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अड़ींग में 70 राजपूत आंदोलनकारियों को दी गई थी सामूहिक फांसी, जानिए फोंदाराम हवेली का इतिहास

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हजारों-लाखों लोगों ने अपने प्राणों की आहुति देकर देश को अंग्रेजों से आजाद कराया था. भारत को आजाद हुए 75 साल हो चुके हैं. केंद्र सरकार इसे आजादी के अमृत महोत्सव के रूप में मना रही है. कई कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जा रहा है. ऐसे में वीर स्वतंत्रता सेनानियों की दास्तान दुनिया के सामने लाने की मुहिम 'ईटीवी भारत' ने शुरू की है. आज हम आपको अड़ींग (adeeng) के गौरवपूर्ण इतिहास के बारे में बता रहे हैं. यहां के राजपूतों ने अंग्रेजी सरकार को हिला कर रख दिया था. यूपी के मथुरा से खास रिपोर्ट.

अड़ींग का गौरवपूर्ण इतिहास
अड़ींग का गौरवपूर्ण इतिहास

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Published : Nov 14, 2021, 5:09 AM IST

मथुरा :अड़ींग का इतिहास (History of adeeng) काफी गौरवपूर्ण है. यहां के राजपूतों ने 1857 की प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों को घुटने टेकने पर विवश कर दिया था. आपको बता दें, 18वीं सदी में ऐसी दो बड़ी घटनाएं हुईं जिसने अंग्रेजी सरकार को हिला कर रख दिया था. पहली घटना सन 1805 में हुई, जब अंग्रेजी फौज ने भरतपुर को चारों तरफ से घेर लिया. अंग्रेजों ने 7 बार तोपों से हमला किया. इसके बावजूद अंग्रेजों को हार का सामना करना पड़ा. इस युद्ध में अंग्रेजी सेना के 3203 सैनिक हताहत हुए थे और 8 से 10 हजार सैनिक जख्मी. मजबूर होकर अंग्रेजों को संधि करनी पड़ी थी.

यूपी के मथुरा से खास रिपोर्ट

दूसरी घटना मथुरा जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर अड़ींग में सन 1857 की क्रांति के समय हुई थी, जब राजपूत आंदोलनकारियों ने अपने हौसले के दम पर अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था. अंग्रेज इस कदर बौखला गए कि उन्हें छल का सहारा लेना पड़ा. आंदोलनकारियों को बातचीत के बहाने बुलाया और 80 राजपूत आंदोलनकारियों को बंधक बनाकर अड़ींग स्थित राजा फोंदामल की हवेली में सामूहिक फांसी दे दी. यह घटना आज भी इतिहास के पन्नों में दर्ज है.

जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर गोवर्धन रोड पर स्थित अड़ींग कस्बे में पुरानी हवेली है, जिसे राजा फोंदामल का महल कहा जाता था. आजकल यह खंडहर में तब्दील हो चुकी है. ब्रिटिश शासनकाल में देश आजादी की लड़ाई के लिए कई वीर सपूतों ने अपने प्राण न्योछावर कर दिए. 1857 की क्रांति में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आजादी का बिगुल फूंकने के आरोप में 80 राजपूतों को सामूहिक फांसी दे दी गई थी. जिसमें बुजुर्ग महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे. लेकिन दुख की बात है कि इन वीर सपूतों की याद में आज तक कोई शहीद स्मारक नहीं बनाया गया. कई बार आंदोलन भी हुआ, लेकिन आश्वासन के सिवा अभी तक कुछ नहीं मिला है.

क्रांतिकारियों का गढ़ था राजा फोंदामल का महल
भरतपुर के राजा सूरजमल की विरासत कई राज्यों तक फैली हुई थी. राजा सूरजमल की मृत्यु होने के बाद राजा फोंदामल ने उनकी विरासत की बागडोर संभाली. ब्रिटिश शासनकाल में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ कई बार आवाज उठाई गई लेकिन तानाशाह अंग्रेजी हुकूमत में लोगों पर बंदिशें लगाकर आवाज को दबा दिया जाता था. राजा फोंदामल का महल क्रांतिकारियों का गढ़ माना जाता था और अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ रणनीति तैयार की जाती थी.

दरअसल झांसी, ग्वालियर, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, भरतपुर, पंजाब, हरियाणा यह पूरा क्षेत्र जाट राजपूतों का गढ़ माना जाता था. क्रांतिकारियों से आर-पार की लड़ाई लड़ने के लिए रणनीति तैयार की जाती थी. रात के अंधेरों में महल के अंदर एकजुटता के साथ आवाज बुलंद की जाती थी और क्रांतिकारियों की संख्या बढ़ाने पर जोर दिया जाता था.

