द्रमुक के बाद अब अन्नाद्रमुक ने भी किया यूसीसी का विरोध, बीजेपी के साथ गठबंधन पर फैसला टला
भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित समान नागरिक संहिता (यूसीसी) का अब अन्नाद्रमुक ने विरोध किया है. अन्नाद्रमुक महासचिव और पूर्व मुख्यमंत्री एडप्पादी के पलानीस्वामी ने 2019 के चुनाव घोषणापत्र में पार्टी के पहले के रुख को दोहराया है.
अन्नाद्रमुक ने किया यूसीसी का विरोध
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Published : Jul 5, 2023, 8:04 PM IST
चेन्नई: अपने अल्पसंख्यक समर्थन आधार में लगातार गिरावट से आशंकित, प्रमुख विपक्षी अन्नाद्रमुक ने समान नागरिक संहिता का विरोध करके अपने राष्ट्रीय सहयोगी भाजपा से दूरी बना ली है. बता दें कि इन दिनों पूरे देश में यूसीसी की चर्चा जोरों पर है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार जोर इस लागू करने के लिए इसे संसद में पेश करने की योजना पर काम कर रही है. जहां कुछ पार्टियों ने केंद्र सरकार के इस कदम का समर्थन किया है, वहीं कई इसके विरोध में हैं.
विरोध करने वाली पार्टियों में शामिल एआईएडीएमके के महासचिव और पूर्व मुख्यमंत्री एडप्पादी के पलानीस्वामी ने बुधवार को मीडिया को बताया कि पार्टी अपने 2019 लोकसभा चुनाव घोषणापत्र पर कायम है, जिसमें उसने केंद्र सरकार से यूसीसी लागू नहीं करने का आग्रह किया था. उन्होंने कहा कि हमारे रुख में कोई बदलाव नहीं आया है. हमने 2019 के संसदीय चुनावों के लिए अपने घोषणापत्र में पहले ही इसे स्पष्ट कर दिया है. आप इसका उल्लेख कर सकते हैं.
उन्होंने यह बात इस सवाल के जवाब में कही कि क्या पार्टी अब यूसीसी का समर्थन कर रही है. वह दिन में चेन्नई में पार्टी जिला सचिवों और मुख्यालय पदाधिकारियों की बैठक से पहले मीडिया को संबोधित कर रहे थे. बैठक में 20 जुलाई को होने वाले पार्टी के मदुरै सम्मेलन की तैयारियों पर चर्चा होनी थी. धर्मनिरपेक्षता पर पार्टी का 2019 घोषणापत्र कहता है कि चूंकि यूसीसी धर्म और धार्मिक अधिकारों के संबंध में अल्पसंख्यकों को प्रदान की गई संवैधानिक गारंटी का उल्लंघन है, इसलिए एआईएडीएमके केंद्र से आग्रह करती है कि इसे किसी भी तरह से लागू करने से रोका जाए.
सत्ता में रहते हुए, अन्नाद्रमुक ने अल्पसंख्यक समुदायों के डर को दूर करते हुए नागरिक संशोधन अधिनियम (सीएए) और एनपीआर का समर्थन किया था. हालांकि, पार्टी नेताओं के एक वर्ग ने इसे गलत ठहराया था और इसे अल्पसंख्यक समर्थन आधार के क्षरण के कारणों में से एक बताया था, जिसके परिणामस्वरूप लगातार चुनावी हार हुई थी. जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में, पार्टी एक अकेली सीट जीत सकती थी, विधानसभा चुनाव में उसे हार का सामना करना पड़ा और निकाय चुनाव में हार ने ईपीएस के नेतृत्व पर सवालिया निशान लगा दिया है.
यूसीसी के विरोध में सभी प्रकार की द्रविड़ पार्टियां एकजुट हैं. यह द्रमुक ही थी, जिसने सबसे पहले प्रधानमंत्री के आह्वान की निंदा की थी और इस कदम को विभाजनकारी और ध्यान भटकाने वाला कदम बताया था. डीएमके प्रवक्ता टीकेएस एलंगोवन ने प्रतिक्रिया दी थी कि पहले हिंदू धर्म के लिए यूसीसी बनने दीजिए. अनुसूचित जाति और जनजाति सहित प्रत्येक व्यक्ति को देश के किसी भी मंदिर में पूजा करने की अनुमति दी जानी चाहिए. हमें यूसीसी नहीं चाहिए. संविधान ने हर धर्म को सुरक्षा दी है.
मारुमलारची डीएमके के वाइको और विदुथलाई चिरुथिगल काची (वीसीके) नेता थोल थिरुमावलवन ने इसे संघ परिवार का एजेंडा बताकर इसकी आलोचना की है. आगामी 2024 लोकसभा चुनाव के लिए गठबंधन पर, ईपीएस ने कहा कि यह लगभग एक वर्ष आगे की बात है. चुनाव नजदीक आने पर हम गठबंधन पर फैसला करेंगे. अन्नाद्रमुक के नेतृत्व वाले मोर्चे में कौन-कौन हैं, यह तब पता चलेगा. हम भाजपा के साथ गठबंधन पर पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं.
यह जवाब थोल थिरुमावलवन ने इस सवाल पर दिया कि भगवा पार्टी के साथ 2024 लोकसभा चुनाव में गठबंधन के बारे में पार्टी की क्या सोच है. अन्नाद्रमुक और भाजपा के राज्य नेतृत्व के बीच हालिया वाकयुद्ध ने गठबंधन में मतभेदों को उजागर कर दिया है. विश्लेषकों के अनुसार, ईपीएस का गैर-प्रतिबद्ध होना, भगवा पार्टी को सीटों में बड़ी हिस्सेदारी की मांग से बचने की एक रणनीति है. भाजपा पहले से ही 25 सीटों की वकालत कर रही है और मान रही है कि अन्नाद्रमुक के लिए यह संभव नहीं होगा.