नई दिल्ली : दिल्ली एम्स के डॉक्टरों ने सबसे खतरनाक कैंसर मैटेस्टेटिक गैस्ट्रोइंटेरोपैंक्रिेएटिक कैंसर के प्रभावी इलाज अल्फा थेरेपी पर अध्ययन किया है. जिसके काफी उत्साहजनक परिणाम देखने को मिले हैं. इस कैंसर से पीड़ित मरीजों के टारगेटेडि थेरेपी से अधिक समय तक जीवित रहने की संभावना काफी बढ़ गई है. न्यूक्लियर मेडिसिन विभाग ने बीआर अंबेडकर रोटरी कैंसर अस्पताल में मेडिकल ऑन्कोलॉजी विभाग के सहयोग से मेटास्टैटिक वाले कैंसर के मरीजों के जीवित रहने के परिणामों पर एक महत्वपूर्ण अध्ययन जारी किया है.
टारगेटेड डोटाटेप थेरेपी इस कैंसर से पीड़ित मरीज पर कितना कारगर है इसको लेकर एम्स में आने वाले मरीजों पर इसका अध्ययन किया गया. न्यूक्लियर मेडिसीन विभाग के अध्यक्ष डॉ. सीएस बाल ने अपने विभाग में चार वर्षों के दौरान 91 मरीजों पर स्टडी के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि मैटेस्टेटिक गैस्ट्रोइंटेरोपैंक्रिएटिक कैंसर से पीड़ित मरीजों की लाइफ 26 महीने तक बढ़ाई जा सकती है. जबकि, आम कीमोथेरेपी और रेडिएशन से केवल 3-4 महीने तक ही मरीज सर्वाइव कर सकता है. डॉ. बाल की यह अनोखी स्टडी जर्नल ऑफ न्यूक्लियर मेडिसीन में पब्लिश होने के बाद पूरे यूरोप में तहलका मचा रहा है.
91 मरीजों पर 4 साल तक किया अध्ययनःडॉ. बाल ने बताया कि उन्होंने टारगेटेड अल्फा थेरेपी पर मार्च 2018 में स्टडी शुरू की थी. इसके लिए उन्होंने मैटेस्टेटिक गैस्ट्रोइंटेरोपैंक्रिएटिक कैंसर से पीड़ित 91 मरीजों को तीन वर्गों में बांट कर स्टडी की. हर ग्रुप में एक तिहाई मरीजों को शामिल किया. पहले ग्रुप के मरीजों को पारंपरागत बीटा थेरेपी दी गई. मरीज की मौत के साथ ही यह प्रयोग फेल हो गया.