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दिल्ली में प्रदूषण की स्थिति पर एम्स के निदेशक की चेतावनी - गंभीर स्थिति में पहुंच सकता है कोरोना - डॉ. रणदीप गुलेरिया

दीपावली के बाद दिल्ली में प्रदूषण खतरनाक रूप से बढ़ रहा है. ऐसे में फेफड़े संबंधित बीमारी से पीड़ित मरीजों की परेशानी बढ़ गयी है. दूसरी तरफ एम्स के डायरेक्टर डॉ. रणदीप गुलेरिया ने यह कहकर चिंता बढ़ा दी है कि प्रदूषण का कोरोना केस से सीधा संबंध है. कोविड मरीजों के लिए काफी खतरनाक बताया है.

डॉ. रणदीप गुलेरिया
डॉ. रणदीप गुलेरिया

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Published : Nov 6, 2021, 6:51 PM IST

नई दिल्ली :राजधानीदिल्ली में प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है. इसकी भयावहता एम्स के डायरेक्टर डॉ. रणदीप गुलेरिया के उस बयान से पता चलता है जिसमें उन्होंने कहा है कि बढ़ता हुआ प्रदूषण कोरोना के मरीजों के लिए न सिर्फ खतरनाक है, बल्कि यह कोरोना के मामले बढ़ाने में भी काफी सहायक होता है. यानि जैसे-जैसे प्रदूषण का लेवल बढ़ता जाएगा वैसे-वैसे कोरोना केस भी बढ़ते जाएंगे. अभी तक कोरोना जो शांत अवस्था में पहुंच गया था. अब बढ़ते प्रदूषण की वजह से इसे बढ़ने का एक अनुकूल माहौल मिल रहा है. अगर एम्स के डायरेक्टर की बात में सच्चाई है तो कोरोना की तीसरी लहर दूर नहीं है.

एम्स दिल्ली के डायरेक्टर एवं पलमोनरी डिजीज स्पेशलिस्ट डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा कि सांस संबंधी समस्याओं के लिए प्रदूषण एक बड़ी समस्या है. खास कर उन मरीजों में जो अस्थमा या लंग्स संबंधित बीमारी से पीड़ित हैं. वायु प्रदूषण एवं कोरोनावायरस इन मरीजों पर बुरा असर डालते हैं. ऐसे में कोविड-19 से पीड़ित मरीज बढ़ते प्रदूषण की वजह से अधिक खतरे की स्थिति में हैं. कोरोना संक्रमण के चलते पहले ही डैमेज हो रहे फेफड़े की वजह से वायु प्रदूषण के बढ़ने से कोरोना मरीजों की मृत्यु होने की संभावना बढ़ जाती है.

अक्टूबर एवं नवंबर महीने में प्रदूषण बढ़ने के ये हैं कारण

प्रदूषण बढ़ने की वजह के बारे में डॉक्टर गुलेरिया ने बताया कि अक्टूबर और नवंबर के महीने में हवा की गति नगण्य होती है. इसी दौरान कुछ प्रदेशों में पराली जलाई जाती है और इसी दौरान दीपावली का त्योहार में पटाखे भी जलाए जाते हैं. इन सब की वजह से प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ जाता है.

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केवल फेफड़े ही नहीं दिल को भी होता है नुकसान

सांस रोग विशेषज्ञ डॉक्टर गुलेरिया बताते हैं कि इस दौरान जब प्रदूषण खतरनाक स्थिति में पहुंच गया है तो इसकी वजह से केवल सांस संबंधी समस्याएं ही नहीं होती, बल्कि हृदय संबंधित समस्याएं भी काफी बढ़ जाती हैं. खासकर उन मरीजों में जो पहले से ही सांस संबंधित गंभीर बीमारी की चपेट में हैं या जिन्हें क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस है, दमा से पीड़ित हैं. इन मरीजों को सांस संबंधी गंभीर समस्याएं हो सकती हैं. बढ़ते प्रदूषण की स्थिति में उन्हें इनहेलर या नेबुलाइजर पर निर्भर रहना पड़ सकता है.

कोरोना वायरस का प्रदूषण से संबंध

डॉ. गुलेरिया ने बताया कि दो तरह के आंकड़े उपलब्ध हैं, जो यह संकेत करते हैं कि प्रदूषण कोरोना के मरीजों को काफी गंभीर रूप से प्रभावित करता है. एक आंकड़ा बताता है कि प्रदूषण के माहौल में कोरोना वायरस लंबे समय तक हवा में रह सकते हैं. जब प्रदूषक तत्व पहले से ही हवा में मौजूद होते हैं. ऐसी परिस्थितियों में कोरोना वायरस एयर बोर्न डिजीज में परिवर्तित हो जाती हैं. जबकि दूसरा आंकड़ा जिसे कोरोना सॉर्स 2003 में बढ़ने के दौरान कलेक्ट किए गया था, इसके मुताबिक प्रदूषण की वजह से फेफड़े में इन्फ्लेमेशन के चलते सूजन आ जाती है. इससे फेफड़ा डैमेज होने लगता है. इसीलिए प्रदूषण और कोरोनावायरस का कॉकटेल काफी खतरनाक माना जाता है.

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मास्क पहनें और ज्यादा प्रदूषण वाली जगह जाने से परहेज करें

डॉक्टर गुलेरिया ने लोगों से अपील की है कि वे कोविड-19 अनुकूल व्यवहार के तहत चेहरे पर मास्क हमेशा लगा कर रखें. इससे दोहरा लाभ होगा. प्रदूषण से तो बचाव होगा ही कोरोना वायरस से भी बचाव होगा. साथ ही उन्होंने उस जगह पर जाने से मना किया है जहां प्रदूषण का स्तर खतरनाक रूप से बढ़ा हुआ है.

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