इंदौर। देश की आजादी की लड़ाई में 1857 से लेकर 1947 तक कई महान क्रांतिकारियों ने जिन शस्त्रों से लड़कर देश के लिए बलिदान दिया वे शस्त्र आज आजादी की धरोहर से कम नहीं है. इन शस्त्र के साथ लड़ने वाले क्रांतिकारी और बलिदानी तो शहीद हो गए लेकिन मालवा निमाड़ अंचल में आज भी महान क्रांतिकारियों और शासकों द्वारा अंग्रेजों से की गई लड़ाइयों में उपयोग किए गए तरह-तरह के अस्त्र शस्त्र आज भी बलिदानियों के शौर्य की कहानी बयां करते हैं.
अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति का शंखनाद:दरअसल मालवा निमाड़ में 1857 की क्रांति का प्रमुख केंद्र इंदौर, धार समेत आसपास का आदिवासी अंचल था. जहां आजादी के नायकों में टंट्या भील, भीमा नायक, ख्वाजा नायक, सीताराम कवर, रघुनाथ सिंह मंडलोई के अलावा धार के राजा बख्तावर सिंह आदि ने अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति का शंखनाद किया था. आजादी की लड़ाई में क्रांतिकारियों को लगातार होलकर और मराठा राजाओं की ओर से असंभव मदद भेजी जाती थी, उसे दौरान होलकर शासकों द्वारा भी मदद के नाम पर भेजी जाने वाली रसद (युद्ध सामग्री) के नाम पर हथियार भी भेजे जाते थे. उस दौरान जो अस्त्र-शस्त्र भेजे गए या लड़ाई में उपयोग किए गए वह होलकर शासकों द्वारा ही बाद में स्थापित किए गए. वह शस्त्र इंदौर के केंद्रीय संग्रहालय में आज भी मौजूद हैं. जिन्हें मालवा निमाड़ अंचल के क्रांतिकारी शहीदों की दुर्लभ धरोहर के रूप में आज भी सहेजा जा रहा है.
प्राचीन काल से आजाद भारत तक के हथियार:सेंट्रल म्यूजियम के प्रभारी आशुतोष महाशब्दे बताते हैं कि ''इंदौर स्थित म्यूजियम में प्राचीन काल हथियार नुमा पत्थर, पत्थर के हथौड़े, प्राचीन काल के धनुष बाण, फिर ब्रिटिश काल की बंदूकें और तरह-तरह की दुर्लभ तोप, के अलावा तीन तरह की तलवार है. राजपूती, मुगलकालीन और मराठा युग की तलवारे यहां मौजूद हैं. गोखरू बंदूक के ऊपर लगने वाली संगीन यहां मौजूद है. जो आजादी के संघर्ष के दौरान वीर क्रांतिकारी की वीरता, संघर्ष और शहादत की गवाही देते हैं. म्यूजियम के द्वार पर शहादत खान की फतेह मंसूर तोप रखी हुई है जिस पर दशकों बाद भी शहादत खान द्वारा अंकित किया गया फतेह मंसूर नाम मौजूद है.''