नई दिल्ली : अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद काबुल में खराब होती सुरक्षा स्थिति के बाद भारत ने रविवार तक तीन उड़ानों के जरिए 392 लोगों को वहां से निकाला है. इन लोगों में महिला अफगान सांसद अनारकली होनारयार भी शामिल हैं.
भारत पहुंचने पर अनारकली ने अफगानिस्तान में पैदा हुए संकट को लेकर कहा कि वहां के हालात में यह सोचा भी नहीं जा सकता कि अगले पल में क्या होने वाला है? उन्होंने कहा कि अफगान शांति प्रक्रिया से उन्हें बड़ी उम्मीदें थीं, लेकिन इसका कोई उल्लेखनीय असर नहीं देखने को मिला.
उन्होंने बताया कि अफगानिस्तान के हालात ऐसे हो जाएंगे कि मजबूरी में देश छोड़ने की नौबत आ जाएगी, ऐसा नहीं सोचा था. उन्होंने कहा कि वहां राष्ट्रपति नहीं है. यह सोचा जा सकता है कि जिस देश में सरकार या राष्ट्रपति न हो वहां के हालात कैसे होंगे.
अफगान सांसद अनारकली ने सुनाई आपबीती अफगान सांसद अनारकली ने बताया कि मीडिया में जो दिखाया जा रहा है, जमीनी हकीकत उससे काफी अलग है. उन्होंने कहा कि हजारों लोग ऐसे हैं जिनके पास जरूरी कागजात नहीं हैं, लेकिन वे अफगानिस्तान में खौफ का माहौल होने के कारण देश से बाहर जाना चाहते हैं.
गौरतलब है कि अफगानिस्तान से लोगों को बाहर निकालने के प्रयासों में पुनीत सिंह चंडोक सहयोग कर रहे हैं. विदेश मंत्रालय और भारतीय वायुसेना के साथ सहयोग कर रहे चंडोक इंडियन वर्ल्ड फोरम नाम के संगठन के अध्यक्ष हैं. अनारकली ने चंडोक का भी आभार प्रकट किया.
बता दें कि रविवार को अफगानिस्तान से लोगों को बाहर निकालने के अभियान से जुड़े अधिकारियों ने बताया कि काबुल से लाए गए 168 लोगों के समूह में अफगान सांसदों अनारकली होनारयार और नरेंद्र सिंह खालसा एवं उनके परिवार भी शामिल हैं. खालसा ने दिल्ली के निकट हिंडन एयरबेस पर पत्रकारों से कहा, 'भारत हमारा दूसरा घर है. भले ही हम अफगान हैं और उस देश में रहते हैं लेकिन लोग अक्सर हमें हिंदुस्तानी कहते हैं. मदद के लिए हाथ बढ़ाने के लिए मैं भारत को धन्यवाद देता हूं.'
यह भी पढ़ें-भारत पहुंचे अफगानिस्तान के MP रो पड़े, बोले-सबकुछ खत्म हो गया
उन्होंने कहा, 'मुझे रोने का मन कर रहा है. सब कुछ समाप्त हो गया है. देश छोड़ने का यह एक बहुत ही कठिन और दर्दनाक निर्णय है. हमने ऐसी स्थिति नहीं देखी है. सब कुछ छीन लिया गया है. सब खत्म हो गया है.'
रविवार को लोगों को निकाले जाने के साथ ही काबुल से भारत द्वारा निकाले गए लोगों की संख्या पिछले सोमवार से लगभग 590 तक पहुंच गई.
भारत में अफगानिस्तान के राजदूत फरीद मामुन्दजई (Farid Mamundzay) ने समर्थन के संदेशों के लिए भारतीय मित्रों को ट्विटर पर धन्यवाद दिया. उन्होंने कहा, 'मैं पिछले कुछ हफ्तों, विशेषकर पिछले 7-8 दिनों में अफगानों की पीड़ा पर सभी भारतीय मित्रों और नई दिल्ली में राजनयिक मिशनों के सहानुभूति और समर्थन संदेशों की सराहना करता हूं.'
मामुन्दजई ने कहा कि उनका देश एक कठिन समय से गुजर रहा है और केवल बेहतर नेतृत्व, सहानुभूतिपूर्ण रवैये और अफगान लोगों के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन से ही 'मुसीबतों' का अंत होगा. उन्होंने कहा, 'अफगानिस्तान एक कठिन समय से गुजर रहा है, और केवल अच्छा नेतृत्व, सहानुभूतिपूर्ण रवैये और अफगान लोगों के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन से ही इन दुखों को कुछ हद तक समाप्त किया जा सकता है.'
बता दें कि अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी के देश छोड़कर चले जाने के बाद रविवार को तालिबान ने काबुल पर कब्जा कर लिया. इसके बाद से वहां अफरा-तफरी का माहौल है. अफगानिस्तान-तालिबान संकट (Afghan Taliban Crisis) के बीच एक अहम घटनाक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गत 17 अगस्त को सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति की बैठक की.
