नई दिल्ली: कर्नाटक के बाद राजस्थान, भारत का एक महत्वपूर्ण राज्य है, जहां राजनीतिक स्थिति में तेजी से बदलाव हो रहा है. भारतीय जनता पार्टी राजस्थान में बहुत ही महत्वपूर्ण चुनावी योजनाओं और कार्यक्रमों की योजना बना रही है, क्योंकि इस राज्य में आगामी विधानसभा चुनाव होने हैं. बीजेपी को इस साल के अंत में होने वाले मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान चुनाव में सबसे ज्यादा उम्मीद राजस्थान से ही है. इस चुनाव को लेकर राजस्थान में राजनीतिक दलों के बीच काफी तेज मुकाबला चल रहा है.
भाजपा को यह लगता है कि अगर सही समय पर वो राजस्थान के पार्टी नेताओं के बीच मतभेद को संभाल लें तो वे राजस्थान में सरकार बना सकते हैं. हालांकि, अंदरूनी विभाजन और गुटबाजी की समस्या पार्टी के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती है. सूत्रों की मानें तो पार्टी के अंदर ये बात भी उठ रही है कि यदि अलग-थलग पड़े क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर एक मजबूत गठबंधन बनाई जाए तो वो बीजेपी की ताकत को और बढ़ा सकते हैं. साथ ही जरूरत ये भी है कि बगावत कर रहे पार्टी के नेताओं या दूसरी पार्टी के बगावती नेताओं पर भी नजर रखी जाए और उन्हें पार्टी में मिलाने की कोशिश की जाय ताकि वो विपक्ष में भी सेंध लगा सकें.
भाजपा में राजस्थान के मुख्यमंत्री पद के लिए कई दावेदार हैं और सभी के अपने-अपने गुट हैं. एक ओर, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया हैं, जो गाहे-बगाहे अपनी दावेदारी पेश करती रहती हैं, वहीं दूसरी तरफ ये भी माना जा रहा है कि राजेंद्र राठौड़ जैसे कई करीबी नेताओं का साथ छोड़ने के कारण वसुंधरा राजे सिंधिया कमजोर हो गई हैं. राजेंद्र राठौड़ अब स्वयं ही मुख्यमंत्री पद के दावेदार के तौर पर उभर कर सामने आ रहे हैं. इसके अलावा, गाहे-बगाहे गजेंद्र सिंह शेखावत, अर्जुन राम मेघवाल, सतीश पूनिया जैसे कई अन्य नेताओं की भी चर्चा शुरू हो गई है. सतीश पूनिया के बाद प्रदेश अध्यक्ष के पद से चर्चा में आए सांसद सी पी जोशी भी आलाकमान की नजर में हैं. सी पी जोशी लगातार संगठन पर और प्रदेश में अपनी पकड़ मजबूत बनाए रखने की कोशिश में हैं.