कोलकाता :बंगाल की राजनीति में पिछले दशक से दल-बदल करने वालों की संख्या बढ़ी है. विधानसभा अध्यक्ष बिमान बनर्जी इस बात से सहमत हैं कि पिछले 10 वर्षों में दल-बदल करने वाले किसी भी विधायक को अयोग्य करार देने का कोई उदाहरण नहीं है. हालांकि उन्होंने इस बारे में और अधिक नहीं बताया. बनर्जी ने कहा कि यह सच है कि पिछले 10 साल में पाला बदलने वाले किसी विधायक को अयोग्य करार देने का मामला विधानसभा में देखने को नहीं मिला है. लेकिन मैं इसके विस्तार में नहीं जाउंगा. विधानसभा अध्यक्ष के तौर यह उनका तीसरा कार्यकाल है.
दल-बदल का नवीनतम उदाहरण राज्य के दिग्गज नेता मुकुल रॉय का है, जिन्होंने मार्च-अप्रैल में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर जीत दर्ज की थी लेकिन इस महीने की शुरूआत में तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए. भगवा पार्टी ने अपनी ओर से विधानसभा अध्यक्ष को एक याचिका देकर रॉय को अयोग्य करार देने की मांग की है. हालांकि, उसके इस कदम की सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने आलोचना करते हुए कहा कि पहले सांसद शिशिर अधिकारी और सुनील मंडल को लोकसभा की सदस्यता त्यागनी चाहिए. दोनों सांसद विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हो गए थे.
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार 2010 में बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के उत्कर्ष के साथ राजनीतिक पार्टियां बदलने का चलन आम हो गया. उन्होंने दावा किया कि कांग्रेस, वाम मोर्चा और तृणमूल कांग्रेस के चार दर्जन से अधिक विधायकों ने 2011 से 2021 के बीच 15 वीं और 16 वीं विधानसभा में पाला बदला है. अकेले 16 वीं विधानसभा में ही कांग्रेस के 44 में से 24 विधायक और वाम दल के 32 विधायकों में आठ तृणमूल कांग्रेस या भाजपा में शामिल हो गए.
हालांकि, कांग्रेस ने सिर्फ 12 और मार्क्स वादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने एक अयोग्यता याचिका दायर की. कई मामलों में पार्टियां विधानसभा में मुख्य विपक्षी दल का दर्जा खोने के डर से अयोग्यता याचिका दायर करने से दूर रहीं. विपक्ष के नेता रह चुके अब्दुल मन्नान ने कहा कि केंद्र में भाजपा और राज्य में तृणमूल कांग्रेस के शासन के तहत दल-बदल रोधी कानून एक मजाक बन कर रह गया है. वाम मोर्चो के विधायक दल के पूर्व नेता सुजन चक्रवर्ती ने कहा कि वाम दल की विधायक दीपाली विश्वास 2016 के विधानसभा चुनाव के बाद तृणमूल कांग्रेस में चली गई थी और वह पिछले साल भाजपा में शामिल हो गई. उनके खिलाफ अयोग्यता मामले की 26 सुनवाई होने के बाद वह विधानसभा सदस्य बनी हुई हैं.
चक्रवर्ती ने कहा कि उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई, इससे हम समझ सकते हैं कि स्पीकर कोई कदम उठाना नहीं चाहते थे. हमने अर्जी (याचिका) देना बंद कर दिया. कानून के मुताबिक, दल-बदल करने वाले विधानसभा सदस्य को अयोग्य करार देने का स्पीकर का फैसला अंतिम होता है. हालांकि, उनके द्वारा इस बारे में फैसला करने के लिए कोई समय सीमा नहीं है. पार्टी अदालत का रुख तभी कर सकती है जब स्पीकर ने अपने फैसले की घोषणा कर दी हो. मन्नान ने कहा कि संबद्ध कानून (दल-बदल रोधी कानून,1985) में स्पीकर के फैसले के लिए कोई समय सीमा नहीं होने की खामी का भाजपा और तृणमूल कांग्रेस ने फायदा उठाया.