यह भी पढ़ें-अफगानिस्तान संकट पर पीएम मोदी का बड़ा बयान, हिंदुओं-सिखों को देंगे शरण
प्रधानमंत्री ने अपने सरकारी आवास पर हुई इस अहम बैठक के बाद अधिकारियों को यह निर्देश दिए. इसी बीच सूत्रों ने कहा है कि भारत इंतजार करेगा और देखेगा कि सरकार का गठन कितना समावेशी होगा और तालिबान कैसे आचरण करेगा. सूत्रों के मुताबिक तालिबान ने कश्मीर पर भी अपना रुख स्पष्ट किया है. इसके मुताबिक तालिबान कश्मीर को एक द्विपक्षीय, आंतरिक मुद्दा मानता है. पीएम ने कहा कि हिंदुओं और सिखों को देंगे शरण.
अफगानिस्तान-तालिबान से जुड़ी अन्य खबरें-
- फेसबुक ने तालिबान का समर्थन करने वाली सामग्री प्रतिबंधित की: रिपोर्ट
- अफगानिस्तान में फंसे 114 भारतीयों ने मोदी सरकार से मांगी मदद, जारी किया वीडियो
- आतंकवादी समूहों द्वारा न हो अफगान क्षेत्र का इस्तेमाल : टीएस तिरुमूर्ति
- अफगानिस्तान : जान बचाने के लिए विमान के चक्के से लटके लोग
- अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी नकदी से भरे हेलीकॉप्टर में काबुल से भागे : मीडिया रिपोर्ट
इसके बाद काबुल में भारतीय राजदूत एवं दूतावास के कर्मियों समेत 120 लोगों को लेकर भारतीय वायुसेना का एक विमान मंगलवार को अफगानिस्तान से भारत पहुंचा था. विदेश मंत्रालय ने कहा है कि भारत सभी भारतीयों की अफगानिस्तान से सकुशल वापसी को लेकर प्रतिबद्ध है और काबुल हवाईअड्डे से वाणिज्यिक उड़ानों की बहाली होते ही वहां फंसे अन्य भारतीयों को स्वदेश लाने का प्रबंध किया जाएगा.
यह भी पढ़ें-तालिबान ने 'आम माफी' का एलान किया, सरकार में शामिल होने की महिलाओं से अपील
काबुल पर कब्जे के बाद तालिबान ने लचीला रुख अपनाते हुए पूरे अफगानिस्तान में 'आम माफी' की घोषणा की और महिलाओं से उसकी सरकार में शामिल होने का आह्वान किया. इसके साथ ही तालिबान ने लोगों की आशंका दूर करने की कोशिश है, जो एक दिन पहले उसके शासन से बचने के लिए काबुल छोड़कर भागने की कोशिश करते दिखे थे और जिसकी वजह से हवाई अड्डे पर अफरा-तफरी का माहौल पैदा होने के बाद कई लोग मारे गए थे.
अफगानिस्तान-तालिबान संकट को समझने के लिए पढ़ें ये खबरें
- जानिए कौन हैं तालिबान लड़ाकों के आका, कैसे अरबों डॉलर कमाते हैं तालिबानी
- अफगान पर तालिबान का कब्जा, जानिए तालिबान कौन हैं और क्या है इसका मतलब
- मुल्ला बरादर : जिसने लिखी फतह की इबारत, क्या मिलेगी उसे अफगानिस्तान की जिम्मेदारी ?
- Afghan-Taliban crisis : भारत के अरबों डॉलर के निवेश पर संकट, व्यापार पर भी असर
- रेड यूनिट की बदौलत अफगानिस्तान में काबिज हुआ तालिबान, जानिए कब तैयार किए लड़ाके
- अफगानिस्तान में तालिबान 2.0 को मान्यता क्यों देगा भारत, क्या सेटिंमेंटस पर भारी पड़ेगी कूटनीति ?
- अफगानिस्तान में तालिबान पर चीन मेहरबान, जानें इस दोस्ती का मकसद क्या है ?
गौरतलब है कि भारत ने 2001 के बाद से अफगानिस्तान में पुनर्निर्माण में करीब 3 बिलियन डॉलर से अधिक का निवेश किया है. संसद भवन, सलमा बांध और जरांज-देलाराम हाईवे प्रोजेक्ट में भारी निवेश किया है. इनके अलावा भारत-ईरान के चाबहार बंदरगाह के विकास का काम कर रहा है. भारत को ईरान के रणनीतिक चाबहार के शाहिद बेहेश्टी क्षेत्र में पांच बर्थ के साथ दो टर्मिनल का निर्माण करना था, जो एक पारगमन गलियारे का हिस्सा होता. यह भारतीय व्यापार की पहुंच को अफगानिस्तान, मध्य एशिया और रूस तक पहुंच प्रदान करता. इस परियोजना में दो टर्मिनल, 600-मीटर कार्गो टर्मिनल और 640-मीटर कंटेनर टर्मिनल शामिल थे. इसके अलावा 628 किलोमीटर लंबी रेलवे लाइन का निर्माण होना था, जो चाबहार को अफगानिस्तान सीमावर्ती शहर जाहेदान से जोड़ती. जानकारों का मानना है कि भारत ने चीन के चाबहार के जवाब में ग्वादर प्रोजेक्ट में निवेश किया था. अब तालिबान के राज में इसके पूरा होने पर संशय है.