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ना बिजली है ना सड़क, कंधे से मंडप पहुंचाएं जाते हैं दूल्हे, जानें गांव की पूरी हकीकत

आजादी के 7 दशक बाद भी चोंगाई प्रखंड स्थित नाचाप पंचायत के पुरैना गांव के लोग सड़क, अस्पताल, बिजली, स्कूल जैसी बुनियादी जरूरताें के लिए तरस रहे हैं. आज भी दूल्हे कंधे पर सवार होकर शादी के मंडप तक पहुंच रहे हैं.

दूल्हे
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Published : Jun 7, 2021, 11:10 AM IST

बक्सर :आजादी के 73 साल बाद क्या आधुनिक भारत की तस्वीर बदल पाई है ? बक्सर के चौगाई प्रखंड स्थित नाचाप पंचायत के पुरैना गांव को देखकर तो ऐसा नहीं लगता है. क्योंकि आजादी के 7 दशक बाद भी भारत के इस गांव को पक्की सड़क तक नसीब नहीं हो सकी है.

लिहाजा गांव वालों को कई परेशानियों से हर रोज दो चार होना पड़ता है. हैरानी की बात है कि चुनाव के दौरान सड़क बनाने का दावा करने वाले नेता जी चुनाव जीतने के बाद इस गांव में जाना भी पसंद नहीं करते हैं. गांव में परेशानी इस कदर है कि यहां शादी करके आनेवाली बहुएं अपने आप को कोसती रहती हैं.

कंधे से मंडप पहुंचाएं जाते हैं दूल्हे

दूल्हे कंधे पर करते हैं सवारी
पिछले दिनों इसी गांव से एक वीडियो वायरल हुआ. जिसके कारण यह गांव और ज्यादा सुर्खियों में आ गया है. वीडियो में दिख रहा है कि गांव में सड़क की सुविधा नहीं होने के कारण दूल्हे को कंधे पर उठाकर लोग शादी के मंडप में ले जा रहे हैं. आज भी इस गांव के लोगों के लिए स्कूल, अस्पताल, सड़क, बिजली, यातायात की सुविधा सपने के जैसा ही है. जहां बीमार पड़े लोगों की इलाज के अभाव में घर में ही मौत हो जाती है.

कंधे पर दूल्हे का स्वागत

आत्मनिर्भर भारत की बदरंग तस्वीर
दरअसल, यह तस्वीर उस आत्मनिर्भर भारत की है, जहां की 71 फीसदी आबादी गांव में ही बसती है. यह तस्वीर उस बिहार की है, जहां के मुखिया बिहार के किसी भी कोने से 5 घंटे में पटना पहुंचने का दावा करते हैं. लेकिन उनका दावा जमीन पर कितना है. इस तस्वीर को देखकर आप अंदाजा लगा सकते हैं. आजादी के 73 साल बाद भी इस गांव की तस्वीर में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है. आज भी यहां के लोग मूलभूत सुविधा के लिए तरस रहे हैं.

पक्की सड़क बन गया सपना

एक स्थानीय निवासी ने कहा कि पक्की सड़क तो आज भी एक सपने जैसा लगता है. इस सपने को पूरा करने के लिए स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने कई ख्वाब दिखाए. लेकिन आज तक इस मसले पर न तो किसी ने गंभीरता दिखाई और न ही किसी ने इस दिशा में कोई पहल की. नेता चुनाव के समय हाथ जोड़कर वोट मांगने आ जाते हैं. परिणामों की घोषणा होते ही वे लौट कर नहीं आते. आलम यह है कि आज भी ग्रामीण अपनी तकदीर को कोस रहे हैं. लोग अपनी मजबूरियों के बीच समय व्यतीत कर रहे हैं.

बेटियों के लिए नहीं है स्कूल
लंबे समय से सड़क के अभाव में पढ़ाई से वंचित गांव की बेटियां बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान को झूठा साबित कर रही हैं. गांव की बेटियां बताती हैं कि इस नारे और अभियान का क्या मतलब, जब हमें स्कूल ही नसीब नहीं है. गांव में सड़क के अभाव के कारण हम स्कूल तक नहीं जा पाते हैं. दूसरे गांव में व्यवस्था है, लेकिन गांव की सड़कों का जो हाल है, वहां जाना भी मुश्किल है.

किस्मत काे काेसा

ग्रामीण महिला ने कहा किपक्की सड़क के अभाव में हमें इस गांव में घुट-घुट कर जीवन बिताना पड़ रहा है. अगर किसी की तबीयत खराब हो जाए तो गांव से बाहर जाने के लिए सड़क नहीं है. ऐसे में मरीज की क्या हालत होगी और उनके परिजनों पर क्या गुजरेगी, जरा सोचिए. इसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है. इस गांव में शादी करने के बाद से हमारी किस्मत ही फूट गई है.'

कहीं खो गया है विकास
इस गांव में धूमधाम के साथ बारात लेकर पहुंचे दूल्हे की तस्वीर को देखकर आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि गांव को स्मार्ट बनाने की दावा करने वाली सरकार गांव का कितना विकास कर पाई है और स्थानीय जनप्रतिनिधि इन समस्याओं को दूर करने के लिए कितना गंभीर हैं.

आसपास भी हैं ऐसे कई गांव
यह नजारा केवल नचाप पंचायत के पुरैना गांव का ही नहीं है. बल्कि आसपास के कई ऐसे गांव हैं जो आज भी पक्की सड़क की बाट जोह रहे हैं. लेकिन गांव वालों की परेशानियों पर अब तक किसी ने ध्यान नहीं दिया है.

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ऐसे में आजाद भारत की खूबसूरत तस्वीर की कल्पना गांव वालों को आज भी बेमानी लगती है.

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