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CRPF जवानों ने घबराहट में 8 आदिवासियों को मार दिया, पढ़ें- न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट

Adsmeta Judicial Inquiry Report : छत्तीसगढ़ विधानसभा में एडसमेटा जांच रिपोर्ट सरकार ने पेश की. इस रिपोर्ट में ये सामने आया है कि सीआरपीएफ के जवानों ने निहत्थे ग्रामीणों को नक्सली समझकर गोलियां चलाई थीं.

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Published : Mar 15, 2022, 9:14 AM IST

रायपुर :छत्तीसगढ़ में बस्तर संभाग के बीजापुर का एडसमेटा मुठभेड़ मामले की न्यायिक जांच रिपोर्ट (Judicial inquiry report of Bijapur's Adsmeta encounter case) छत्तीसगढ़ विधानसभा के सदन में पेश की गई. यह रिपोर्ट मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सदन में पेश की. इस न्यायिक जांच रिपोर्ट में साफ किया गया कि वहां कोई नक्सली मुठभेड़ नहीं हुई थी (There was no naxali encounter) बल्कि सीआरपीएफ के जवानों ने घबराहट में ग्रामीणों पर गोलियां चलाई थीं (In panic, shots were fired at the villagers). इसमें 8 आदिवासियों की जान चली गई थी. इनमें तीन नाबालिग भी शामिल थे. आयोग ने मामले में कुछ सुझाव भी दिये हैं.

एडसमेटा जांच रिपोर्ट में क्या है ?

एडसमेटा मुठभेड़ मामले की सदन में पेश (Adsmeta encounter case presented in the house) की गई न्यायिक जांच रिपोर्ट में यह माना गया है कि सुरक्षाबलों की चूक की वजह से आठ लोगों की जान गयी है. न्यायमूर्ति वीके अग्रवाल की एक सदस्यीय जांच आयोग द्वारा एडसमेटा मुठभेड़ की न्यायिक जांच की गयी थी. न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस वीके अग्रवाल की रिपोर्ट में कहा गया है कि जांच करने के बाद उन्होंने पाया कि सुरक्षाकर्मियों ने घबराहट में गोलियां चलाई होंगी. रिपोर्ट में इस घटना को तीन से अधिक बार गलती बताते हुए (Terming this incident as a mistake more than three times) जस्टिस अग्रवाल ने कहा कि मारे गए आदिवासी निहत्थे थे. वहां 44 राउंड चली गोलियों में ग्रामीण मारे गए. इस न्यायिक जांच रिपोर्ट के 98 नंबर के प्वाइंट में उक्त घबराहट का जिक्र किया गया है. इसी प्वाइंट में ये भी बताया गया है कि केवल मृतक देव प्रकाश ने ही 44 गोलियों में से 18 गोलियां चलाई थीं. इस प्रकार यह स्पष्ट है कि गोलाबारी सुरक्षा बलों के पक्ष द्वारा की गई जमाव के सदस्यों द्वारा नहीं की गई.

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जांच कमेटी ने दिए सुझाव

रिपोर्ट में बताया गया है कि "यह प्रतीत होता है कि एडसमेटा पहुंचते समय सुरक्षा बलों के सदस्यों को आग के इर्द-गिर्द एकत्रित लोगों को देखकर संदेह हुआ. इसके बाद सुरक्षाकर्मियों ने वहां जमा सदस्यों को संभवतः नक्सली मान लिया और घबराहट में गोलियां चलानी शुरू कर दीं. इसके परिणामस्वरूप जनहानि हुई." रिपोर्ट के मुताबिक इस पर गौर किया जा सकता है कि किसी भी संतोषजनक सामग्री द्वारा किसी भी मृत या घायल व्यक्ति का नक्सली संगठन का सदस्य होना स्थापित नहीं हुआ है.

न्यायिक जांच रिपोर्ट में आयोग ने कुछ सुझाव भी दिए हैं. इसके मुताबिक सुरक्षाबलों को आधुनिक उपकरण और संचार के साधन उपलब्ध कराए जाने चाहिए. इंटर-कम्यूनिकेशन सिस्टम को भी और अधिक प्रभावी और कार्यक्षम बनाना चाहिए. सभी सुरक्षाकर्मियों को बुलेट प्रूफ जैकेट,'नाइट विजन' उपकरण (Bullet Proof Jacket, 'Night Vision' Equipment) जैसे उपयुक्त और पर्याप्त सुरक्षा उपकरण प्रदान किए जाने चाहिए. जिससे बल के सदस्य और अधिक सुरक्षित आश्वश्त महसूस करें और जल्दबाजी या घबराहट में कार्य न करें. निवासियों के त्योहारों तथा गतिविधियों में सम्मिलित होने की सलाह दी जानी चाहिए, ताकि सुरक्षा बल उनके रहन-सहन और रीति-रिवाजों से परिचित हो सके. खुफिया सूचना तंत्र को और भी अधिक मजबूत और विश्वसनीय बनाया जाना चाहिए. बस्तर के ग्रामीण और अंदरूनी इलाकों में सामान्य विकास, विशेषकर सड़कों की संयोजकता में युद्ध स्तर पर सुधार किया जाना चाहिए.

कब हुई थी एडेसमेटा में गोलीबारी(Shooting in Edesmeta) ?

आपको बता दें कि बीजापुर के जगरगुण्डा थाने के ग्राम एडेसमेटा इलाके (Village Edesmeta area of ​​Jagargunda police station of Bijapur) में 17 और 18 मई 2013 की दरम्यानी रात में मुठभेड़ हुई थी. इस मुठभेड़ में 3 नाबालिग समेत 8 लोगों की मौत हो गई थी. इसके बाद से इस मुठभेड़ पर सवाल खड़े हो रहे थे. पुलिस पर ये आरोप लगे कि जिन लोगों को पुलिस नक्सली बता रही है, वह दरअसल निर्दोष ग्रामीण हैं. इसके बाद इसकी न्यायिक जांच के आदेश दिए गए थे. गंभीर आरोपों को देखते हुए इस कथित मुठभेड़ की न्यायिक जांच जस्टिस वीके अग्रवाल कमेटी को सौंपी गई. विधानसभा में कमेटी द्वारा सौंपी गई न्यायिक जांच रिपोर्ट सदन में पेश की गई, जिसमें कमेटी ने ये माना है कि इसे टाला जा सकता था.

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