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बॉयलॉजिकल मां-बाप की सहमति से बच्चा गोद लेना अपराध नहीं : कर्नाटक हाई कोर्ट

कर्नाटक हाई कोर्ट ने मंगलवार को एक बड़ा फैसला दिया है. कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान यह स्पष्ट किया कि अगर कोई किसी बच्चे (यदि बच्चा परित्यक्त, लावारिस या अनाथ नहीं है) को उसके बायलॉजिकल मां-बाप की सहमति से कानूनी रूप से गोद लेता है तो यह अपराध नहीं है.

जूवेनाइल जस्टिस एक्ट
जूवेनाइल जस्टिस एक्ट

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Published : May 10, 2022, 8:40 PM IST

बेंगलुरू :कर्नाटक उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि बच्चे को सीधे बायलॉजिकल माता-पिता से गोद लेना जूवेनाइल जस्टिस एक्ट (बच्चों की देखभाल और संरक्षण), 2015 की धारा 80 के तहत अपराध नहीं है. जूवेनाइल जस्टिस एक्ट की धारा 80 के तहत प्रावधानों या प्रक्रियाओं का पालन किए बिना किसी भी अनाथ, परित्यक्त या आत्मसमर्पण करने वाले बच्चे को गोद लेने के लिए सजा मिलती है. जस्टिस हेमंत चंदनगौदर ने हाल के एक आदेश में मजिस्ट्रेट अदालत के उस कार्यवाही को रद्द कर दिया, जिसमें गोद लेने के मामले में चार लोगों के खिलाफ चल रही थी. हाई कोर्ट ने कहा कि बच्चे को गोद देने के लिए कोई घोषणा करनी चाहिए या नहीं यह भी बायलॉजिकल माता-पिता या पैरेंटस की मर्जी पर निर्भर है.

मामला कर्नाटक के कोप्पल का है, जहां बानू बेगम नाम की महिला ने 2018 में एक साथ दो बच्चियों को जन्म दिया. उसने खुद और पति महिबूबसब नबीसाब की सहमति से जुड़वा बच्चियों में से एक को जरीना बेगम और शाक्षावली अब्दुलसाब हुदेदमानी को गोद दे दिया. इस गोद की प्रक्रिया 20 रुपये के स्टाम्प पेपर पर दर्ज की गई. मगर मैजिस्ट्रेट कोर्ट ने गोद लेने की इस वाकये का संज्ञान ले लिया और जूवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत चारों लोगों के खिलाफ समन जारी कर दिया. मैजिस्ट्रेट कोर्ट की इस कार्यवाही के खिलाफ गोद लेने वाले और देने वाले दोनो दंपति ने हाई कोर्ट में अपील की . अदालत में सरकारी वकील ने दलील दी कि इस तरह गोद लेना अधिनियम की धारा 80 के तहत एक अपराध है क्योंकि गोद लेने की प्रक्रिया के प्रावधानों का पालन नहीं किया गया था. जूवेनाइल जस्टिस एक्ट की धारा 80 के तहत प्रावधानों या प्रक्रियाओं का पालन किए बिना किसी भी अनाथ, परित्यक्त या आत्मसमर्पण करने वाले बच्चे को गोद लेना अपराध की श्रेणी में आता है.

हाई कोर्ट ने कहा कि जिस बच्चे को गोद लेने पर आपत्ति जताई जा रही है, वह अनाथ, परित्यक्त या आत्मसमर्पण करने वाला बच्चा नहीं है, इसलिए इसमें अधिनियम की धारा 80 के तहत दंडनीय अपराध की गुंजाइश नहीं बचती है. कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ दायर आरोप पत्र बिना किसी तथ्य के हैं.

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