नई दिल्ली : केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जम्मू कश्मीर रिजर्वेशन अमेंडमेंट बिल और जम्मू कश्मीर रिऑर्गेनाइजेशन अमेंडमेंट बिल पर जवाब दिया. उन्होंने कहा कि जब से अनुच्छेद 370 हटा है, तब से राज्य के विकास में नई गति आई है. शाह ने कहा कि अब वहां पर सबको अधिकार मिलेगा, इसलिए वह बिल में संशोधन लेकर आए हैं.
क्या कहा केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने-
कश्मीर पर नेहरू की दो बड़ी गलतियां -
- जब सेना जीत रही थी, तब सीजफायर की घोषणा कर दी गई, अगर तीन दिन बाद यही घोषणा होती, तो स्थिति कुछ और होती.
- यूएन के अंदर मसले को लेकर जाना.
- नेहरू ने बाद में कहा- सीजफायर बेहतर ऑप्शन था.
- यह बिल लोगों को न्याय दिलाने के लिए लाया गया है. वंचित लोगों को आगे बढ़ाने के लिए बिल लाया गया है. लेकिन हम यह भी ध्यान रख रहे हैं कि हम अधिकार को सम्मान के साथ दे रहे हैं. हमारी सरकार पिछड़ों का दर्द समझती है, इसलिए हम इस बिल को ला रहे हैं.
- 1980 के बाद जब राज्य में आतंकवाद का प्रभाव बढ़ा, तो किसी ने इसको रोकने का गंभीर प्रयास नहीं किया. जिनकी जिम्मेदारी इसे रोकने थी, वह लंदन में बैठे छुट्टी मना रहे थे. अगर उस समय काम हो गया होता, तो कश्मीरी पंडित विस्थापित ही न होते. 46 हजार से ज्यादा परिवार विस्थापित हो गए. उन्हें देश के अलग-अलग हिस्सों में जाकर रहने लगे. यह बिल उनको अधिकार देने का है.
- इस बिल के जरिए उन्हें उचित प्रतिनधित्व मिलेगा. 2019 में हमारी सराकर ने इनकी आवाज सुनी, जो पिछली सरकारें नहीं सुन रही थी. इससे पहले न्यायिक डिलिमिटेशन बिल कमीशन लाया गया था. हमने डिलिमिटेशन की प्रक्रिया को पवित्र किया. कश्मीरी विस्थापितों के लिए दो सीटें आरक्षित की गई है. एक सीटे पीओके से विस्थापितों के लिए है.
- नौ सीटें एसटी के लिए, 20 सीटें एससी के लिए आरक्षित की गईं हैं. 24 सीटें पीओके लिए है. नोमिनेटेड सदस्यों की संख्या की पांच होगी.
- 1.6 लाख लोगों को प्रवास प्रमाण पत्र दिया गया.
- कांग्रेस ने पिछड़े वर्ग आयोग को कानूनी मान्यता नहीं दी.
- हमारी सरकार पीओके से आने वालों के एकमुश्त 5.5 लाख रु. दिए गए.
- सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून पर कोई कोई स्टे नहीं लगाया था.
- आतंकी गतिविधियों में 70 फीसदी तक की कमी आई है.
- हड़ताल और पथराव बंद हो गया.
- पथराव में नागरिकों की मृत्यु किसी की नहीं हुई.
- सुरक्षा बलों पथराव में घायल नहीं हुए.
- ये लोग बोलते थे कि खून की नदियां बह जाएगी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ.
- टेरर फाइनेंस पर एक्शन लिया गया. उन्हें पाकिस्तान से पैसा मिलता था, हमने उस पर रोक लगाई. उनके इको सिस्टम को खत्म किया.
- 30 साल के बाद थियेटर चला. फिल्मों की शूटिंग शुरू हो चुकी है. थियेटर खोलने के लिए बैंक लोन मांगे जा रहे हैं.
- अंग्रेजी हिंदी डोगरी को राजभाषा का दर्जा मिला
- विधानसभा का कार्यकाल छह साल नहीं, बल्कि पांच साल होगा.
- घर-घर तिरंगा फहराया जा रहा है
- दो एम्स खोले, आईआईटी कॉलेज खुला, मेडिकल कॉलेज खुला, एमबीबीएस की सीट बढ़ी, 144 डिग्री कॉलेज बना, शिशु मृत्यु दर गिरा, एक साल में 8048 किमी सड़कें बनीं.
- स्मार्ट सिटी मिशन लाया गया.
