हैदराबाद : कम्युनिस्ट पार्टी ने चीन में समतावादी समाज बनाने का दावा किया था. लेकिन विडंबना देखिए कि उसने इसे छोटे-छोटे सम्राटों में बांट दिया. विशेषाधिकार प्राप्त और सामाजिक रूप से अजीब ग्रुप बन गए हैं. यह रिवर्स डेमोग्राफिक पिरामिड के परिणामों को मूर्त रूप दे रहा है. यहां एक बच्चे पर छह व्यस्कों का प्रभाव है. माता-पिता, नाना-नानी और दादा-दादी का.
बहुत अधिक संभावना हो कि इन छह व्यस्कों की अलग-अलग आमदनी हो. इसलिए वे बच्चे को अपनी ओर आकर्षित करने के पूरे प्रयास करते होंगे. परिणाम ये हुआ कि ऐसे बच्चों की सारी जरूरतें पूरी हो जाती होंगी. उन्हें 'न' सुनने या किसी समान को 'साझा' करने की आदत नहीं होती होगी. स्वाभाविक है कि ऐसे बच्चे स्व केंद्रित हो जाते हैं.
ऐसा क्यों और कैसे हुआ, इसे जानने के लिए हमें इसकी पृष्ठभूमि में जाना होगा. चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रमुख माओ बड़े परिवार के पक्षधर थे. उनका निधन 1976 में हुआ. उसके बाद डेंग जियापिंग आए. डेंग की महत्वाकांक्षा चीन को आर्थिक प्रगति के रास्ते पर ले जाने की तत्परता थी. उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती बड़ी आबादी थी. ऊपर से व्यापक गरीबी और प्रति व्यक्ति कम आमदनी तो फैक्टर था ही. हालांकि, 1979 में चीन में जन्म दर 3.4 फीसदी ही था. 1970 में यह दर 4.9 फीसदी था. फिर भी 1979 में चीन की आबादी 98.6 करोड़ थी. तब भारत की आबादी 68.6 करोड़ थी.
अचानक ही डेंग ने 1979 में 'एक बच्चे की नीति' की घोषणा कर दी. अपवाद में ही दो बच्चों की इजाजत दी गई. ग्रामीण क्षेत्रों में अगर किसी परिवार का पहला बच्चा लड़की हो जाए, तो उन्हें पांच साल बाद दूसरा बच्चा पैदा करने की इजाजत दी गई. जनजातीय (अल्पसंख्यक) इलाकों में तीन बच्चे पैदा करने की छूट दी गई.
इस नीति ने पूरे समाज को झकझोर कर रख दिया. अभी तो वे लोग ग्रेट लीप फॉरवर्ड (1958-62, तीन करोड़ लोग मरे थे) और सांस्कृतिक क्रांति (1966-76) से उबरे भी नहीं थे. इसके बावजूद चीन ने बहुत ही निर्दयता से एक बच्चे की नीति को लागू किया. बहुत बड़ी संख्या में गर्भवती महिलाओं को अपना गर्भ गिराने पर मजबूर किया गया. जिस किसी ने भी इसकी अनदेखी की, उस पर भारी जुर्माना लगाया गया. अर्थशास्त्री बताते हैं कि 2012 तक चीन ने इस जुर्माने से 314 बिलियन डॉलर इकट्ठा कर लिए थे. इसे सोशल मैंटनेंस फीस का नाम दिया गया था.
इसका दुष्परिणाम ये हुआ कि लोग पहले बच्चे के रूप में लड़के को प्राथमिकता देने लगे. दुर्भाग्य ये है कि एशिया के कई देशों में यही सोच कायम है. जाहिर है, गर्भवती महिलाओं को भ्रूण की हत्या करवाने पर मजबूर होना पड़ा. इसकी वजह से साल 2000 में जेंडर गैप 10 का हो गया. यानी 100 लड़कियों पर 110 लड़के. 2010 में यह गैप बढ़कर 18 का हो गया.
बड़ी संख्या में कुंआरे लड़कों को लड़कियां मिल ही नहीं रही थीं. इस वक्त चीन में महिलाओं की तुलना में पुरुषों की आबादी 3.3 करोड़ अधिक है. यानि 33 मिलियन गरीब और ग्रामीण युवकों को बिना लइफ पार्टनर के ही जिंदगी गुजारनी पड़ेगी. चीन में इन्हें 'बेयर ब्रांचेज' कहा जाता है.
जेंडर गैप की वजह से सामाजिक और आर्थिक तनाव और अधिक बढ़ा. शादी के योग्य लड़कियों की कीमतें बढ़ गईं. पारंपरिक रूप से शादी के समय लड़के वाले गिफ्ट के तौर पर लड़कियों को तोहफा दिया करते थे. आम तौर पर एक रेड एनवेलप, जिसमें 1720 डॉलर रखा जाता था, दिया जाता था.