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छत्तीसगढ़ के गरियाबंद में बल्दी बाई का निधन, कोरोना से स्वस्थ होकर लौटी थीं घर - कोरोना से स्वस्थ होकर लौटी थीं घर

92 साल की बल्दी बाई कोरोना से स्वस्थ होकर घर तो पहुंच गई लेकिन एक दिन बाद ही हार्ट अटैक से उनका निधन हो गया. आज सुबह अचानक उनकी तबीयत बिगड़ी गई और कुछ ही देर बाद उनकी मौत हो गई.

बल्दी बाई का निधन
बल्दी बाई का निधन

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Published : May 6, 2021, 12:36 PM IST

रायपुर :राजीव गांधी को कंदमूल खिलाने वाली 92 साल की बल्दी बाई का कार्डियक अरेस्ट के बाद निधन हो गया. बल्दी बाई बुधवार को ही कोरोना से ठीक होने के बाद वापस अपने गांव कुल्हाड़ी घाट पहुंची थी. जहां आज सुबह हार्ट अटैक से उनकी मौत हो गई.

स्वास्थ्य विभाग के CMHO डॉ. एन आर नवरत्न ने बताया कि 25 अप्रैल को उनकी कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद उनका उपचार रायपुर के मेकाहारा में चल रहा था. जहां 10 दिनों के इलाज के बाद रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद डिस्चार्ज कर दिया गया. गरियाबंद जिला अस्पताल में भी उनका प्राथमिक चेकअप कर उन्हें कुल्हाड़ी घाट के लिए रवाना किया गया था. वहां भी स्वास्थ्य विभाग के चेकअप के दौरान स्थिति सामान्य थी. लेकिन सुबह 8 बजे के आसपास उनकी तबीयत खराब हुई और कार्डियक अरेस्ट के कारण उनकी मौत हो गई.

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10 दिनों में ही कोरोना से ठीक हुई थी बल्दी बाई

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को कंदमूल खिलाने वाली बल्दी बाई को जब कोरोना हुआ तो शासन-प्रशासन हरकत में आ गया था. कोरोना संक्रमित होने के तुरंत बाद कुल्हाड़ी घाट मैनपुर और गरियाबंद में इलाज के बाद स्थितियों को देखते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के निर्देश के बाद उन्हें रायपुर के मेकाहारा शिफ्ट किया गया था. जहां शुरुआत से उन्हें अच्छा उपचार मिला. विशेष उपचार के लिए शुरू से ही ICU में रखा गया था. गरियाबंद कलेक्टर लगातार मेकाहार के डॉक्टरों के संपर्क में थे और उनके स्वास्थ्य को लेकर जानकारी लेते रहते थे. इसी वजह सिर्फ 10 दिनों में ही बल्दी बाई कोरोना से ठीक हो गई थी. बल्दी बाई के ठीक होने के बाद सीएम भूपेश बघेल ने ट्वीट कर कहा था कि हौसले की कोई उम्र नहीं होती.

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पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के गोद ग्राम कुल्हाड़ी घाट में राजीव गांधी को कंदमूल खिलाने के कारण बल्दी बाई कांग्रेस के लिए एक यादगार और अविस्मरणीय महिला के रूप में जानी जाती रही हैं. यहीं वजह है कि बीच-बीच में कांग्रेस नेता बल्दी बाई से मिलने उनके गांव पहुंचते रहे हैं.

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