विस्तार से- केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को लोकसभा में कहा कि देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल के दौरान हुए दो बड़े ब्लंडर (गलतियों) का खामियाजा जम्मू-कश्मीर को वर्षों तक भुगतना पड़ा. जम्मू कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2023 और जम्मू कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2023 पर सदन में हुई चर्चा का जवाब देते हुए उनका कहना था कि नेहरू की ये दो गलतियां 1947 में आजादी के कुछ समय बाद पाकिस्तान के साथ युद्ध के समय संघर्ष विराम करना और जम्मू-कश्मीर के मामले को संयुक्त राष्ट्र ले जाने की थी. गृह मंत्री ने कहा कि अगर संघर्ष विराम नहीं हुआ होता तो पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर (पीओके) अस्तित्व में नहीं आता.
नेहरू के संदर्भ में शाह की टिप्पणियों का विरोध करते हुए कांग्रेस और कुछ अन्य विपक्षी दलों के सदस्यों ने सदन से वाकआउट किया. अमित शाह ने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 2024 में एक बार फिर प्रधानमंत्री बनेंगे और 2026 तक जम्मू-कश्मीर से आतंकवाद का पूरी तरह खात्मा हो जाएगा. गृह मंत्री के जवाब के बाद इन दोनों विधेयकों को ध्वनिमत से मंजूरी दी गई.
शाह ने जम्मू-कश्मीर के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य का उल्लेख करते हुए कहा, 'दो बड़ी गलतियां नेहरू के कार्यकाल में हुई. नेहरू के समय में जो गलतियां हुई थीं, उसका खामियाजा वर्षों तक कश्मीर को उठाना पड़ा। पहली और सबसे बड़ी गलती वह थी जब जब हमारी सेना जीत रही थी, पंजाब का क्षेत्र आते ही संघर्ष विराम कर दिया गया और पीओके का जन्म हुआ. अगर संघर्ष विराम तीन दिन बाद होता तो आज पीओके भारत का हिस्सा होता.'
उनका कहना था कि दूसरा ब्लंडर संयुक्त राष्ट्र में भारत के आंतरिक मसले को ले जाने का था.
शाह ने कहा, 'मेरा मानना है कि इस मामले को संयुक्त राष्ट्र में नहीं ले जाना चाहिए था, लेकिन अगर ले जाना था तो संयुक्त राष्ट्र के चार्टर 51 के तहत ले जाना चाहिए था, लेकिन चार्टर 35 के तहत ले जाया गया. नेहरू ने खुद माना था कि यह गलती थी, लेकिन मैं मानता हूं कि यह ब्लंडर था.'
इस बीच बीजू जनता दल के भर्तृहरि ने कहा कि इसके लिए हिमालयन ब्लंडर (विशाल भूल) का प्रयोग किया जाता है और गृह मंत्री चाहे तो इसका भी इस्तेमाल कर सकते हैं. नेहरू के संदर्भ में शाह की टिप्पणियों कांग्रेस के सदस्यों ने पुरजोर विरोध किया तथा इस दौरान सत्तापक्षा और विपक्ष के बीच तीखी नोकझोंक भी हुई. बाद में कांग्रेस और कुछ अन्य विपक्षी दलों के सदस्य सदन से वाकआउट कर गए. शाह ने कहा कि जम्मू कश्मीर से संबंधित जिन दो विधेयकों पर सदन में विचार हो रहा है, वे उन सभी लोगों को न्याय दिलाने के लिए लाये गये हैं जिनकी 70 साल तक अनदेखी की गई और जिन्हें अपमानित किया गया.
उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी गरीबों का दर्द समझते हैं तथा एकमात्र ऐसे नेता हैं जिन्होंने पिछड़ों के आंसू पोंछे हैं.
विधेयक का नाम बदलने के कुछ विपक्षी सदस्यों के सवाल पर गृह मंत्री ने कहा, 'नाम के साथ सम्मान जुड़ा है, इसे वही लोग समझ सकते हैं, जो पीछे छूट गए लोगों को संवेदना के साथ आगे बढ़ाना चाहते हैं. मोदी जी ऐसे नेता हैं, जो गरीब घर में जन्म लेकर देश के प्रधानमंत्री बने हैं, वह पिछड़ों और गरीबों का दर्द जानते हैं. वो लोग इसे नहीं समझ सकते, जो इसका उपयोग वोटबैंक के लिए करते हैं.'
