वाराणसी:सनातन धर्म में पर्व और त्योहारों का विशेष महत्व माना जाता है और अपने पुण्य को अक्षय रखने वाले महापर्व अक्षय तृतीया का विशेष महत्व होता है. दान पुण्य के साथ ही किसी नई वस्तु को खरीदने स्वर्ण आभूषण लाने और अपने जीवन को तरक्की की राह पर अग्रसर करने के लिए इस दिन किए गए कुछ उपाय पूरे वर्ष पर्यंत अच्छे नतीजे देते हैं. सही समय पर पूजा आराधना और श्री हरि विष्णु और माता लक्ष्मी का ध्यान हर तरह की मुसीबतों से निजात दिलाता है.
इस बार 22 अप्रैल को पड़ रही अक्षय तृतीया तीन ऐसे अद्भुत योग के साथ आ रही है. जिनमें श्री हरि विष्णु और माता लक्ष्मी की आराधना आपके जीवन के उन तमाम कष्टों का निवारण करेगी. इस अक्षय तृतीया कौन से अद्भुत योग आपके जीवन में परिवर्तन लाने वाले हैं.
अक्षय तृतीया पर 6 अद्भुत योग के बारे में ज्योतिषाचार्य आचार्य दैवज्ञ कृष्ण शास्त्री के बताया कि अक्षय तृतीया या आखा तीज वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को कहते हैं. पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है. इसी कारण इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है. वैसे तो सभी बारह महीनों की शुक्ल पक्षीय तृतीया शुभ होती है, किन्तु वैशाख माह की तिथि स्वयंसिद्ध मुहूर्तों में मानी गई है.
पंडित दैवज्ञ की मानें तो भविष्य पुराण के अनुसार इस तिथि की युगादि तिथियों में गणना होती है. सतयुग और त्रेता युग का प्रारंभ इसी तिथि से हुआ है. भगवान विष्णु ने नर-नारायण, हयग्रीव और परशुराम जी का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था. ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का आविर्भाव भी इसी दिन हुआ था. इस दिन श्री बद्रीनाथ की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती है और श्री लक्ष्मी नारायण के दर्शन किए जाते हैं. प्रसिद्ध तीर्थ स्थल बद्रीनारायण के कपाट भी इसी तिथि से ही पुनः खुलते हैं. वृन्दावन स्थित श्री बाँके बिहारी जी मन्दिर में भी केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं अन्यथा वे पूरे वर्ष वस्त्रों से ढके रहते हैं.
पंडित दैवज्ञ के अनुसार तृतीया 41 घटी 21 पल होती है तथा धर्म सिन्धु एवं निर्णय सिन्धु ग्रन्थ के अनुसार अक्षय तृतीया 6 घटी से अधिक होना चाहिए. पद्म पुराण के अनुसार इस तृतीया को अपराह्न व्यापिनी मानना चाहिए. इसी दिन महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था और द्वापर युग का समापन भी इसी दिन हुआ था. ऐसी मान्यता है कि इस दिन से प्रारम्भ किए गए कार्य अथवा इस दिन को किए गए दान का कभी भी क्षय नहीं होता.