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तमिलनाडु में विधेयकों की मंजूरी पर देरी, सुप्रीम कोर्ट ने कहा-'ये चिंता का विषय'

सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार की याचिका पर सुनवाई की, जिसमें कहा गया है कि राज्यपाल विधेयकों को मंजूरी देने और लोक सेवकों के खिलाफ मुकदमा चलाने के प्रस्तावों को मंजूरी नहीं दे रहे हैं. शीर्ष कोर्ट ने कहा कि 'ये चिंता का विषय है.' matter of serious concern, SC on delay by Tamil Nadu governor, pending bills, Supreme Court, SC on delay pending bills.

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सुप्रीम कोर्ट

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 10, 2023, 3:12 PM IST

Updated : Nov 10, 2023, 3:50 PM IST

नई दिल्ली :सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को चिंता व्यक्त की कि तमिलनाडु के राज्यपाल ने 12 विधेयकों, समयपूर्व रिहाई के 54 प्रस्तावों, लोक सेवा आयोग में 10 नियुक्तियों और लोक सेवकों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी के प्रस्तावों पर भी कार्रवाई नहीं की है.

वरिष्ठ अधिवक्ता ए एम सिंघवी, पी विल्सन और मुकुल रोहतगी शीर्ष अदालत के समक्ष तमिलनाडु सरकार की ओर से पेश हुए. भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने लंबित विधेयकों और प्रस्तावों पर तमिलनाडु सरकार के वकील की दलीलें सुनने के बाद कहा, 'यह गंभीर चिंता का विषय है...'

सिंघवी ने कहा कि 13 जनवरी, 2020 और 28 अप्रैल, 2023 के बीच पारित 12 विधेयक राज्यपाल की सहमति के लिए लंबित हैं. शीर्ष अदालत को सूचित किया गया कि लंबित मामलों की अन्य श्रेणियों में उम्रकैद की सजा से पहले रिहाई से संबंधित 54 फाइलें हैं. राज्य सरकार के वकील ने दलील दी कि टीएन लोक सेवा आयोग के 14 पदों में से 10 पद राज्यपाल की मंजूरी के अभाव में खाली पड़े हैं.

वकील ने तर्क दिया कि अभियोजन की मंजूरी के कुछ प्रस्तावों को भी स्वीकार नहीं किया गया है. राज्य सरकार के वकील ने संविधान के अनुच्छेद 200 पर जोर दिया जिसमें कहा गया है कि राज्यपाल को लंबित विधेयकों पर 'जितनी जल्दी हो सके' निर्णय लेना होगा.

पीठ में न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे. दलीलें सुनने के बाद पीठ ने तमिलनाडु सरकार द्वारा दायर याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया और मामले की आगे की सुनवाई 20 नवंबर को निर्धारित की. पीठ ने मामले में अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी या सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की सहायता भी मांगी.

गौरतलब है कि तमिलनाडु सरकार ने राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने में राज्यपाल आरएन रवि की देरी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. राज्य सरकार का कहना है कि इससे पूरा प्रशासन ठप हो गया है और दावा किया कि उन्होंने खुद को वैध रूप से निर्वाचित लोगों के लिए 'राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी' के रूप में पेश किया है.

राज्य की याचिका में तर्क दिया गया कि राज्यपाल ने 'छूट आदेशों, दिन-प्रतिदिन की फाइलों, नियुक्ति आदेशों, भर्ती आदेशों को मंजूरी देने, भ्रष्टाचार में शामिल मंत्रियों, विधायकों पर मुकदमा चलाने की मंजूरी नहीं दी, जिसमें सुप्रीम कोर्ट द्वारा जांच को सीबीआई को स्थानांतरित करना, तमिल द्वारा पारित बिल शामिल हैं. राज्य प्रशासन के साथ सहयोग न करके प्रतिकूल रवैया पैदा किया जा रहा है.

याचिका में कहा गया है कि राज्यपाल ने 'विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों पर विचार करने में अन्यायपूर्ण और अत्यधिक देरी करके विधान सभा की अपने विधायी कर्तव्यों को पूरा करने की क्षमता में बाधा डालकर खुद को वैध रूप से चुनी हुई सरकार के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी के रूप में स्थापित किया है.'

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Last Updated : Nov 10, 2023, 3:50 PM IST

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