नई दिल्ली : मार्च 2017 में लॉ कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में हेट स्पीच को लेकर बड़ी टिप्पणी की थी. कमीशन ने कहा था कि अभी तक किसी भी कानून में हेट स्पीच को परिभाषित नहीं किया गया है. हालांकि, बोलने की आजादी (फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन) के साथ-साथ ही उनमें कुछ ऐसे प्रावधान हैं, जिसे आधार बनाकर तार्किक नियंत्रण लगाए जाते रहे हैं. कोर्ट की ओर से भी ऐसे कई फैसले आए हैं, जहां पर रिजनेबल रेस्ट्रिक्शन को एक्सप्लेन किया गया है.
अगर आप इन आदेशों पर गौर करें, तो आम तौर पर अपमानजनक, धमकी देने वाली, परेशान करने वाली, या फिर किसी भी जाति, धर्म, निवास और जन्म स्थान के खिलाफ की जाने वाली टिप्पणियों को हेट स्पीच माना जाता है. या फिर वैसे भाषण जो हिंसा या हेट या फिर भेदभाव को बढ़ावा देता है, उसे हेट स्पीच कहा जाता है.
आम तौर पर ऐसे उम्मीदवारों को टिकट नहीं मिलनी चाहिए. इन्हें टिकट देना हेट स्पीच को बढ़ावा देने जैसा है. इसके बावजूद लगभग सभी राजनीतिक पार्टियां ऐसे उम्मीदवारों को टिकट प्रदान करती रहीं हैं. एडीआर ने अपनी रिपोर्ट में इसका अध्ययन किया है. विधायकों और सांसदों के शपथ पत्रों का विश्लेषण करने के बाद एडीआर ने एक रिपोर्ट तैयार की है. इस रिपोर्ट पर आप गौर करेंगे, तो आपको आश्चर्च होगा.
हेट स्पीच को लेकर वर्तमान संसद में 33 सांसदों के खिलाफ मामले दर्ज हैं. इनमें से सात सांसद यूपी से, चार सांसद तमिलनाडु से, तीन-तीन सांसद बिहार, कर्नाटक और तेलंगाना से, दो-दो सांसद असम, गुजरात, महाराष्ट्र और प.बंगाल से तथा एक-एक सांसद झारखंड, मध्य प्रदेश, केरल, ओडिशा और पंजाब से हैं.
पार्टी के आधार पर बात करें तो सबसे ज्यादा मामले भाजपा सांसदों के खिलाफ दर्ज हैं. भाजपा के 22 सांसदों के खिलाफ हेट स्पीच के मामले दर्ज हैं. इसके बाद कांग्रेस के दो सांसदों के खिलाफ मामले दर्ज हैं. आम आदमी पार्टी, एआईएमआईएम, डीएमके, एआईयूडीएफ, डीएमके, पीएमके, शिवसेना यू, वीसीके और एक निर्दलीय सांसद के खिलाफ मामले दर्ज हैं.