देहरादून: उत्तराखंड की राजधानी देहरादून वैसे को कई कारणों से जानी जाती है, लेकिन देहरादून की एक चीज है, जो उसे सबसे अलग बनाती है. दुनिया भर में देहरादून को एक नई पहचान दिलाती है, वो है भारतीय सैन्य अकादमी यानी IMA (Indian Military Academy). IMA वो जगह है जहां न सिर्फ भारतीय सेना बल्कि मित्र राष्ट्रों की सेना के लिए भी अफसर तैयार किए जाते हैं, जो अपनी मातृ भूमि की रक्षा के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने से भी पीछे नहीं हटते हैं. आज हम आपको उसी भारतीय सैन्य अकादमी के इतिहास के बारे में बताने जा रहे हैं. आईएमए की उस बिल्डिंग से आपको रूबरू कराते हैं, जिसके नीचे आईएमए से हजारों जेंटलमैन कैडेट्स पास आउट होकर भारतीय सेना में अधिकारी बने और सेना में ऊंचे पदों तक गए.
10 जून को होगी पासिंग आउट परेड: IMA की खूबसूरत बिल्डिंग अपने अंदर लंबा-चौड़ा इतिहास समेटे हुए है. आईएमए की यह बिल्डिंग कई मामलों में बेहद खास है. इसका इतिहास जितना पुराना है, उतनी ही पुरानी कहानियां भी हैं. हर साल जून और दिसंबर के दूसरे शनिवार को यहां पर पासिंग आउट परेड का आयोजन होता है. इस साल भी 10 जून को IMA पासिंग आउट परेड होने जा रही है, जिसके बाद 332 आईएमए के जेंटलमैन कैडेट्स भारतीय सेना के अधिकारी बनेंगे. जब भी कोई जवान यहां से अधिकारी बनकर निकलता है तो वो IMA की बिल्डिंग को माथा झुका कर प्रणाम जरूर करता है.
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90 सालों का इतिहास: देहरादून का IMA अपने अंदर करीब 90 सालों का इतिहास समेटे हुए है. IMA की स्थापना ब्रिटिश शासन काल में एक अक्टूबर 1932 को गई थी. तब Indian Military Academy से मात्र 40 कैडेट्स पास आउट हुए थे. हालांकि अब हर साल सैंकड़ों की संख्या में कैडेट्स पास आउट होते हैं. Indian Military Academy के 90 सालों के इतिहास पर नजर दौड़ाएं तो यहां से 63 हजार से ज्यादा जेंटलमैन कैडेट्स सेना में अफसर बने हैं.
IMA के पहले कमांडेंट: 1932 में ब्रिगेडियर एलपी कोलिंस आईएमए के पहले कमांडेंट नियुक्त हुए थे. उन्हीं के कार्यकाल के दौरान फील्ड मार्शल सैम मानेक शॉ, पाकिस्तान के सेना अध्यक्ष रहे मोहम्मद मूसा और म्यांमार के सेनाध्यक्ष स्मिथ डन भी पास आउट हुए थे. बताया जाता है कि 10 दिसंबर 1932 में पहली बार भारतीय सैन्य अकादमी का औपचारिक उद्घाटन फील्ड मार्शल सर फिलिप डब्ल्यू चैटवुड ने ही किया था. आज भी IMA की बिल्डिंग उन्हीं के नाम से पहचानी जाती है.
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आजादी के बाद इन्हें मिली पहली कमान:1947 में जब भारत ब्रिटिश हुकूमत से आजाद हुआ तो ब्रिगेडियर ठाकुर महादेव सिंह को आईएमए की जिम्मेदारी दी गई, वो आजाद भारत में आईएमए के पहले कमांडेंट बने. आजादी के बाद इस बिल्डिंग को 1949 में सुरक्षा बल अकादमी का नाम दिया गया. बाकायदा इसका एक विंग देहरादून में ही क्लेमेंटटाउन में खोला गया और उसका नाम दिया गया नेशनल डिफेंस एकेडमी.