नई दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को वन में रहने वाले कुछ आदिवासियों को मुंबई के आरे जंगल में मेट्रो रेल परियोजना के लिए काटे जा रहे पेड़ों से संबंधित शिकायतों को लेकर बॉम्बे हाई कोर्ट जाने की अनुमति दे दी है. दरअसल, आदिवासियों का कहना है कि प्रोजेक्ट के लिए काटे जा रहे कई पेड़ उनकी जमीन पर हैं. मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की पीठ ने आरे वन क्षेत्र में रहने का दावा करने वाले कुछ आदिवासियों की याचिका पर सुनवाई की. आदिवासियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह की दलीलों को सुप्रीम कोर्ट ने सुना. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर बॉम्बे हाई कोर्ट के समक्ष लंबित याचिका में हस्तक्षेप करने के लिए कहा है.
वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कहा कि 'मैं उन आदिवासियों और अन्य लोगों की तरफ से पेश हुआ हूं, जो पेड़ काटे जाने पर विस्थापित होने से मजूर हो जाएंगे. आदिवासियों का कहना है कि उनकी जमीन पर 49 पेड़ हैं.' इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक याचिका पहले से ही उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित है और वे वहां अपने अधिकार के प्रवर्तन का मुद्दा उठा सकते हैं.
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दरअसल, याचिकाकर्ता वनवासी होने के नाते अपने अधिकारों का दावा करते हैं. चूंकि याचिका उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि इसे उच्च न्यायालय के समक्ष उठाने की स्वतंत्रता दी जाती है और उच्च न्यायालय शीघ्र सूचीबद्ध करने के लिए इस पर विचार कर सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने 17 अप्रैल को कार शेड परियोजना के लिए आरे जंगल में केवल 84 पेड़ों की कटाई की अनुमति देने के अपने पहले के आदेश को पार करने की कोशिश करने के लिए मुंबई मेट्रो को फटकार लगाई और जुर्माना के रूप में 10 लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया.