भुवनेश्वर :उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने आज युवाओं से भारत के गौरवशाली अतीत से प्रेरणा लेने और उद्यमिता एवं नवाचार की भावना को आत्मसात करने का आह्वान किया. उन्होंने विश्वविद्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों से छात्रों को 21वीं सदी के कौशल से लैस करने की अपील की ताकि वे रोजगार निर्माता के तौर पर सामने आ सकें.
ओडिशा के भुवनेश्वर में उत्कल विश्वविद्यालय के 50वें दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने छात्रों और शिक्षकों को भारत की अंतरराष्ट्रीय शिक्षा की गौरवशाली परंपरा का स्मरण दिलाया.
इस अवसर पर, उपराष्ट्रपति ने उत्कल विश्वविद्यालय द्वारा पांच प्रतिष्ठित हस्तियों, जैसे- भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास, भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक गिरीश चंद्र मुर्मू, उड़ीसा उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति कुमारी संजू पांडा, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बीएआरसी) के निदेशक डॉ अजीत कुमार मोहंती और ओडिशा सरकार के सलाहकार डॉ. बिजया कुमार साहू को सम्मानित किया.
तक्षशिला, नालंदा, वल्लभी और विक्रमशिला जैसे प्राचीन भारतीय संस्थानों का उदाहरण देते हुए उन्होंने इस महान भारतीय परंपरा को कौशलपूर्ण विचारों से परिपूर्ण छात्रों द्वारा आत्मसात करने और इसे फिर से वापस लाने की आवश्यकता पर जोर दिया, जिसके माध्यम से देश की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में परिवर्तन किया जा सकता है.
उन्होंने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य केवल संज्ञानात्मक विकास नहीं है, अपितु चरित्र निर्माण करना भी है. उन्होंने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य छात्रों को 21वीं सदी के प्रमुख कौशल से लैस करते हुए उनके समग्र विकास के माध्यम से उनके भविष्य का निर्माण करना भी होना चाहिए.
उपराष्ट्रपति ने उल्लेख किया कि ओडिशा 62 विभिन्न जनजातीय समुदायों का निवास है, जो राज्य की कुल आबादी का 23 प्रतिशत है, नायडू ने उनके विकास और कल्याण की प्राथमिकताओं पर जोर देते हुए कहा कि हमें सम्मान और संवेदनशीलता के भाव के साथ जनजातीयों से संपर्क स्थापित करना चाहिए.
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उन्होंने कहा कि जनजातीयों के प्रति पितृसत्तात्मक व्यवहार उचित नहीं है. उन्होंने कहा कि वास्तविकता यह है कि हमें जनजातीय समुदायों से बहुत कुछ सीखना है जो प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाते हुए सरल जीवन बिताते हैं.
इस संबंध में, उपराष्ट्रपति ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान (एससीएसटीआरटीआई) के एक अध्ययन का उल्लेख करते हुए बताया कि ओडिशा में जनजातीय आबादी मुख्य रूप से अद्वितीय प्रथागत प्रथाओं के कारण कोविड-19 महामारी से बची रही है. जनजातियों की परंपराओं में पंक्तियों में चलना (समूहों के बजाय) और प्राकृतिक भोजन (प्रतिरक्षा बढ़ाने) करना शामिल है.
उन्होंने सुझाव दिया कि जनजातीय समुदायों के ऐसे सकारात्मक पहलुओं को उजागर किया जाना चाहिए और इन्हें विद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए. उपराष्ट्रपति ने इच्छा जताई कि उत्कल विश्वविद्यालय जैसी संस्थाएँ जनजातीयों के मुद्दों पर शोध करें और उनके विकास और कल्याण के लिए नीति निर्माण में सक्रिय योगदान दें.