हैदराबाद :जैसे-जैसे गुजरात विधानसभा चुनाव (gujarat assembly election) की तारीखें नजदीक आती जा रही हैं, यह चुनाव उतना ही अधिक दिलचस्प होता जा रहा है, खासकर मुस्लिम इलाकों में. वजह है मुस्लिम उम्मीदवारों की संख्या में इजाफा. चुनावी मैदान में अब ऑल इंडिया मजलिस ए एत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएमआईएम) भी पहुंच चुकी है. पार्टी का दावा है कि वह मुसलमानों की भावनाओं का प्रभावी ढंग से प्रतिनिधित्व करती है. पार्टी ने 14 उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं. उनमें से 12 उम्मीदवार मुस्लिम हैं, जिन्हें उन इलाकों में खड़ा किया गया है, जहां की अधिकांश आबादी मुस्लिम है. पर, ऐसा लगता है कि असदुद्दीन ओवैसी (एआईएमआईएम प्रमुख) की यह रणनीति कहीं न कहीं भाजपा को फायदा पहुंचा रही है. ओवैसी ने जहां-जहां पर अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं, वहां पर जितनी भी गैर भाजपा पार्टियां हैं, उनकी भी सोच ऐसी ही है.
अब जरा देखिए, भाजपा के अपने परंपरागत मतदाता हैं. वे लंबे समय से उनके साथ बने हुए हैं. उनमें सेंधमारी करना मुश्किल है. दूसरी ओर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी है. इनके मतदाताओं तक पहुंच बहुत आसान है. ऐसा माना जाता है कि राज्य के मुस्लिम मतदाता आम तौर पर कांग्रेस को वोट करते हैं. लेकिन इस चुनाव ने उनके सामने और भी कई विकल्प रख दिए हैं. उनके सामने आप और एआईएमआईएम भी आ गईं हैं. निश्चित तौर पर वे उन्हीं वोटों में सेंधमारी करेंगी, जो अब तक किसी एक पार्टी को मिला करते थे. यानी मुस्लिम वोटरों का बंटवारा तय है.
अगर आप हाल ही में हुए बिहार उप-चुनाव को याद करें, तो पूरी तस्वीर आपके सामने स्पष्ट हो जाएगी. बिहार की गोपालगंज सीट पर उपचुनाव हुआ था. यहां पर एआईएमआईएम ने भाजपा को जिताने में बड़ी भूमिका निभाई. इस सीट पर एआईएमआईएम को 12,214 वोट मिले. जबकि भाजपा और राजद के बीच मतों का अंतर मात्र 1794 था. अगर ओवैसी अब्दुल सलाम नाम के अपने उम्मीदवार को खड़ा नहीं करते, तो इस सीट से भाजपा की हार तय थी. राजद उम्मीदवार 10 हजार वोटों के अंतर से जीत सकते थे. इसी तरह से अहमदाबाद की जमालपुर खड़िया सीट है. यहां का भी समीकरण बिहार के गोपालगंज की तरह है. एआईएमआईएम कांग्रेस और आप, दोनों का खेल बिगाड़ सकती है.
जमालपुर-खड़िया में 'छीपा' आबादी ठीक-ठाक है. छीपा मुसलमानों का ही एक समुदाय है. कांग्रेस और एआईएमआईएम, दोनों ने एक ही समुदाय से अपने-अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं. ये हैं इमरान खेडावाला और साबिर काबलिवाला. इमरान अभी सिटिंग विधायक हैं. साबिर एआईएमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष हैं. इस समुदाय के लोग अब तक एकतरफा वोट करते आए हैं. लेकिन इस बार भी ऐसा होगा, कहना मुश्किल है. क्योंकि दोनों उम्मीदवार एक ही समुदाय से हैं. एक बार फिर से फायदा किसे मिलेगा, जाहिर है भाजपा को.
पिछले कुछ समय से इस बात की भी गाहे-बगाहे चर्चा हो ही जाती है कि ओवैसी, भाजपा की 'बी' टीम की तरह काम कर रहे हैं. बिहार उपचुनाव के परिणाम आने के बाद से तो ओवैसी की विश्वसनीयता को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं. विश्लेषकों का मानना है कि वे मतों का विभाजन करते हैं. गुजरात में चुनाव प्रचार के दौरान ओवैसी के खिलाफ प्रदर्शन भी हुए थे. उन्होंने ओवैसी विरोधी नारे भी लगाए, यह सब उस समय हुआ, जब ओवैसी अपने उम्मीदवार का प्रचार कर रहे थे. उन्हें भाजपा और आरएसएस का 'एजेंट' तक कहा गया.
ओवैसी ने बापूनगर से अपने उम्मीदवार का नाम वापस ले लिया है. यह देखना बाकी है कि उन्होंने इसे डैमेज कंट्रोल करने के लिए किया है, या फिर किसी रणनीति के तहत इसका निर्णय लिया गया है. बापूनगर में 16 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं. यहां से कांग्रेस ने हिम्मत सिंह को मैदान में उतारा है. एआईएमआईएम ने यहां से शाहनवाज पठान को उम्मीदवार बनाया था. बापूनगर, अहमदाबाद में पड़ता है.