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पांच दशक बाद मिली जीत : दूसरे विश्व युद्ध में बलवंत सिंह ने गंवाए पैर, फिर लड़ी सिस्टम से जंग - Sipahi Balwant Singh

97 साल (97 Year Old Warrior) का इंतजार कम नहीं होता! लेकिन जब भरोसा हो कि मंजिल मिलकर ही रहेगी तो इंसान हर पल को शिद्दत से जी लेता है. ऐसा जज्बा एक योद्धा (Warrior) के बूते की ही बात होती है और इस योद्धा का नाम है सिपाही बलवंत सिंह (Sipahi Balwant Singh).

पांच दशक बाद मिली जीत
पांच दशक बाद मिली जीत

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Published : Nov 11, 2021, 7:43 PM IST

झूंझुनू: दूसरे विश्व युद्ध (2nd World War) में भारतीय सैनिकों की जांबाजी के कारनामे आज भी दुनिया की जुबान पर हैं . इस लड़ाई में भाग लेकर अपना एक पैर गंवाने वाले योद्धा को हाल ही में पांच दशक की कानूनी लड़ाई के बाद दिव्यांग पेंशन (Disability Pension) का हक हासिल हो सका है. झुंझुनूं जिले की चिड़ावा तहसील (Chidava) के गिडानिया गांव निवासी सिपाही बलवंत सिंह (Sipahi Balwant Singh) फिलहाल 97 बरस के हो चुके हैं.

9 नवम्बर 2021 को दिल्ली में मिलिट्री ट्रिब्यूनल (Military Tribunal) ने उनकी दिव्यांगता पेंशन (Disability Pension) को मंजूरी दी थी. बलवंत सिंह ने द्वितीय विश्व युद्ध (2nd World War) में अपनी वीरता का लोहा मनवाते हुए सेना के ऑपरेशन के दौरान अपना एक पैर गंवा दिया (Lost A Leg) था. इसके बाद 5 दशक से वह दिव्यांगता पेंशन (Disability Pension) का इंतजार कर रहे थे.

पांच दशक बाद मिली जीत

सिपाही बलवंत सिंह को 1943 में 3/1 पंजाब रेजिमेंट (Punjab Regiment) में शामिल किया गया था. 15 दिसंबर, 1944 को द्वितीय विश्व युद्ध (2nd World War) के दौरान इटली पर हमले के दौरान, एक खदान विस्फोट में उनका बायां पैर कट गया था. 1946 में राजपूताना राइफल्स में स्थानांतरित होने के बाद वे अमान्य हो गए और बुनियादी दिव्यांगता पेंशन के साथ सेवा छोड़ दी. 1972 में, केंद्र ने उन सभी लोगों को युद्ध चोट पेंशन देने का प्रावधान किया, जो विभिन्न युद्धों के दौरान घायल हुए थे, लेकिन विश्व युद्धों के दौरान घायल हुए लोगों को इसमें जगह नहीं दी गई. इस फैसले के खिलाफ ये जांबाज सशस्त्र बल न्यायाधिकरण जयपुर (AFT Jaipur) की शरण में गया था. 5 दशक के बाद जब बलवंत सिंह का मिलिट्री ट्रिब्यूनल ने दिव्यांगता पेंशन की मंजूरी दी तो खबर सुनकर आंख में खुशी के आंसू आ गये.

बेटे ने बताई संघर्ष की दास्तान

बलवंत सिंह ने अपनी दिव्यांगता पेंशन के लिये काफी जद्दोजहद की. उनके परिवार ने राजस्थान सरकार से भी दरख्वास्त की पर, कोई मदद नहीं मिली. इस मामले में बलवंत के बेटे सुभाष सिंह ने अपना अनुभव बांटा. उन्होंने बताया कि इस मामले में पहले अदालत ने भी कहा था कि युद्ध दिव्यांगता पेंशन के लिए बलवंत सिंह पात्र नहीं हैं, जबकि वह द्वितीय विश्व युद्ध में लड़े हैं. अब उनका पूरा परिवार दिव्यांगता पेंशन की मंजूरी के फैसले से खुश है. उन्होंने इस जीत के बाद राजस्थान सरकार से बाकी वॉरियर्स के हिसाब से सुविधाएं देने की मांग की है.

ऐसी रही पेंशन की लड़ाई

बलवंत सिंह ने अपनी दिव्यांगता पेंशन के लिये लंबी लड़ाई लड़ी है. इस लड़ाई में उनके वकील रहे कर्नल एसबी सिंह (सेवानिवृत्त) ने बताया, "सरकार ने युद्ध दिव्यांगता पेंशन का प्रावधान किया है, जो कि 1947 के बाद की लड़ाई में घायल हुए लोगों और दुनिया में लड़ने वाले भारतीय सैनिकों को दिए जाने वाले अंतिम वेतन का 100% है. बलवंत सिंह की दिव्यांगता 100% है, क्योंकि उन्होंने अपना बायां पैर खो दिया था. मगर लंबे समय से एएफटी (AFT) में कोई न्यायाधीश नहीं होने के चलते मामला लंबित चल रहा था.

हाल ही में, इसी तरह के एक मामले में, लखनऊ एएफटी ने द्वितीय विश्व युद्ध (2nd World War) के दौरान घायल हुए एक अन्य सैनिक को युद्ध दिव्यांगता पेंशन देने का आदेश दिया था. लखनऊ एएफटी (AFT) ने गढ़वाल के एक सैनिक के मामले में फैसला सुनाया था. युद्ध के दिग्गज बलवंत सिंह ने सेना में तीन साल, दो महीने और 16 दिन की सेवा के बाद 11 मई, 1946 को सेवा छोड़ दी थी.

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