नई दिल्ली : महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री शरद पवार ने कभी जिस तरह की राजनीतिक 'बगावत' की थी, आज वैसा ही कुछ उनके साथ हो गया. उनकी पार्टी के अधिकांश विधायक अजित पवार के साथ चले गए. कम के कम अजित पवार तो ऐसा ही दावा कर रहे हैं. शरद पवार ने 1978 में इंदिरा गांधी के खिलाफ बगावत की थी.
तब पवार ने कांग्रेस के बंसतराव पाटिल की सरकार गिरा दी थी. उसके बाद पवार ने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी थी. राजनीति में शरद पवार का यह पहला 'विद्रोही' कदम था. यह साल था 1978 का. उस समय शरद पवार ने जनता पार्टी के साथ मिलकर सरकार बना ली थी. वह मात्र 38 साल की उम्र में महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री बन गए थे. जाहिर है, 1980 में जब इंदिरा गांधी फिर से केंद्र में सत्ता में लौटीं, उन्होंने महाराष्ट्र में शरद पवार की सरकार बर्खास्त कर दी.
सरकार गिरने के तीन साल बाद शरद पवार ने कांग्रेस पार्टी सोशलिस्ट का गठन किया. शरद पवार तब बारामती से सांसद थे. 1985 के विधानसभा चुनाव में वह फिर से राज्य की राजनीति में वापस लौट गए. वह विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता बन गए.
1987 में शरद पवार और राजीव गांधी करीब आए और पवार को कांग्रेस में फिर से शामिल कर लिया गया. कांग्रेस ने 1988 में उन्हें सीएम बना दिया. उन्हें शंकर राव चव्हाण की जगह सीएम बनाया गया था. चव्हाण को केंद्र में मंत्री बना दिया गया. 1990 में शरद पवार ने 12 निर्दलीय विधायकों के समर्थन से तीसरी बार सरकार बनाई.
1991 में राजीव गांधी की हत्या हो गई थी. उसके बाद कांग्रेस की कमान किसे सौंपी जाए, इस पर चर्चा की जा रही थी. उस समय शरद पवार का नाम सबसे आगे चल रहा था. दो अन्य नाम थे पीवी नरसिंह राव और नारायण दत्त तिवारी का. ऐसा लग रहा था कि शरद पवार पीएम बन सकते हैं. उस समय की मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि एनडी तिवारी गांधी परिवार की पसंद थे. पर, तिवार चुनाव हार गए थे. इसलिए शरद पवार की उम्मीदें बढ़ गई थीं.
लेकिन बाजी नरसिंह राव के हाथ लगी. नरसिंह राव पीएम बन गए. शरद पवार मन मसोसकर रह गए. ऐसा माना गया था कि नरसिंह राव को गांधी परिवार अपने हिसाब से चला सकता है. पवार को रक्षा मंत्री बनाया गया था.