नई दिल्ली : दिल्ली की तस्वीर बदलने वाली पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की आज 83वीं जयंती है. लंबे समय तक दिल्ली की मुख्यमंत्री बने रहने का रिकॉर्ड बनाने वालीं शीला दीक्षित ने अपने कार्यकाल में कई सारे कार्य किए. दिल्ली में मेट्रो के नेटवर्क की शरुआत हो या फिर बारापूला जैसे बड़े रोड नेटवर्क, सब उन्हीं की देन मानी जाती है.
शीला दीक्षित जितनी जिंदादिल और प्रभावशाली थीं, वह उतनी ही विनम्र और मुस्कराती रहने वाली महिला थीं. उन्हें जनता का मुख्यमंत्री या दादी मां भी कहा जाता था. 31 मार्च, 1938 को पंजाब के कपूरथला में कपूर परिवार में जन्मीं शीला दीक्षित ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से इतिहास में एमए किया था. 1962 में उनकी शादी एक राजनीतिक परिवार में हुई थी. उनके पति विनोद दीक्षित आईएएस ऑफिसर थे.
ससुर से सीखे थे राजनीति के दांवपेच
शीला दीक्षित के ससुर उमाशंकर दीक्षित उत्तर प्रदेश के दिग्गज नेताओं में से एक थे. इतना ही नहीं, वह आजादी की लड़ाई में भाग ले चुके थे और पश्चिम बंगाल के राज्यपाल भी थे. उन्हीं की छत्रछाया में शीला का राजनीतिक सफर शुरू हुआ और परवान भी चढ़ा. दीक्षित परिवार की गांधी परिवार से करीबियां नेहरू के वक्त से थीं.
शीला अपने काम की बदौलत इंदिरा गांधी की नजर में आईं और आगे चलकर संयुक्त राष्ट्र कमीशन दल की सदस्य बनाई गईं. शीला दीक्षित 1984 से 1989 तक कन्नौज लोकसभा सीट से सांसद रही थीं और 1986 से 1989 तक केंद्रीय मंत्रिमंडल का भी हिस्सा रहीं.
राष्ट्रीय राजधानी को बनाया था कर्मभूमि
शीला दीक्षित के जीवन में बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम तब हुआ, जब 1998 के संसदीय चुनाव में पूर्वी दिल्ली क्षेत्र से भाजपा के लालबिहारी तिवारी के हाथों उन्हें शिकस्त मिली. इसके बाद कांग्रेस ने उन्हें राज्य की राजनीति का चेहरा बनाया और गोल मार्केट सीट से उन्होंने विधानसभा चुनाव जीता और 1998 में ही दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं.
शीला दिक्षित ने राजधानी में अपने 15 साल के शासन के दौरान दिल्ली की तस्वीर ही बदल कर रख दी थी. इसके बाद 2010 में आयोजित हुए कॉमनवेल्थ गेम्स ने इस दिशा में काफी मदद किया था, लेकिन बाद में दीक्षित पर भ्रष्टाचार के भी कई आरोप लगे थे. साल 2012 में दिल्ली का चर्चित निर्भया कांड हुआ, जिससे दीक्षित सरकार के खिलाफ एक लहर बनी थी.