नई दिल्ली :राजनीति में दागी उम्मीदवारों को लेकर शीर्ष कोर्ट के चिंता जताने के बावजूद सभी दलों में ऐसे नेताओं का होना आम बात हो गई है. ऐसे में 1999 में स्थापित चुनावी निगरानी संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) और भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) अहमदाबाद के प्रोफेसरों के एक समूह ने चुनाव आयोग को पत्र लिखा है.
पत्र में उन पार्टियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई है जो आपराधिक विवरण प्रकाशित करने में विफल रहती हैं.
पत्र में क्या लिखा : '2021 में पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, असम और केंद्रशासित प्रदेश पुडुचेरी में विधानसभा चुनाव हुए. इसी तरह से 2022 में गुजरात, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर और पंजाब में विधानसभा चुनाव हुए. जबकि इस साल त्रिपुरा, मेघालय, नागालैंड और मणिपुर में चुनाव संपन्न हुए हैं. ऐसे में एडीआर आपराधिक विवरण प्रकाशित करने में चूक करने वाले राजनीतिक दलों पर कार्रवाई की मांग करता है.'
वर्षों से, एडीआर जैसे स्वतंत्र चुनावी निगरानीकर्ता राजनीतिक दलों द्वारा आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को मैदान में उतारने पर चिंता जताते रहे हैं. एडीआर के अनुसार, 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद नवनिर्वाचित 43% सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं .
सुप्रीम कोर्ट ने क्या दिया था आदेश :पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन की ओर से दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए 25 सितंबर, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला दिया था. शीर्ष कोर्ट ने राजनीतिक दलों के लिए चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित प्रारूप में अपने उम्मीदवारों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों का विवरण अपनी वेबसाइटों पर प्रकाशित करना अनिवार्य कर दिया है.
जबकि उम्मीदवारों ने फैसले से पहले चुनाव आयोग को अपने चुनावी हलफनामे में उनके खिलाफ लंबित मामलों की घोषणा की थी, सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने जानकारी को व्यापक रूप से प्रचारित करना अनिवार्य बना दिया है.
तीन बार प्रकाशित करनी है जानकारी :शीर्ष कोर्ट का आदेश है कि उम्मीदवारों को अपने खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों का विवरण मोटे अक्षरों में प्रकाशित करना होगा. इन मामलों के बारे में पार्टी को भी जानकारी देनी होगी. कोर्ट ने यह भी आदेश दिया था कि उम्मीदवार और पार्टी को नामांकन दाखिल करने के बाद कम से कम तीन बार जानकारी प्रकाशित करनी होगी.
शीर्ष कोर्ट ने ये की थी टिप्पणी :कोर्ट ने कहा था कि 'हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि संवैधानिक लोकतंत्र में राजनीति का अपराधीकरण अत्यंत विनाशकारी और शोचनीय स्थिति है. लोकतंत्र में नागरिकों को खुद को असहाय दिखाकर भ्रष्टाचार के मूक, बहरे और मूकदर्शक के रूप में खड़े रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है...पहले से आपराधिक रिकॉर्ड का खुलासा करने से चुनाव निष्पक्ष हो जाता है और मतदाताओं द्वारा मतदान के अधिकार का प्रयोग भी पवित्र हो जाता है. यह याद रखना होगा कि ऐसा अधिकार लोकतंत्र के लिए सर्वोपरि है.'