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Abrogation Of Article 370 Case : हमारे संविधान में जनमत संग्रह का कोई सवाल ही नहीं: CJI

भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ जिसमें न्यायमूर्ति एस के कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, बी आर गवई और सूर्यकांत शामिल हैं, अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. पढ़ें पूरी खबर...

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Published : Aug 8, 2023, 1:33 PM IST

Updated : Aug 8, 2023, 1:59 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है. मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल की व्यापक दलीलें सुनीं. बेंच में जस्टिस संजय किशन कौल, संजीव खन्ना, बी.आर. गवई और सूर्यकांत भी शामिल हैं. मंगलवार को यह सुनवाई 10:30 बजे शुरू हुई.

पूर्व सीजेआई गोगोई पर सीजेआई चंद्रचूड़ ने सिब्बल को दिया जवाब
सिब्बल ने अपनी बहस जारी रखते हुए कहा कि कार्यकारी आदेश के जरिए कोई संविधान के किसी भी प्रावधान को नहीं बदल सकता है. उन्होंने कहा कि क्योंकि आपके पास बहुमत है. आप कुछ भी नहीं कर सकते. हमारे पूर्वजों ने हमें जो दिया है, उसकी इमारत को यह बहुसंख्यकवादी संस्कृति नष्ट नहीं कर सकती...वे संभवतः इसे उचित नहीं ठहरा सकते. सिब्बल ने कहा कि जब तक कोई नया न्यायशास्त्र सामने नहीं आता कि जिनके पास बहुमत है वे जो चाहें वह कर सकते हैं. इसी सिलसिले में सिब्बल ने पूर्व सीजेआई को कोट करते हुए कहा कि आपके एक सम्मानित सहयोगी ने कहा है कि वास्तव में बुनियादी संरचना सिद्धांत भी संदिग्ध है. इसका जवाब देते हुए सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि मिस्टर सिब्बल, जब आप किसी सहकर्मी का जिक्र करते हैं, तो आपको एक मौजूदा सहयोगी का जिक्र करना होगा. एक बार जब हम न्यायाधीश के पद से उतर जाते हैं तो हमारी बात सिर्फ एक राय बन जाती है. बाध्यकारी तथ्य नहीं.

निरस्तीकरण एक राजनीतिक निर्णय था, जम्मू-कश्मीर के लोगों की राय लेनी चाहिए थी: सिब्बल
इससे पहले, सिब्बल ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि इसे निरस्त करना एक राजनीतिक निर्णय था. जम्मू-कश्मीर के लोगों की राय मांगी जानी चाहिए थी. उन्होंने ब्रेक्जिट का उदाहरण दिया जहां जनमत संग्रह हुआ था. इस पर सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि हमारा जैसा संविधान है उसमें जनमत संग्रह का कोई सवाल ही नहीं है. सीजेआई चंद्रचूड़ ने सिब्बल को संबोधित करते हुए कहा कि संवैधानिक लोकतंत्र में लोगों की राय लेना स्थापित संस्थानों के माध्यम से होना चाहिए. जब तक लोकतंत्र मौजूद है, लोगों की इच्छा संविधान द्वारा स्थापित संस्थाओं के माध्यम से व्यक्त होनी चाहिए. इसलिए आप ब्रेक्सिट जैसे जनमत संग्रह की परिकल्पना नहीं कर सकते. वह एक राजनीतिक फैसला है जो तत्कालीन सरकार ने लिया था. लेकिन हमारा जैसा संविधान में जिसमें जनमत संग्रह का कोई सवाल ही नहीं है.

संविधान रद्द करना राजनीतिक फैसला है, संवैधानिक नहीं
सिब्बल ने अपने तर्क आगे पढ़ाते हुए कहा कि यह (धारा 370 का निरस्तीकरण) एक राजनीतिक निर्णय है, संवैधानिक निर्णय नहीं है. इस पर सीजेआई ने कहा कि लेकिन फिर सवाल यह है कि संविधान ऐसा करता है या नहीं. इसके बाद सिब्बल ने कहा कि मैं बस यही पूछ रहा हूं. उन्होंने आगे कहा कि इसे हटाना एक राजनीतिक कार्रवाई थी और अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान है या नहीं, यह कोई मुद्दा नहीं है. संविधान सभा की कार्यवाही यह निर्धारित करने के लिए आवश्यक है कि क्या अनुच्छेद 370 एक अस्थायी उपाय था.

