नई दिल्ली : भारत में रह रहे अफगान शरणार्थी अपने देश पर तालिबान के कब्जे से परेशान हैं और लगातार दूतावास के चक्कर लगा रहे हैं. मौजूदा परिस्थिति में उन्हें UNHCR के सर्टिफिकेट के साथ भारत में रहने की अनुमति है, लेकिन वह एसाइलम की मांग कर रहे हैं.
रिफ्यूजी का दर्जा मिलने के बाद उनके पास ज्यादा सुविधांए होंगी और अधिकार भी मिल सकेंगे.
इस मामले में काबुल के रहने वाले 32 वर्षीय युवक अली सेना अमेरिकी दूतावास के बाहर घंटो इंतजार करते रहे. उनके कई बार आग्रह करने पर दूतावास ने उनका आवेदन जरूर ले लिया, लेकिन उन्हें उम्मीद कम है कि अमेरिका का विजा उन्हें मिल सकेगा.
अली का पूरा परिवार अफग़ानिस्तान में है. उनकी आठ महीने की बेटी है और बुजुर्ग मां बाप भी हैं. तालिबान के काबुल पर कब्जे के बाद से ही उनका पूरा परिवार डर के साये में जी रहा है. अली के भाई अफगान सेना में अधिकारी रहे हैं और उन्हें डर है कि तालिबान कहिं उनके परिवार को नुकसान न पहुंचाए.
अली 2017 में भारत आये और 2018 में UNHCR में पंजीकरण कराने के बाद से दिल्ली के तिलक नगर इलाके में रहने लगे. शुरुआत में उन्होंने इंटरप्रेटर का काम किया और कुछ समय कॉल सेंटर में भी नौकरी की, लेकिन आज कल वह बेरोजगार हैं.
अली को UNHCR की तरफ से अक्टूबर 2022 तक भारत में रहने की अनुमति मिली. अपने ब्लू कार्ड को दिखाते हुए अली कहते हैं कि भारत में रहने के लिये यह आवश्यक है, लेकिन इसके अलावा UNHCR से उन्हें और कोई सुविधा या मदद नहीं मिलती है.
अली आगे बताते हैं कि अफगानिस्तान के हालात आगे और खराब होंगे. तालीबान ने मीडिया में जो भी कहा है उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता है. वह नागरिकों पर अत्याचार करेंगे और उनके राज में मानवाधिकार का कोई मतलब नहीं रहेगा. अली सेना चाहते हैं कि अमरीका उन्हें रिफ्यूजी का दर्जा दे.
वहीं काबुल के रहने वाले नजीबुल्ला भी अमेरिकी एंबेसी के बाहर पहुंचे, लेकिन उन्हें जिस मदद की उम्मीद थी, वह मिलना तो दूर किसी अधिकारी से उनकी मुलाकात तक नहीं हो सकी.
ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए नजीबुल्ला ने बताया कि UNHCR से उन्हें केवल भारत में रहने की अनुमति, तो मिल जाती है. लेकिन आम नागरिक जैसे कोई अन्य सुविधा नहीं मिलती. वह यहां नौकरी नहीं कर सकते और ऐसे में परिवार के साथ रहने का खर्च वहन करना बहुत मुश्किल होता है.
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नजीबुल्ला दिल्ली के तिलकनगर इलाके में किराये के फ्लैट में रहते हैं. काबुल में उनका अपना मकान है जिसे उन्होंने किराये पर दे रखा था. किराये के पैसों से ही नजीबुल्ला अपने चार सदस्यों के परिवार का भरण पोषण भारत में कर पाते थे.
तालीबान के कब्जे के बाद उनके किरायेदार भी मकान छोड़ कर जा चुके हैं और उनसे अब कोई संपर्क नहीं हो पा रहा है. ऐसे में इनके पास अब आमदनी का कोई श्रोत नहीं है. नजीबुल्ला को उम्मीद है कि उन्हें अमरीका का विजा मिल जाए या वहां शरण (एसाइलम) मिल जाए, जिससे वह रोजगार के अवसर तलाश सकें और अपने परिवार के लिये जीवन बेहतर कर सकें.