शाह ने कहा, 'यह वो लोग नहीं समझ सकते हैं जो लच्छेदार भाषण देकर पिछड़ों को राजनीति में वोट हासिल करने का साधन समझते हैं. प्रधानमंत्री पिछड़ों और गरीब का दर्द जानते हैं.' उन्होंने कश्मीरी पंडितों के विस्थापन का उल्लेख करते हुए कहा कि वोट बैंक की राजनीति किए बगैर अगर आतंकवाद की शुरुआत में ही उसे खत्म कर दिया गया होता तो कश्मीरी विस्थापितों को कश्मीर छोड़ना नहीं पड़ता.
शाह के अनुसार, पांच-छह अगस्त, 2019 को कश्मीर से अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को समाप्त करने के संबंध में जो विधेयक संसद में लाया गया था उसमें यह बात शामिल थी और इसलिए विधेयक में न्यायिक परिसीमन की बात कही गई है.
गृह मंत्री का कहना था, 'अगर परिसीमन पवित्र नहीं है तो लोकतंत्र कभी पवित्र नहीं हो सकता. इसलिए हमने विधेयक में न्यायिक परिसीमन की बात की है. हमने परिसीमन की सिफारिश के आधार पर तीन सीटों की व्यवस्था की है. जम्मू कश्मीर विधानसभा में दो सीट कश्मीर से विस्थापित लोगों के लिए और एक सीट पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) से विस्थापित हुए लोगों के लिए है.'
गृह मंत्री के अनुसार, विधानसभा में नौ सीट अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित की गई हैं. शाह ने कहा कि पीओके लिए 24 सीटें आरक्षित की गई हैं क्योंकि पीओके हमारा है. उन्होंने कहा कि इन दोनों संशोधन को हर वो कश्मीरी याद रखेगा जो पीड़ित और पिछड़ा है. गृह मंत्री ने कहा कि विस्थापितों को आरक्षण देने से उनकी आवाज जम्मू-कश्मीर की विधानसभा में गूंजेगी. शाह ने कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी के सवालों पर कहा कि कश्मीरी विस्थापितों के लिए 880 फ्लैट बन गए हैं और उनको सौंपने की प्रक्रिया जारी है. उन्होंने कहा कि नरेन्द्र मोदी एकमात्र ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने विस्थापित लोगों के आंसू पोंछे हैं.
शाह ने कहा कि कश्मीर में जिनकी संपत्तियों पर कब्जा किया गया उन्हें वापस लेने के लिए कानून भाजपा की सरकार ने बनाया. उन्होंने कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी का नाम लिए बगैर उन पर निशाना साधते हुए कहा, 'कांग्रेस के नेता ओबीसी की बात करते हैं...कुछ नेता होते हैं उन्हें कुछ लिखकर हाथ में पकड़ा दो तो जब तक नई पर्ची नहीं मिलती, वह छह महीने तक एक ही बात बोलते रहते हैं.'
शाह ने आरोप लगाया कि पिछड़े वर्गों का सबसे बड़ा विरोध और पिछड़े वर्गों को रोकने का काम कांग्रेस ने किया है. उन्होंने कहा कि सवाल किया जाता है कि अनुच्छेद 370 को समाप्त करने के बाद कश्मीर में क्या हासिल हुआ. शाह ने कहा कि पहले लोग कहते थे कि अनुच्छेद 370 समाप्त हो जाएगी तो वहां खून की नदियां बह जाएंगी, लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने इसके प्रावधानों को समाप्त कर दिया और एक कंकड़ तक नहीं उछाला गया.
उनका कहना था, 'आतंकवाद से 45000 लोगों की मौत हुई है. मैं मानता हूं कि इसके लिए जिम्मेदार धारा 370 थी.' शाह ने कहा कि मोदी सरकार में जम्मू-कश्मीर जाने वाले पर्यटकों की संख्या तेजी से बढ़ी है तथा यह दो करोड़ को पार कर गई है.
जम्मू कश्मीर आरक्षण (संशोधन) विधेयक, जम्मू कश्मीर आरक्षण अधिनियम 2004 में संशोधन करता है. यह अनुसूचित जाति और जनजाति तथा अन्य सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लोगों को नौकरियों और व्यावसायिक संस्थानों में आरक्षण प्रदान करता है. वहीं, जम्मू कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 में संशोधन करता है. प्रस्तावित विधेयक से विधानसभा सीटों की कुल संख्या बढ़कर 83 से बढकर 90 हो जाएगी. इसमें अनुसूचित जाति के लिए 7 सीटें और अनुसूचित जनजाति के लिए 9 सीटें आरक्षित हैं. साथ ही उपराज्यपाल कश्मीरी प्रवासी समुदाय से एक महिला सहित दो सदस्यों को विधान सभा में नामांकित कर सकते हैं.
