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बंगाल में नेतृत्व संकट से जूझ रही AIMIM, टीएमसी प्रसन्न - अध्यक्ष मोहम्मद सैफुल्ला खान

एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भले ही प. बंगाल चुनाव में भाग लेने का ऐलान कर दिया हो, लेकिन हाल ही में उनके कई नेताओं ने पाला बदल दिया है. इसे देखकर टीएमसी प्रसन्न दिख रही है. टीएमसी का दावा है कि उनकी पार्टी अल्पसंख्यकों के वोटों का बंटवारा नहीं होने देगी. पेश है ईटीवी भारत कोलकाता ब्यूरो प्रमुख सुमंत रॉय चौधरी की एक रिपोर्ट.

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Published : Dec 11, 2020, 7:45 PM IST

कोलकाता : बिहार चुनाव में मिली जीत के बाद ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएमआईएम) की पश्चिम बंगाल में एंट्री के कयास लगाए जाने लगे हैं. यहां पर अगले साल विधानसभा के चुनाव होने हैं.

अनुमान लगाया जा रहा है कि यदि एआईएमआईएम की बंगाल में एंट्री होती है, तो इससे भाजपा को फायदा पहुंचेगा. इसकी वजह होगी मुस्लिम वोटों का बंटवारा. बिहार में इसी आधार पर उनकी पार्टी को पांच सीटें मिलीं. हालांकि, हाल के दिनों में एआईएमआईएम की बंगाल इकाई के कई नेताओं ने तृणमूल का दामन थाम लिया. इसके बाद से पार्टी की परेशानी बढ़ गई है.

पार्टी प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि उनकी पार्टी बंगाल चुनाव लड़ेगी. वह प. बंगाल में राजनीतिक बैठकों की जल्द ही शुरुआत भी करने वाले हैं.

ओवैसी ने अभी से ही मुस्लिम समुदायों से संपर्क साधना शुरू कर दिया है. उन संस्थाओं के प्रतिनिधियों से मिल रहे हैं, जो उनका प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. यही वजह है कि यहां भी बिहार की तरह कयास लगाए जा रहे हैं कि कहीं एआईएमआईएम वोटों का विभाजन न कर दे.

इस बारे में जब तृणमूल सरकार के एक मंत्री फिरहाद हाकिम से पूछा गया, तो उन्होंने एआईएमआईएम को बहुत अधिक तवज्जो न देने की बात कही. इसी तरह से वाम के साथ-साथ कांग्रेस भी ओवैसी की पार्टी को बहुत अधिक महत्व नहीं दे रही है.

नवंबर महीने से एआईएमआईएम के कई नेता तृणमूल का दामन थाम चुके हैं. 23 नवंबर को इनकी पार्टी के शीर्ष नेता अनवर शाह तृणमूल में शामिल हो गए.

एआईएमआईएम की छात्र इकाई को भी झटका लगा है. छात्र इकाई के अध्यक्ष मोहम्मद सैफुल्ला खान और उनके 30 साथियों ने इसी मंगलवार को टीएमसी की सदस्यता ग्रहण कर ली. फिरहाद हाकिम ने उन्हें ज्वाइन करवाया.

सैफुल्ला खान ने बताया कि वह हर हाल में चाहते हैं कि बंगाल में भाजपा को बढ़त न मिले. लिहाजा, अल्पसंख्य वोटों का बंटवारा रोकना पहली प्राथमिकता है. इस नए ट्रेंड से टीएमसी की नेतृत्व खुश दिख रहा है. उन्हें उम्मीद है कि आने वाले समय में एआईएमआईएम के कई नेता पार्टी में आएंगे.

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उन्होंने बताया कि अल्पसंख्यकों के बीच काम करने वाली संस्थाएं हर हाल में भाजपा को सत्ता में आऩे से दूर रखना चाहती हैं. और बंगाल में यह काम सिर्फ टीएमसी ही कर सकती है.

इसके बावजूद एआईएमआईएम का कुछ इलाकों में प्रभाव दिखता है, तो निश्चित तौर पर यह भाजपा के हक में जाएगा. लिहाजा, बिहार में धर्मनिरपेक्ष पार्टियों का जो हश्र हुआ, उसे देखकर कहा जा सकता है कि अल्पसंख्यक समुदाय अपने मतों का बंटवारा होने नहीं देंगे. यह एक ऐसा भय है, जिसका टीएमसी अधिक से अधिक दोहना करना चाहेगी.

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