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Divorce Case : मद्रास HC के दंपति के तलाक फैसले को SC ने किया रद्द, 12 साल से अलग रह रहे थे पति-पत्नी - divorce proceeding

बारह साल से अलग-अलग रह रहे पति-पत्नी को मद्रास हाई कोर्ट (Madras High Court) के द्वारा शादी खत्म किए जाने के आदेश को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने रद्द कर दिया है. शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसा कोई निष्कर्ष नहीं निकला है कि अपीलकर्ता पत्नी द्वारा प्रतिवादी पति के साथ क्रूरता की गई थी.

Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 19, 2023, 7:59 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मद्रास हाई कोर्ट (Madras High Court) के उस फैसले को रद्द कर दिया है, जिसमें 12 साल से अधिक समय से अलग रह रहे एक जोड़े की शादी को खत्म कर दिया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट ने पत्नी की ओर से क्रूरता के आरोपों पर कोई निष्कर्ष दर्ज नहीं किया और विवादित तलाक की कार्यवाही में पक्षों के बीच विवाह को समाप्त करने के लिए विवाह के अपूरणीय टूटने के सिद्धांत पर भरोसा करके कानून की गलती की.

इस संबंध में न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने कहा कि हाई कोर्ट ने सबूतों पर विस्तार से विचार किया है, लेकिन ऐसा कोई निष्कर्ष नहीं निकला है कि अपीलकर्ता-पत्नी द्वारा प्रतिवादी-पति के साथ क्रूरता की गई थी. मामले में हाई कोर्ट ने कहा था कि दोनों पक्ष 12 साल से अधिक समय से अलग-अलग रह रहे हैं और दोनों पक्षों के बीच सुलह कराने का प्रयास विफल रहा. इस वजह से भावनात्मक और व्यावहारिक रूप से विवाह समाप्त हो गया है. हाई कोर्ट ने कहा कि नाम मात्र के लिए रिश्ते को जारी रखना पीड़ा को लम्बा खींच रहा है और पीड़ा दोनों पक्षों के लिए क्रूरता होगी.

हाई कोर्ट ने मार्च 2022 में पारित अपने फैसले में कहा कि इसलिए हमारी राय है कि पक्षों के बीच विवाह अपरिवर्तनीय रूप से टूट गया है और पक्ष अब पति-पत्नी के रूप में एक साथ नहीं रह सकते हैं. इस पर पति और पत्नी दोनों ने हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की. पति की अपील में मुख्य आधार यह था कि क्रूरता पाए जाने पर तलाक की डिक्री दी जानी चाहिए थी, जबकि पत्नी ने अपनी अपील इस आधार पर की थी कि पारिवारिक अदालत को न्यायिक अलगाव का आदेश नहीं देना चाहिए था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमारी राय है कि हाई कोर्ट ने विवादित तलाक की कार्यवाही में पक्षों के बीच विवाह को भंग करने के लिए विवाह के अपूरणीय टूटने के सिद्धांत पर भरोसा करके कानून की गलती की है.

शीर्ष अदालत ने कहा कि हाई कोर्ट ने पत्नी की ओर से क्रूरता के आरोपों पर कोई निष्कर्ष नहीं दिया गया जिसके बाद पारिवारिक अदालत एक विशिष्ट निष्कर्ष पर पहुंची. वहीं अपीलों को नए सिरे से सुनवाई के लिए हाई कोर्ट को भेजते हुए सुप्रीम कोर्ट अदालत ने 11 सितंबर को अपने आदेश में कहा कि अपील के उचित निर्णय के लिए उस संबंध में निर्णय आवश्यक था. इसलिए हाई कोर्ट का फैसला जिस हद तक उसने पक्षों के बीच विवाह को विघटित करके तलाक का आदेश दिया उसे रद्द कर दिया जाएगा. बता दें कि इरोड की एक पारिवारिक अदालत ने पति की याचिका पर कार्रवाई करते हुए तलाक की डिक्री के बजाय न्यायिक अलगाव का आदेश पारित किया था.

पारिवारिक अदालत ने सबूतों के आधार पर पत्नी के कुछ कृत्यों को क्रूरता के दायरे में पाया था. इस पर पति और पत्नी दोनों ने मद्रास हाई कोर्ट में अपील दायर की. साथ ही पति ने कहा कि क्रूरता का पता चलने पर तलाक की डिक्री दी जानी चाहिए थी. हालांकि, पत्नी ने न्यायिक अलगाव के आदेश को चुनौती दी.मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पारिवारिक अदालत के फैसले के पहलू को हाई कोर्ट के फैसले में संबोधित नहीं किया गया था. शीर्ष अदालत ने कहा कि दूसरी ओर हाई कोर्ट ने पक्षों के बीच विवाह को विघटित करके तलाक की डिक्री देने के लिए विवाह के अपूरणीय टूटने के सिद्धांत को लागू किया है.

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