सिब्बल ने तर्क दिया कि संविधान सभा की कार्यवाही यह निर्धारित करने के लिए आवश्यक है कि क्या अनुच्छेद 370 एक अस्थायी उपाय था. सिब्बल को संबोधित करते हुए सीजेआई ने कहा कि तो आपका तर्क यह होगा कि संविधान सभा की कार्यवाही एक दीर्घकालिक व्यवस्था के रूप में अनुच्छेद 370 के तहत व्यवस्था की पुन: पुष्टि का संकेत देगी? सिब्बल ने हां में जवाब दिया कि क्या अनुच्छेद 370 जिसकी परिकल्पना एक अस्थायी प्रावधान के रूप में की गई थी, को केवल जम्मू-कश्मीर विधानसभा की कार्यवाही से स्थायी प्रावधान में परिवर्तित किया जा सकता है?

सीजेआई चंद्रचूड़ ने पूछा कि इससे एक सवाल उठता है - क्या अनुच्छेद 370 जिसे एक अस्थायी प्रावधान के रूप में परिकल्पित किया गया था, उसे केवल जम्मू-कश्मीर विधानसभा की कार्यवाही ने स्थायी प्रावधान में परिवर्तित किया जा सकता है? या क्या भारतीय संविधान द्वारा किसी अधिनियम की आवश्यकता थी - या तो संवैधानिक संशोधन के रूप में?'

इससे पहले, वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने मंगलवार को अपनी दलीलें शुरू कीं. सिब्बल ने अतिरिक्त पूरक लिखित प्रस्तुतियां प्रस्तुत करने का प्रस्ताव रखा है. इस पर भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डी.वाई चंद्रचूड़ ने अगर इसकी अनुमति दी गई तो अन्य वकील भी ऐसा करने की अनुमति मांगेंगे. सीजेआई ने कहा कि 'अतिरिक्त दलीलों, प्रत्युत्तरों के साथ, निर्णय का मसौदा तैयार करना असंभव हो जाता है.

सिब्बल ने जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा के उद्देश्य को रेखांकित करने वाले शेख अब्दुल्ला के भाषण का हवाला दिया. यह संविधान सभा में अब्दुल्ला का पहला भाषण था. जो 5 नवंबर, 1951 को दिया गया था. सीजेआई ने शेख अब्दुल्ला के भाषण का जिक्र किया जिसमें कहा गया है कि पाकिस्तान एक सामंती राज्य है.

सीजेआई ने शेख अब्दुल्ला के भाषण को कोट करते हुए कहा कि उनके भाषण में उल्लेख किया गया है कि पाकिस्तान एक सामंती राज्य है. भारत की तुलना में सामंती पाकिस्तान में हमारे हितों की रक्षा नहीं की जाएगी जहां भूमि सुधार हो रहे हैं.

सीजेआई ने शेख अब्दुल्ला के भाषण का अंश पढ़ा, 'सबसे शक्तिशाली तर्क जो उनके पक्ष में दिया जा सकता है वह यह है कि पाकिस्तान एक मुस्लिम राज्य है, और हमारे लोगों का एक बड़ा बहुमत मुस्लिम होने के कारण राज्य को पाकिस्तान में शामिल होना चाहिए. मुस्लिम राज्य होने का यह दावा निस्संदेह केवल एक दिखावा है. यह आम आदमी को धोखा देने के लिए एक पर्दा है, ताकि वह स्पष्ट रूप से न देख सके कि पाकिस्तान एक सामंती राज्य है जिसमें एक गुट खुद को सत्ता में बनाए रखने के लिए इन तरीकों से कोशिश कर रहा है'.

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जम्मू-कश्मीर के लोगों ने खुद को अपना संविधान दिया : सिब्बल
अब्दुल्ला के भाषण का जिक्र करते हुए सिब्बल बताते हैं कि जम्मू-कश्मीर के लोगों ने खुद को अपना संविधान दिया. भारत के लोगों ने खुद को भारतीय संविधान दिया. उन्होंने आगे कहा कि इन सबके केंद्र में लोगों की इच्छा है. सिब्बल ने कहा कि आप एक कार्यकारी अधिनियम द्वारा संविधान के प्रावधानों को नष्ट नहीं कर सकते. सिब्बल ने तर्क दिया कि संविधान के प्रावधानों को एक कार्यकारी अधिनियम के माध्यम से नष्ट नहीं किया जा सकता है. उन्होंने आगे कहा कि आप अनुच्छेद 3 को बदलकर जम्मू-कश्मीर पर लागू संविधान को नहीं बदल सकते. आप एक कार्यकारी अधिनियम के माध्यम से विधान सभा को संविधान सभा में नहीं बदल सकते.

Last Updated : Aug 8, 2023, 1:59 PM IST

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