नई दिल्ली :दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि 1993 के मुंबई श्रृंखलाबद्ध विस्फोट मामले में अपनी भूमिका के लिए आजीवन कारावास की सजा काट रहे प्रत्यर्पित गैंगस्टर अबु सलेम द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका का इसलिए कोई औचित्य नहीं है, क्योंकि अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने के बाद उसकी हिरासत अवैध नहीं हो सकती.
उच्च न्यायालय सलेम की उस याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें भारत में उसकी हिरासत को अवैध घोषित करने और संधि की शर्तों के मद्देनजर उसे पुर्तगाल वापस भेजने की मांग की गई थी. बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में एक ऐसे व्यक्ति को पेश करने का निर्देश देने की मांग की जाती है जो लापता या अवैध रूप से हिरासत में हो.
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी की पीठ ने कहा कि एक बार जब अदालत ने सलेम के मुकदमे की सुनवाई कर ली और उसे दोषी ठहरा दिया तो वह कैसे कह सकता है कि हिरासत अवैध है.
पीठ ने उच्चतम न्यायालय के एक फैसले का हवाला दिया और कहा, 'भले ही शुरू में आपकी हिरासत कानून के लिहाज से अनुचित थी, फिर भी अदालत द्वारा आपकी सजा के बाद, आपकी हिरासत अवैध नहीं रहती है.'
पीठ ने कहा, 'इस मामले में बंदी प्रत्यक्षीकरण का मामला नहीं बनता. यह तब होता जब आपकी हिरासत अवैध होती लेकिन यहां ऐसा नहीं है.'