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मिलिए रियल लाइफ की 'शेरनी' से, जो लड़कियों को देती हैं खुलकर जीने का हौसला

आइये, आज हम आपको मिलाते हैं रियल लाइफ की 'शेरनी' से. जंगल की नौकरी के दौरान महिला अधिकारियों को आने वाली परेशानियों को दिखाने के लिए विद्या बालन की फिल्म शेरनी ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज हुई है लेकिन रील लाइफ में काम करना और रियल लाइफ के अनुभव क्या है जानिए पेंच टाइगर रिजर्व में एसडीओ भारती ठाकरे से.

रियल लाइफ की 'शेरनी'
रियल लाइफ की 'शेरनी'

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Published : Jun 22, 2021, 2:24 PM IST

छिन्दवाड़ा :मध्य प्रदेश की रियल लाइफ की 'शेरनी' भारती ठाकरे (Bharti Thakrey) एक ऐसी अफसर हैं जो 28 सालों से वन विभाग में निडरता से नौकरी कर रही हैं. कई चुनौतियां आईं, कई मुश्किलों का सामना किया, लेकिन सब कुछ उन्होंने अपने अंदाज में, सरलता से और समन्वय से हल किया. उनका मानना है कि परिवार का सहयोग हो और जज्बा हो तो किसी भी प्रकार की नौैकरी को आसानी से किया जा सकता है. बता दें कि पेंच टाईगर रेंज में तैनात भारती ठाकरे एसडीओ के रूप में तैनात हैं और उन लड़कियों के लिए प्रेरणा हैं जो जंगल या वन विभाग की नौकरी करने से हिचकिचाती हैं. भारती लड़कियों को हौसला देती हैं कि वे हर क्षेत्र की नौकरी न सिर्फ कर सकती हैं, बल्कि जी सकती हैं. इस बारे में भारती क्या कहती हैं, पढ़िए ईटीवी भारत से उनकी बातचीत.

रियल लाइफ की 'शेरनी'

सवाल- हाल ही में एक मूवी रिलीज हुई है शेरनी, जिसकी शूटिंग पेंच टाइगर रिजर्व में भी हुई है. आप भी वही काम करती हैं, रियल लाइफ में काम करने और रील लाइफ में काम करना कितना अंतर है.

जबाव- रील लाइफ में काम करना और रियल लाइफ में काम करना एक दम अलग है, टाइगर रिजर्व में सबसे महत्वपूर्ण काम पैदल पेट्रोलिंग का होता है और महिलाओं के लिए और कठिन हो जाता है, कई बार होता है कि समय निश्चित नहीं होता, आपको रात में भी पेट्रोलिंग करनी होती है, दिन में भी करनी होती है, इसलिए डर होता है कि कभी भी वन माफिया आप पर हमला कर सकते हैं, हमारे साथ भी ऐसा एक बार हो चुका है, जब तोतलाडोह में रात की पेट्रोलिंग के दौरान कुछ मछुआरों ने हमें घेर लिया था, उनके पास घातक हथियार के साथ ही केमिकल भी थे, जो हमें और हमारी टीम को नुकसान पहुंचा सकते थे, हमने सूझ-बूझ से काम लिया और अपनी टीम को समझाने के साथ ही माफियाओं से भी समन्वय से चर्चा की, लेकिन बाद में उन्हें नियम के हिसाब से मामला दर्ज कर सजा भी दी गई.

सवाल- आपकी नौकरी में समय निश्चित नहीं होता, रिस्क भी काफी होती है, कोई ऐसा समय जब आपको डर के साथ लगा हो कि नौकरी करना गलत फैसला था.

जबाव- हमेशा से ही मुझे जंगली जानवरों पर विश्वास रहा है, कई बार पैदल भी ऐसे मौके आए हमारे सामने, जब भालू और कई जानवर आए, टाइगर भी आया लेकिन हम उस समय गाड़ियों में थे,वैसे डर मुझे कभी नहीं लगा क्योंकि मैं शुरू से ऐसे माहौल में पली-बढ़ी थी.

