नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मद्रास हाई कोर्ट (Madras High Court) के उस फैसले को रद्द कर दिया है, जिसमें 12 साल से अधिक समय से अलग रह रहे एक जोड़े की शादी को खत्म कर दिया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट ने पत्नी की ओर से क्रूरता के आरोपों पर कोई निष्कर्ष दर्ज नहीं किया और विवादित तलाक की कार्यवाही में पक्षों के बीच विवाह को समाप्त करने के लिए विवाह के अपूरणीय टूटने के सिद्धांत पर भरोसा करके कानून की गलती की.
इस संबंध में न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने कहा कि हाई कोर्ट ने सबूतों पर विस्तार से विचार किया है, लेकिन ऐसा कोई निष्कर्ष नहीं निकला है कि अपीलकर्ता-पत्नी द्वारा प्रतिवादी-पति के साथ क्रूरता की गई थी. मामले में हाई कोर्ट ने कहा था कि दोनों पक्ष 12 साल से अधिक समय से अलग-अलग रह रहे हैं और दोनों पक्षों के बीच सुलह कराने का प्रयास विफल रहा. इस वजह से भावनात्मक और व्यावहारिक रूप से विवाह समाप्त हो गया है. हाई कोर्ट ने कहा कि नाम मात्र के लिए रिश्ते को जारी रखना पीड़ा को लम्बा खींच रहा है और पीड़ा दोनों पक्षों के लिए क्रूरता होगी.
हाई कोर्ट ने मार्च 2022 में पारित अपने फैसले में कहा कि इसलिए हमारी राय है कि पक्षों के बीच विवाह अपरिवर्तनीय रूप से टूट गया है और पक्ष अब पति-पत्नी के रूप में एक साथ नहीं रह सकते हैं. इस पर पति और पत्नी दोनों ने हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की. पति की अपील में मुख्य आधार यह था कि क्रूरता पाए जाने पर तलाक की डिक्री दी जानी चाहिए थी, जबकि पत्नी ने अपनी अपील इस आधार पर की थी कि पारिवारिक अदालत को न्यायिक अलगाव का आदेश नहीं देना चाहिए था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमारी राय है कि हाई कोर्ट ने विवादित तलाक की कार्यवाही में पक्षों के बीच विवाह को भंग करने के लिए विवाह के अपूरणीय टूटने के सिद्धांत पर भरोसा करके कानून की गलती की है.