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विभाजन के समय बिछड़े थे, 92 वर्षीय सरवन सिंह अब पाकिस्तान में रिश्तेदारों से मिले

1947 में भारत को अंग्रेजों से आजादी मिली थी, लेकिन उस समय देश की आजादी के साथ ही देश के कई परिवारों में अलगाव हो गया. कुछ यहां रह गए तो कुछ पाकिस्तान में जा बसे. ऐसे ही मामले में जालंधर (पंजाब) के 92 साल के सरवन सिंह पाकिस्तान में फिर अपनों से मिल सके हैं (jalandhar old man meet his pakistani nephew). पढ़ें पूरी खबर.

jalandhar old man meet to his pakistani nephew
सरवन सिंह

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Published : Aug 9, 2022, 5:16 PM IST

जालंधर/लाहौर : भारत के पंजाब के 92 वर्षीय एक व्यक्ति ने पाकिस्तान में रह रहे अपने भतीजे से सोमवार को 75 साल बाद ऐतिहासिक करतारपुर साहिब गुरुद्वारे में मुलाकात की. ये दोनों देश के विभाजन के दौरान अलग हो गए थे. वर्ष 1947 में विभाजन के दौरान हुई सांप्रदायिक हिंसा में इन लोगों के कई रिश्तेदार मारे गए थे. गुरु नानक देव के अंतिम विश्राम स्थल करतारपुर साहिब में सरवन सिंह ने अपने भाई के बेटे मोहन सिंह को गले लगाया. सरवन सिंह और उनकी बेटी करतारपुर साहिब गए थे जहां ये मुलाकात हुई. मोहन को अब अब्दुल खालिक के नाम से जाना जाता है, जो पाकिस्तान में एक मुस्लिम परिवार में पले-बढ़े. इस मौके पर दोनों परिवारों के कुछ सदस्य भी मौजूद थे.

सुनिए सरवन सिंह ने क्या कहा

खालिक के रिश्तेदार मुहम्मद नईम ने करतारपुर कॉरिडोर से लौटने के बाद फोन पर कहा, 'खालिक साहब ने अपने चाचा के पैर छुए और कई मिनट तक उन्हें गले से लगाए रखा.' उन्होंने कहा कि चाचा और भतीजे दोनों ने एक साथ चार घंटे बिताए और यादें ताजा कीं तथा अपने-अपने देशों में रहने के तरीके साझा किए. उनके पुनर्मिलन पर, रिश्तेदारों ने उन्हें माला पहनाई और उन पर गुलाब की पंखुड़ियां भी बरसाईं. खालिक के रिश्तेदार जावेद ने उनके हवाले से कहा, 'हम अपनी भावनाओं को शब्दों में बयां नहीं कर सकते, लेकिन यह ईश्वर का आशीर्वाद है कि हम 75 साल बाद फिर से मिले.'

पाकिस्तान के दो यूट्यूबर ने निभाई अहम भूमिका :उन्होंने कहा कि सिंह अपने भतीजे के साथ लंबी अवधि तक रहने के लिए वीजा प्राप्त करने के बाद पाकिस्तान आ सकते हैं. सरवन सिंह के नवासे परविंदर ने फोन पर कहा कि विभाजन के समय मोहन सिंह छह साल के थे और वह अब मुस्लिम हैं, क्योंकि पाकिस्तान में एक मुस्लिम परिवार ने उन्हें पाला-पोसा था. चाचा-भतीजे को 75 साल बाद मिलाने में भारत और पाकिस्तान के दो यूट्यूबर ने अहम भूमिका निभाई. जंडियाला के यूट्यूबर ने विभाजन से संबंधित कई कहानियों का दस्तावेज़ीकरण किया है और कुछ महीने पहले उन्होंने सरवन सिंह से मुलाकात की तथा उनकी जिंदगी की कहानी अपने यूट्यूब चैनल पर पोस्ट की.

सीमा पार, एक पाकिस्तानी यूट्यूबर ने मोहन सिंह की कहानी बयां की जो बंटवारे के वक्त अपने परिवार से बिछड़ गए थे. संयोग से, ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले पंजाबी मूल के एक व्यक्ति ने दोनों वीडियो देखे और रिश्तेदारों को मिलाने में मदद की. सरवन ने एक वीडियो में बताया कि उनके बिछड़ गए भतीजे के एक हाथ में दो अंगूठे थे और जांघ पर एक बड़ा सा तिल था. परविंदर ने कहा कि पाकिस्तानी यूट्यूबर की ओर से पोस्ट किए गए वीडियो में मोहन के बारे में भी ऐसी ही चीज़ें साझा की गईं. बाद में, ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले व्यक्ति ने सीमा के दोनों ओर दोनों परिवारों से संपर्क किया. परविंदर ने कहा कि नाना जी ने मोहन को उनके चिह्नों के जरिए पहचान लिया.

सरवन का परिवार गांव चक 37 में रहा करता था, जो अब पाकिस्तान में है और उनके विस्तारित परिवार के 22 सदस्य विभाजन के समय हिंसा में मारे गए थे. सरवन और उनके परिवार के सदस्य भारत आने में कामयाब रहे थे. मोहन सिंह हिंसा से तो बच गए थे, लेकिन परिवार से बिछड़ गए थे और बाद में पाकिस्तान में एक मुस्लिम परिवार ने उन्हें पाला-पोसा. सरवन अपने बेटे के साथ कनाडा में रह रहे थे, लेकिन कोविड-19 की शुरुआत के बाद से वह जालंधर के पास सांधमां गांव में अपनी बेटी के यहां रुके हुए हैं.

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