शाह से पहले क्या कहा नेताओं ने - अमित शाह से पहले इस विषय पर केंद्रीय मंत्री अनुराग सिंह ठाकुर ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के पहले पीएम जवाहर लाल नेहरू के समय की गई गलतियों को सुधारा है. उन्होंने कहा कि 2019 के बाद इसे महसूस किया जा सकता है. नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रमुख फारूख अब्दुल्ला ने राज्य में विधानसभा चुनाव नहीं कराने का मुद्दा उठाया. एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले ने भी इस विषय को उठाया. अनुराग ठाकुर ने कहा कि विपक्ष के लोग कुछ परिवारों का नाम बार-बार ले रहे हैं, लेकिन वे लोग न तो महाराजा हरि सिंह का नाम लेते हैं, और न ही सरदार वल्लभ भाई पटेल का नाम लेते हैं. उन्होंने कहा कि 60 साल तक कांग्रेस शासन में रहा, और इस दौरान 45 हजार से अधिक सैनिक और आम आदमी मारे गए, यहां तक कि सैनिकों को बुलेटप्रूफ जैकेट नहीं दिया गया.
द्रमुक के डीएनवी सेंथिलकुमार ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार जम्मू कश्मीर को उपराज्यपाल के जरिये चलाना चाहती और इसलिए वहां चुनाव नहीं कराए जा रहे. उन्होंने दावा किया कि भाजपा के पास जम्मू कश्मीर और दक्षिण भारत के राज्यों में चुनाव जीतने की क्षमता नहीं है. उन्होंने देश में जाति आधारित जनगणना कराने की मांग की. जनता दल (यूनाइटेड) के कौशलेंद्र कुमार ने इस विधेयक को स्वागत योग्य बताया और देश में जातीय जनगणना कराने की मांग की. उन्होंने कहा कि सरकार ने जम्मू कश्मीर में जल्द चुनाव कराने की बात कही थी, लेकिन अभी तक स्थिति में बदलाव नहीं है.
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के मलूक नागर ने कहा कि पहले कश्मीर के गुर्जर बक्करवाल समुदाय के वोट लिये जाते थे लेकिन सुविधाएं नहीं दी जाती थीं, लेकिन अनुच्छेद 370 हटने के बाद इस समुदाय के लोगों को सुविधाएं दी जा रही हैं. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की सुप्रिया सुले ने कहा कि कश्मीर कठिन यात्रा से गुजरा है और वहां जल्द निष्पक्ष चुनाव कराये जाने चाहिए. उन्होंने कहा कि सरकार को राज्य में एक समुदाय को आरक्षण देने के बजाय पूरे राज्य में समग्र आरक्षण के लिए कोई विधेयक लाना चाहिए.
सुले ने कहा कि महाराष्ट्र में मराठा और लिंगायत समेत कुछ समुदाय आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे हैं, अन्य राज्यों में भी इस तरह की मांग हो रही है और सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए. सुले ने कहा, ‘‘जम्मू कश्मीर में हालात पहले से बेहतर जरूर हैं. सही चीज माननी चाहिए. इसलिए मैं सरकार की सराहना करती हूं, लेकिन अभी बहुत काम करने की जरूरत है.’’
उन्होंने जम्मू कश्मीर में पिछले कुछ महीनों में आतंकवादी हमलों में सेना के अधिकारियों और जवानों की शहादत का जिक्र करते हुए सरकार से इस ओर ध्यान देने की मांग की. नेशनल कॉन्फ्रेंस के हसनैन मसूदी ने चर्चा में शामिल होते हुए कहा कि जम्मू कश्मीर को विभाजित करने और वहां से अनुच्छेद 370 हटाने का मुद्दा अदालत में विचाराधीन है, ऐसे में सरकार को इस विधेयक को लाने के लिए अदालत के फैसले का इंतजार करना चाहिए था. उन्होंने दावा किया कि सरकार को संविधान के तहत किसी राज्य को दो हिस्सों में बांटने का अधिकार ही नहीं है. उन्होंने कहा कि संसद में वादा किया गया था कि जम्मू कश्मीर की विधानसभा को बहाल किया जाएगा, लेकिन राज्य की बात यहां संसद में हो रही है. मसूदी ने कहा कि यदि पांच अगस्त, 2019 को जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 समाप्त होने के बाद सबकुछ ठीक होने का सरकार का दावा सही है तो वहां अब तक चुनाव क्यों नहीं कराये गये. उन्होंने केंद्रशासित प्रदेश में तत्काल चुनाव कराने की मांग दोहराई.
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