पुरानी हवेली में राजपूतों को दी गई सामूहिक फांसी

झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की हत्या होने के बाद राजपूतों ने अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंक दिया था. राजपूत क्रांतिकारी अंग्रेज अफसरों की हत्या करके फरार हो जाते थे. अड़ींग में डुगडुगी बजाकर राजपूतों को एकजुट किया गया. 1857 मध्य जून की घटना है. सदर तहसील में आने के बाद राजपूतों को सामूहिक रूप से फांसी दे दी गई. जिसमें बुजुर्ग पुरुष, महिलाएं बच्चे भी शामिल थे. इस घटना ने उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा को हिला कर रख दिया था.

अंग्रेजों ने 1868 में सदर तहसील का दर्जा खत्म कर दिया
राजपूत परिवार को सामूहिक फांसी देने के बाद ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ चारों तरफ आवाज बुलंद होने लगी. अंग्रेजी हुकूमत ने राजपूतों पर सदर तहसील का खजाना (जिसमें मात्र पचास रुपये थे) लूटने का आरोप लगाया. फिर अंग्रेजी हाईकमान ने 1868 में सदर तहसील का दर्जा समाप्त कर दिया गया.

फांसी देने के बाद एक गर्भवती महिला बची थी

राजपूतों का वंश खत्म करने के लिए अंग्रेजी हुकुमत ने राजपूतों को सामूहिक फांसी दे दी थी. इस घटना के बाद मात्र एक महिला राजपूत परिवार में गर्भवती थी, जिसका नाम हर देवी था. वह जीवित रह गईं. पहली पीढ़ी ढोकला सिंह, दूसरी पीढ़ी सीताराम, तीसरी पीढ़ी गंभीरा सिंह, चौथी पीढ़ी सीताराम उसके बाद बाबा हरदेव सिंह फकीरचंद पूर्वज हुए. छठी पीढ़ी के बुजुर्ग पदम सिंह पूर्वजों की याद करके आंसू छलक जाते हैं.

इतिहासकार शत्रुघ्न शर्मा बताते हैं कि झांसी, ग्वालियर, मुरैना, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब राजपूतों का गढ़ माना जाता था. राजस्थान के भरतपुर के राजा सूरजमल की मृत्यु हो जाने के बाद राजा फोंदामल ने विरासत संभाली. ब्रिटिश हुकूमत कई बार बृज क्षेत्र के राजाओं पर अपना अंकुश लगाना चाहते थे, लेकिन कुछ राजाओं ने ब्रिटिश हुकूमत के अधीनस्थ हो गए. लेकिन राजा फोंदामल ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आवाज बुलंद की.. 1857 क्रांति में अंग्रेजों द्वारा राजपूत परिवार को सामूहिक फांसी दे दी गई. घटना के बाद अंग्रेज हाईकमान ने 1868 मे अड़ींग में सदर तहसील का दर्जा खत्म करके मथुरा में सदर तहसील की स्थापना की.

शहीद स्मारक की आस अधूरी

पुरानी हवेली जो आजकल खंडहर में तब्दील हो चुकी है. शहीद स्मारक बनवाने के लिए कई बार राजपूत परिवारों ने धरना प्रदर्शन और आंदोलन किए, लेकिन आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला. जिला प्रशासन से लेकर राजनेताओं तक किसी ने दिलचस्पी नहीं दिखाई. पुरानी हवेली 15 एकड़ में फैले राजपूतों की याद संजोय हुए हैं.

स्थानीय निवासी खन्ना सैनी बताते हैं कि पुरानी हवेली में राजपूतों को सामूहिक फांसी दे दी गई थी. बताया जाता है कि पुरानी हवेली राजा फोंदामल का राजमहल हुआ करता था. 1857 की क्रांति में अंग्रेजों के खिलाफ राजपूतों ने लड़ाई लड़ी थी. अंग्रेजों ने राजपूतों पर आरोप लगाया था कि सदर तहसील का खजाना लूट लिया था. इसके चलते राजपूत परिवार के 80 लोगों को एक साथ फांसी पर लटका दिया गया था. शहीद स्मारक बनाने की मांग आज भी अधूरी है.

छठवीं पीढ़ी के पदम सिंह ने उठाई मांग

राजपूत पूर्वजों की छठवीं पीढ़ी के पदम सिंह बताते हैं कि 1857 की क्रांति में अंग्रेजों के खिलाफ राजपूतों ने बगावत की थी. पुरानी हवेली में बैठकर क्रांतिकारी अंग्रेजों के खिलाफ देश आजाद कराने के लिए रणनीति तैयार करते थे. जब झांसी में अंग्रेजों ने रानी लक्ष्मीबाई की हत्या की थी तो राजपूत बेल्ट के लोगों ने एकजुटता के साथ अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी. इससे गुस्साए अंग्रेजों ने पुरानी हवेली में बुलाकर राजपूतों को सामूहिक रूप से फांसी दे दी. इस परिसर को ऐतिहासिक और शहीद स्मारक बनाने की मांग को लेकर कई बार धरना प्रदर्शन किया गया. नेताओं से लेकर अधिकारियों के चक्कर काटे, लेकिन किसी ने भी शहीद स्मारक और ऐतिहासिक धरोहर का दर्जा नहीं दिलाया.

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