हैदराबाद : असम में एक सींग वाले गैंड़ों के संरक्षण के लिए राज्य सरकार ने बड़ा संदेश दिया है. 1970 के दशक से जब्त किए गए गैंडे के सींगों को जलाकर सरकार ने जागरूकता का मजबूत संदेश भेजा कि मृत गैंडों के सींगों का कोई मूल्य नहीं है. साथ ही यह उम्मीद की गई है कि यह शिकारियों को सींगों के लिए जानवर को मारने से रोकने की प्रेरणा देगा.
इससे पहले 1905 में लेडी कर्जन ने काजीरंगा के पास एक चाय बागान की यात्रा के दौरान एक सींग वाले गैंडों को देखा था. जिसका उस समय ब्रिटिश साहबों द्वारा बहुतायत से शिकार किया जाता था. पशु प्रेमी व भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड कर्जन की पत्नी लेडी कर्जन ने अपने शक्तिशाली पति को न केवल इस विलक्षण जानवर को मारने पर प्रतिबंध लगाने के लिए जून 1905 में क्षेत्र को आरक्षित वन घोषित करने के लिए राजी किया था.
बाद के वर्षों में एक सींग वाले गैंडे न केवल असम के राज्य पशु बन गए बल्कि राज्य के लिए गर्व का प्रतीक भी बन गए. राज्य के स्वामित्व वाले कई निगम अपने प्रतीक के रूप में चार्जिंग राइनो के चित्र का उपयोग कर रहे हैं. हालांकि स्वतंत्रता के बाद से राज्य और केंद्र की बाद की सरकारों ने वन्यजीवों की रक्षा के लिए अलग-अलग अधिनियम बनाए लेकिन यह एक सींग वाले गैंडों के अवैध शिकार को रोकने में विफल रहे.
कुछ मिथक भी था कि इसका सींग कैंसर जैसी बीमारियों को ठीक कर सकता है. दक्षिण एशियाई देशों में कुछ पारंपरिक दवाओं में इसके कथित उपयोग के लिए गैंडों के सींग की हमेशा बड़ी मांग रही. जहां इसका उपयोग कामोद्दीपक के रूप में भी किया जाता है. भारत में एक सींग वाले गैंडे के बेरोकटोक अवैध शिकार के कारण जिसे 1975 में लुप्तप्राय घोषित किया गया था. 2008 में प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय संघ (IUCN) की लाल सूची में कमजोर के रूप में वर्गीकृत किया गया था.
आंकड़ों के अनुसार 1983 में असम में गैंडों के आवास में 92 एक सींग वाले गैंडों का शिकार किया गया. इसके बाद 1992 और 1993 में असम में क्रमशः 67 और 68 गैंडों का शिकार किया गया था. हालांकि बाद के वर्षों में गैंडों का अवैध शिकार कम हुआ लेकिन 2000 के दौरान यह बढ़ गया और जल्द ही गैंडों का अवैध शिकार असम में प्रमुख राजनीतिक मुद्दों में से एक बन गया.
असम में तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय तरुण गोगोई के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने 2001 के बाद से गैंडों के अवैध शिकार को लेकर बड़ी आलोचना की थी. वर्ष 2014 में असम में संरक्षित क्षेत्रों से 38 गैंडों का शिकार किया गया. अकेले काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में यह आंकड़ा 35 तक पहुंच गया. 2012 और 2013 में असम में क्रमशः 26 और 28 गैंडों का अवैध शिकार दर्ज किया गया था.