देहरादूनः उत्तराखंड के इतिहास में उत्तरकाशी भूस्खलन हादसा कोई नया नहीं है. हर साल मॉनसून सीजन के दौरान सैकड़ों जिंदगियां उत्तराखंड में काल के गाल में समा जाती हैं. लेकिन पिछले लगभग 36 घंटे से उत्तरकाशी के सिलक्यारा में फंसे 40 लोगों को बचाने का लगातार प्रयास जारी है. पीएम मोदी से लेकर सीएम धामी सभी इसकी मॉनिटरिंग कर रहे हैं. संभावना जताई जा रही है कि जल्द मलबे को बहार निकालकर सभी 40 मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया जाएगा. लेकिन इस हादसे ने एक बार फिर से कुछ हादसों की भयानक यादों को ताजा कर दिया है.
ऑल वेदर रोड और रेल मार्ग पर बन रही कई टनल: उत्तरकाशी टनल में फंसे लोगों को बचाने के लिए एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, बीआरओ और हाईवे अथॉरिटी ने मोर्चा संभाला हुआ है. मशीनों के जरिए मलबा निकलवाया जा रहा है. उत्तराखंड में मौजूदा समय में कई प्रोजेक्ट चल रहे हैं, जिसमें हाईवे अथॉरिटी के साथ-साथ रेलवे की सुरंग भी बन रही है. ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल मार्ग में भी पहाड़ों को खोदकर कई टनल बनाई जा रही है. इसके साथ ही उत्तराखंड ऑल वेदर रोड के लिए 4 बड़ी टनल बननी प्रस्तावित है.
अभी भी लगभग एक तिहाई मबला हटाना बाकी है. उत्तराखंड में टनल पहले भी बनी हादसों की वजह: उत्तराखंड में बन रही टनलों में कई हादसे हो चुके हैं. इसमें कई बार लोगों की जान भी जा चुकी है. कार्य के दौरान ना केवल इंसान बल्कि घर और खेत भी इससे प्रभावित हो रहे हैं. अकेले रुद्रप्रयाग में ही रेलवे की सुरंग की वजह से एक दर्जन से अधिक गांव में दरारें आ चुकी हैं. टनल में कार्य के दौरान बीते कुछ महीने पहले ही एक के बाद एक हादसे में दो मजदूर मारे जा चुके हैं. ये हादसा रुद्रप्रयाग के जवाड़ी बाईपास पर बन रही सुरंग में हुआ था. हालांकि, ये हादसे भूस्खलन की वजह से नहीं हुए. लेकिन कार्यदायी संस्था के ऊपर कई बार ये आरोप लगे हैं कि वो सुरक्षा मनकों को ध्यान में नहीं रख रही है.
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रैणी आपदा आई याद:सिलक्यारा हादसे के बाद जो सबसे अधिक घटना लोगों के जेहन में है, वो है 7 फरवरी 2021 में आई चमोली के रैणी गांव की आपदा. जिसमें पलक झपकते ही 130 से ज्यादा लोगों की मौत हुई. ऐसा ही रेस्क्यू उस वक्त तपोवन की उस टनल में भी चला था. एक के बाद एक शव साल 2022 तक भी उस टनल से मिलते रहे. इतना ही नहीं, रेल मार्ग के लिए बन रही टनल में इसी साल जनवरी माह में टिहरी के अटाली में हुए भू-धंसाव के कारण दरार भी आ चुकी है. जिसको बाद में सही किया गया है. ये दरार सुरंग के रिटेनिंग वॉल में आई थी.
टनल के अंदर 40 मजदूर फंसे हुए हैं. परीक्षण के बाद भी आ रही तमाम समस्या: उत्तराखंड में बन रही तमाम परियोजना को लेकर सरकार से लेकर कार्यदायी संस्था लगातार ये दावे करती रही है कि कार्य से पहले पूरी तरह से भूगर्भीय परीक्षण किया जाता है. ये बात सही भी है. लेकिन वाबजूद इसके आखिरकार क्यों उत्तराखंड में बन रही पहाड़ों के अंदर सुरंग से ना केवल उत्तराखंड के लोग बल्कि लोगों के घर, खेत भी भूस्खलन की चपेट में आ रहे हैं.
7 फरवरी 2021 को रैणी आपदा के दौरान भी कई लोग टनल में फंसने से मर गए थे. क्या कहते हैं भू-वैज्ञानिक: जाने माने भू-वैज्ञानिक बीड़ी जोशी बताते हैं कि ये हादसे किसी और वजह से नहीं, बल्कि सिर्फ और सिर्फ कैरिंग कैपेसिटी (वहन क्षमता) की वजह से हो रहे हैं. हम ये नहीं देख रहे हैं कि कौन सी जगह कितना भार सह सकती है. ना हम ये देख रहे हैं कितनी सुरंग कौन से पहाड़ों में बनाई जा सकती है. सिर्फ मिट्टी का परीक्षण करके ही काम किया जा रहा है.
उत्तरकाशी टनल हादसे को 36 घंटे से अधिक का समय हो चुका है. ये भी पढ़ेंःUttarkashi: सिलक्यारा टनल से हटाया गया 20 मीटर मलबा, मजदूरों के रेस्क्यू में लग सकते हैं दो दिन, 6 दिन के लिए पर्याप्त ऑक्सीजन उत्तरकाशी टनल हादसे में अब तक क्या हुआ: 12 नवंबर की सुबह लगभग 5 बजकर 30 मिनट पर उत्तरकाशी के सिलक्यारा टनल में भारी भूस्खलन हुआ. हादसा तब हुआ जब मजदूर काम काम कर रहे थे. हादसे के बाद कंपनी ने खुद ही मलबा हटाने की कोशिश की. लेकिन जब बात नहीं बनी तो प्रशासन को घटना की सूचना दी. लगभग दोपहर 12 बजे युद्धस्तर पर रेस्क्यू शुरू किया गया. शाम तक फंसे हुए मजदूरों से सेटेलाइट फोन के माध्यम से बातचीत हुई. इसके बाद पाइप डालकर भोजन और पीना भेजा गया. ऑक्सीजन की व्यवस्था की गई. घटना के 36 घंटे बाद भी लगभग एक तिहाई मलबा हटना बाकी है. उम्मीद है कि 14 नवंबर की सुबह तक सभी लोगों को सुरक्षित निकाल लिया जाएगा.