सवाल- मध्य प्रदेश के विभाजन के बाद आप इकलौती महिला फॉरेस्ट रेंजर थीं, करीब 10 साल तक मध्यप्रदेश में इकलौती महिला रेंजर के रूप में आपने काम किया, कैसा अनुभव था.

रियल लाइफ की 'शेरनी'

जबाव- अंग्रेजों के शासन काल में मेरे दादाजी वन विभाग में नौकरी करते थे, हालांकि उनकी सेवा फोरेस्ट गार्ड तक ही सीमित रही, उससे आगे उनका प्रमोशन नहीं हुआ, लेकिन जैसे ही मेरा फोरेस्ट रेंजर के पद पर प्रमोशन हुआ, तो उन्हें बेहद खुशी हुई कि उनकी पोती रेंजर के पद पर सिलेक्ट हुई है, इसके साथ ही मेरे परिवार ने हमेशा ही मुझे सहयोग करते हुए काम करने की प्रेरणा दी है. मध्य प्रदेश का जब विभाजन हुआ उस दौरान 2 महीला रेंजर थीं, एक छत्तीसगढ़ में चली गई और मैं मध्यप्रदेश में ही रही, करीब 10 साल तक प्रदेश में इकलौती फॉरेस्ट रेंजर के रूप में मैंने काम किया.

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सवाल-28 साल पहले आपने वन विभाग की नौकरी ज्वाइन की थी,कितना मुश्किल था महिलाओं के लिए वो दौर.

जबाव- जैसे ही मैंने 1991 में नौकरी ज्वाइन की तो 2 साल की ट्रेनिंग के दौरान करीब 40 पुरुष सहयोगी के साथ इकलौती महिला थी, उस दौरान अधिकारियों का कहना होता था कि आप महिला हैं तो आपको अलग से रियायत नहीं है, इसलिए पैदल पेट्रोलिंग हो या फिर लंबे लंबे टूर या 40 किलोमीटर की साइकिल यात्रा, सभी करना होगा, लेकिन मैंने भी अपने आप को कभी पुरुषों से पीछे नहीं रखा, उस दौरान पुरुषवादी मानसिकता ज्यादा हावी थी, लोगों का कहना होता था कि तुम तो महिला हो जंगल में कैसे नौकरी करोगी, हमारी बराबरी कैसे कर पाओगी. लेकिन मैने करके दिखाया.

सवाल- जैसा फिल्मों में दिखाया जाता है कि नौकरी के दौरान माफियाओं को राजनीतिक संरक्षण भी होता है. क्या-क्या चुनौतियां आपको नजर आती हैं.

जवाब- अगर आपको अपने परिवार का भरपूर सहयोग हो तो आप कोई भी जंग जीत जाते हो, नौकरी के दौरान राजनीतिक प्रेशर अधिकारियों के काम का दवाब, कई चीजें सामने आती हैं, लेकिन सब का एक ही उपाय होता है समन्वय, खास तौर पर कई बार ग्रामीण हमें अपना दुश्मन इसलिए मान लेते हैं कि हम जंगल को बचाते हैं, उन्हें लगता है कि हम उनके दुश्मन हैं, लेकिन उनके साथ समन्वय बनाकर काम करने से हर काम आसान हो जाता है.

सवाल- आज भी कई परिजन बेटियों को चुनौती भरी नौकरी कराने से डरते हैं, क्या संदेश देना चाहेंगी आप.

जबाव- सबसे पहले तो बेटियों को खूब मन लगाकर पढ़ाई करना चाहिए और उन्हें जिस भी क्षेत्र में जाना है, उसके लिए खूब मेहनत करनी चाहिए, परिजनों को उनका सहयोग करना चाहिए, क्योंकि अब वो समय नहीं रहा कि लड़कियां किसी से कम हैं, वे हर क्षेत्र में आगे हैं.

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