गुड़गांव :हरियाणा की सरकारी समिति ने अधिकारियों को अरावली के तहत आने वाले क्षेत्रों की पहचान करने की सलाह दी है. इसके बाद पर्यावरणविदों ने पूछा कि क्या राष्ट्रीय संरक्षण क्षेत्र (एनसीजेड) के प्रावधान फरीदाबाद के अरावली क्षेत्रों पर लागू नहीं होंगे?
समिति ने कहा कि राजस्व रिकॉर्ड केवल गैर मुमकिन पहाड़ (ऐसे पहाड़ी क्षेत्र जो कृषि योग्य नहीं हैं) की पहचान करते हैं. समिति ने अपनी हाल की बैठक में संबंधित अधिकारियों को सलाह दी है कि केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ व सीसी) की 1992 की अधिसूचना के आधार पर अरावली के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों की पहचान की जानी चाहिए.
नगर एवं कंट्रीय योजना के प्रधान सचिव एपी सिंह की अध्यक्षता में राष्ट्रीय राजधानी के हरियाणा उप क्षेत्र में एनसीजेड की जमीन-सच्चाई को लेकर नौ अगस्त को राज्य स्तरीय समिति (एसएलसी) की बैठक हुई थी.
बैठक में उपायुक्त भी शामिल थे और जिला-स्तरीय उप-समितियों से केंद्र की 1992 की अधिसूचना के अनुसार अरावली की पहचान करने को कहा गया. इस पर पर्यावरणविदों ने दावा किया है कि यह गैर मुमकिन पहाड़ को एनसीजेड से प्रभावी ढंग से बाहर कर देगा और फरीदाबाद में अरावली क्षेत्रों में निर्माण गतिविधियों पर प्रतिबंध लागू नहीं होंगे.
एसएलसी की बैठक की टिप्पणियों के मुताबिक राजस्व रिकॉर्ड में अरावली नाम का कोई शब्द नहीं है, बल्कि केवल गैर मुमकिन पहाड़ का उल्लेख है. लिहाज़ा कुछ जिलों ने राजस्व रिकॉर्ड में गैर मुमकिन पहाड़ के तौर दर्ज क्षेत्रों को अरावली के समान मानते हुए एनसीजेड के तहत उनकी पहचान की है.