मथुरा :अड़ींग का इतिहास (History of adeeng) काफी गौरवपूर्ण है. यहां के राजपूतों ने 1857 की प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों को घुटने टेकने पर विवश कर दिया था. आपको बता दें, 18वीं सदी में ऐसी दो बड़ी घटनाएं हुईं जिसने अंग्रेजी सरकार को हिला कर रख दिया था. पहली घटना सन 1805 में हुई, जब अंग्रेजी फौज ने भरतपुर को चारों तरफ से घेर लिया. अंग्रेजों ने 7 बार तोपों से हमला किया. इसके बावजूद अंग्रेजों को हार का सामना करना पड़ा. इस युद्ध में अंग्रेजी सेना के 3203 सैनिक हताहत हुए थे और 8 से 10 हजार सैनिक जख्मी. मजबूर होकर अंग्रेजों को संधि करनी पड़ी थी.
दूसरी घटना मथुरा जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर अड़ींग में सन 1857 की क्रांति के समय हुई थी, जब राजपूत आंदोलनकारियों ने अपने हौसले के दम पर अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था. अंग्रेज इस कदर बौखला गए कि उन्हें छल का सहारा लेना पड़ा. आंदोलनकारियों को बातचीत के बहाने बुलाया और 80 राजपूत आंदोलनकारियों को बंधक बनाकर अड़ींग स्थित राजा फोंदामल की हवेली में सामूहिक फांसी दे दी. यह घटना आज भी इतिहास के पन्नों में दर्ज है.
जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर गोवर्धन रोड पर स्थित अड़ींग कस्बे में पुरानी हवेली है, जिसे राजा फोंदामल का महल कहा जाता था. आजकल यह खंडहर में तब्दील हो चुकी है. ब्रिटिश शासनकाल में देश आजादी की लड़ाई के लिए कई वीर सपूतों ने अपने प्राण न्योछावर कर दिए. 1857 की क्रांति में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आजादी का बिगुल फूंकने के आरोप में 80 राजपूतों को सामूहिक फांसी दे दी गई थी. जिसमें बुजुर्ग महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे. लेकिन दुख की बात है कि इन वीर सपूतों की याद में आज तक कोई शहीद स्मारक नहीं बनाया गया. कई बार आंदोलन भी हुआ, लेकिन आश्वासन के सिवा अभी तक कुछ नहीं मिला है.
क्रांतिकारियों का गढ़ था राजा फोंदामल का महल
भरतपुर के राजा सूरजमल की विरासत कई राज्यों तक फैली हुई थी. राजा सूरजमल की मृत्यु होने के बाद राजा फोंदामल ने उनकी विरासत की बागडोर संभाली. ब्रिटिश शासनकाल में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ कई बार आवाज उठाई गई लेकिन तानाशाह अंग्रेजी हुकूमत में लोगों पर बंदिशें लगाकर आवाज को दबा दिया जाता था. राजा फोंदामल का महल क्रांतिकारियों का गढ़ माना जाता था और अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ रणनीति तैयार की जाती थी.
दरअसल झांसी, ग्वालियर, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, भरतपुर, पंजाब, हरियाणा यह पूरा क्षेत्र जाट राजपूतों का गढ़ माना जाता था. क्रांतिकारियों से आर-पार की लड़ाई लड़ने के लिए रणनीति तैयार की जाती थी. रात के अंधेरों में महल के अंदर एकजुटता के साथ आवाज बुलंद की जाती थी और क्रांतिकारियों की संख्या बढ़ाने पर जोर दिया जाता था.
पुरानी हवेली में राजपूतों को दी गई सामूहिक फांसी
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की हत्या होने के बाद राजपूतों ने अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंक दिया था. राजपूत क्रांतिकारी अंग्रेज अफसरों की हत्या करके फरार हो जाते थे. अड़ींग में डुगडुगी बजाकर राजपूतों को एकजुट किया गया. 1857 मध्य जून की घटना है. सदर तहसील में आने के बाद राजपूतों को सामूहिक रूप से फांसी दे दी गई. जिसमें बुजुर्ग पुरुष, महिलाएं बच्चे भी शामिल थे. इस घटना ने उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा को हिला कर रख दिया था.
अंग्रेजों ने 1868 में सदर तहसील का दर्जा खत्म कर दिया
राजपूत परिवार को सामूहिक फांसी देने के बाद ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ चारों तरफ आवाज बुलंद होने लगी. अंग्रेजी हुकूमत ने राजपूतों पर सदर तहसील का खजाना (जिसमें मात्र पचास रुपये थे) लूटने का आरोप लगाया. फिर अंग्रेजी हाईकमान ने 1868 में सदर तहसील का दर्जा समाप्त कर दिया गया.
फांसी देने के बाद एक गर्भवती महिला बची थी