नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को निर्देश दिया कि झारखंड में पांच कोयला खदानों सहित 37 खदानों की ई-नीलामी उसके अंतिम आदेशों के दायरे में रहेगी. अदालत ने केंद्र से कहा कि वह बोली लगाने वालों को सूचित करे कि किसी प्रकार का लाभ अस्थाई होगा और यह शीर्ष अदालत के अंतिम आदेश के दायरे में होगा.
केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि क्षेत्र में एक भी वृक्ष की कटाई नहीं होगी.
न्यायालय ने चार नवंबर को यह आदेश देने का संकेत दिया था कि झारखंड में व्यावसायिक मकसद से पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्र के 50 किमी के दायरे में प्रस्तावित कोयला खदानों के आवंटन के लिए ई-नीलामी नहीं की जाएगी.
शीर्ष अदालत ने कहा कि वह सिर्फ यह सुनिश्चित करना चाहती है कि जंगलों को नष्ट नहीं किया जाए. न्यायालय ने कहा कि वह विशेषज्ञों की एक समिति गठित करने पर विचार कर रहा है, जो यह पता लगाएगी कि क्या झारखंड में प्रस्तावित खनन स्थल के पास का इलाका पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र है या नहीं.
केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने शीर्ष अदालत की इस टिप्पणी का विरोध करते हुए कहा था कि इस तरह के पारिस्थितिकी दृष्टि से संवेदनशील जोन से खदान स्थल 20 से 70 किमी की दूरी पर हैं और अगर यही पैमाना लागू किया गया तो गोवा जैसे राज्यों में खनन असंभव हो जाएगा.
पीठ का कहना था कि जंगलों की ओर देखने का सारा मसला ही गलत है. समस्या यह है कि आप लकड़ी की आर्थिक कीमत आंकते हैं, लेकिन आप वन की कोई आर्थिक कीमत नहीं मानते. हम देश के विकास के खिलाफ नहीं है, लेकिन क्या आपको नहीं लगता कि पारिस्थितिकी दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र से 22 किमी की दूरी वनों से कितना नजदीक है.
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वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से सुनवाई करते हुए पीठ ने कहा कि वह केंद्र के खिलाफ झारखंड के वाद में मुद्दे निर्धारित करने के लिए सूचीबद्ध करेगी और अगर पक्षकार सहमत हुए तो वह गवाहों से पूछताछ करेगी और इस दौरान ई-नीलामी पर रोक रहेगी तथा पारिस्थितिक दृष्टि से संवेदनशील इलाकों के बारे में विशेषज्ञ समिति से रिपोर्ट मंगाई जा सकती है.