अल्मोड़ा : उत्तराखंड केपहाड़ी इलाकों में किसानों को अबहाइड्रोपोनिक तकनीक (uttarakhand Hydroponic Technology) से काश्तकारी रास आ रही है. वे बिना मिट्टी के खेती कर भारी मात्रा में फल और हरी सब्जियां उगा रहे हैं. इस तकनीक का सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि आप किसी भी मौसम में फल-सब्जी की खेती कर सकते हैं. अब इस तकनीक का सहारा पहाड़ के काश्तकार भी (Hydroponic Farming In Almora) लेने लगे हैं. अल्मोड़ा के प्रगतिशील काश्तकार दिग्विजय सिंह बोरा पिछले एक साल से हाइड्रोपोनिक तकनीक से काश्तकारी में जुटे हैं. इस तकनीक का सहारा लेने वाले वह अल्मोड़ा के पहले काश्तकार हैं. दिग्विजय सिंह हाइड्रोपोनिक तकनीक (Digvijay Singh Hydroponic Techniques) से सलाद पत्ता और अन्य मौसमी सब्जियों की खेती कर रहे हैं, जिसकी दिल्ली समेत अन्य महानगरों में भारी मांग है.
जनपद के पहले किसान :अल्मोड़ा के स्याही देवी क्षेत्र में दिग्विजय सिंह बोरा पिछले 20 वर्षों से काश्तकारी में जुटे हैं. वह लंबे समय से नए-नए प्रयोग के साथ मौसमी सब्जी और फलों की खेती करते हैं. लेकिन एक साल से वह अब हाइड्रोपोनिक तकनीक से काश्तकारी कर रहे हैं. पहाड़ी क्षेत्रों में हाइड्रोपोनिक तकनीक से खेती किसानी करने वाले दिग्विजय सिंह पहला उदाहरण बन गए हैं. दिग्विजय सिंह ने बताया कि एक साल पहले उन्होंने एक बाहरी कंपनी की मदद से 500 वर्ग मीटर क्षेत्रफल में पॉलीहाउस लगाया. हाइड्रोपोनिक तकनीक से यूनिट तैयार की. इसमें वह सलाद पत्ता की करीब आधा दर्जन से अधिक किस्म और मौसमी सब्जियों की खेती कर रहे हैं. इसकी मार्केटिंग दिल्ली की कोई कंपनी कर रही है.
अन्य शहरों से बढ़ी मांग :वह हर हफ्ते एक वातानुकूलित वैन के माध्यम से सलाद पत्ता और सब्जियां दिल्ली, लखनऊ समेत कई महानगरों को भेजते हैं. वह बताते हैं कि इसकी डिमांड पांच सितारा होटल से लेकर सात सितारा होटलों में काफी है. वह अब तक लाखों रुपये का सलाद पत्ता और सब्जियां बेच चुके हैं. सलाद पत्ता में वह ओकलीफ लेट्यूस, लोकार्नो लेट्यूस, रेड़िकियो लेट्यूस, फ्रिजी लेट्यूस समेत विभिन्न प्रजातियां उगा रहे हैं.
पानी की कम खपत में ज्यादा मुनाफा :दिग्विजय बोरा बताते हैं कि हाइड्रोपोनिक तकनीक में पानी की खपत कम बचत ज्यादा है. पानी की थोड़ी मात्रा में ज्यादा उत्पादन होता है, बढ़ते जल संकट में यह तकनीक जल संरक्षण में भी मददगार साबित होगी. दूसरा, इस विधि से उगाई सब्जियों के पौधों में रोग नहीं लगता है. साथ ही इस विधि से उत्पादन में समय भी कम लगता है.