वीकार्यता फिर साबित हो गई है. लिहाजा, लोकसभा चुनाव के नतीजे क्या होंगे, इसका आकलन करना मुश्किल नहीं है. पिछले विधानसभा चुनाव में चंद स्थानीय नेताओं की गलतियों की वजह से सत्ता की तस्वीर बदली थी.
वरिष्ठ पत्रकार मधुकर का कहना है कि 2024 झारखंड के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है. हेमंत ने आरक्षण और स्थानीयता की जो मांग उठायी है वह उनके फेवर में है. सरना कोड के जरिए उन्होंने सहानुभूति बटोरी है. राज्यों के चुनावी नतीजों के बाद यहां की सरकार पर ईडी का दबाव बढ़ सकता है. मोदी की गारंटी ने भाजपा कार्यकर्ताओं को उत्साहित जरूर किया है. लेकिन छत्तीसगढ़ और झारखंड के मुद्दे हमेशा अलग रहे हैं. छत्तीसगढ़ में संघ की जबरदस्त भूमिका रही है. धार्मिक ध्रुवीकरण छत्तीसगढ़ में जरुर हुआ है. लेकिन झारखंड में ऐसा नहीं दिखता. यहां चुनाव शिबू सोरेन के नाम पर लड़ा जाता है. थोड़ा बहुत अंतर हो सकता है. लोकसभा चुनाव में झारखंड में भाजपा अच्छा जरुर करेगी बशर्ते इंडिया गठबंधन एकजुटता दिखाए.
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को एससी तो भाजपा को एसटी का साथ:भूपेश बघेल के सत्ता गंवाने की सबसे बड़ी वजह बनी आदिवासी वोटरों की कांग्रेस से दूरी. छत्तीसगढ़ में एसटी यानी ट्राइबल के लिए 29 सीटें रिजर्व हैं. इनमें भाजपा को सबसे ज्यादा 16 सीटों पर जीत मिली है. कांग्रेस को 12 और जीजीपी को 01 एसटी सीट मिली है. लेकिन एससी की 10 सीटों में सबसे ज्यादा 06 सीटें कांग्रेस के पाले में गई है. भाजपा को एससी की 04 सीटे मिली है.