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भारतीय ऋषियों की विरासत है आयुर्वेद, जानें इस दिन से जुड़ी रोचक बातें - धन्वंतरि जयंती के मौके पर आयुर्वेद दिवस

देशभर में आज राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस मनाया जा रहा है. इसकी शुरुआत साल 2016 में हुई थी. इस साल देश पांचवा आयुर्वेद दिवस मना रहा है. बता दें कि आयुर्वेद सालों से हमारे अच्छे स्वास्थ्य में अपनी भूमिका निभाता आ रहा है. ऐसे में आयुर्वेद को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस मनाया जाता है. आइए जानते हैं विस्तार से..

आयुर्वेद दिवस
आयुर्वेद दिवस

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Published : Nov 13, 2020, 2:16 PM IST

Updated : Nov 13, 2020, 2:22 PM IST

हैदराबाद: आयुर्वेद मानवता की मूल स्वास्थ्य परंपरा है. यह केवल एक चिकित्सा प्रणाली नहीं है, बल्कि प्रकृति के साथ हमारे संबंध की पहचान है. यह स्वास्थ्य सेवा की एक प्रलेखित प्रणाली है, जहां बीमारी की रोकथाम और स्वास्थ्य को बढ़ावा देने पर विचार किया जाता है.

उद्देश्य
आयुर्वेद दिवस का उद्देश्य आयुर्वेद और उसके अद्वितीय उपचार सिद्धांतों की शक्तियों पर ध्यान केंद्रित करना है. इसके अलावा इस मकसद आयुर्वेद की क्षमता का उपयोग करके रोग और संबंधित मृत्यु दर को कम करने की दिशा में काम करना और समाज में चिकित्सा के आयुर्वेदिक सिद्धांतों को बढ़ावा देना भी है.

इतिहास और अहमियत
हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान धन्वंतरि को देवताओं का चिकित्सक माना जाता है और इसलिए हर साल धन्वंतरि जयंती पर आयुर्वेद दिवस मनाया जाता है. इस महामारी वर्ष में यह दिवस 13 नवंबर 2020 को मनाया जाएगा. 2016 के बाद से आयुर्वेद दिवस हर वर्ष 13 नवंबर को मनाया जाता है.

चरक संहिता
चरक संहिता, जो कि 300 ईसा पूर्व के दौरान एक अनुरागी चिकित्सक चरक द्वारा लिखी गई थी, माना जाता है कि यह आयुर्वेद पर सबसे प्राचीन और महत्वपूर्ण प्राचीन लेखकीय लेखों में से एक है. उनके प्रयासों के कारण उन्हें कभी-कभी भारतीय चिकित्सा के पिता के रूप में जाना जाता है.

चरक के अनुसार हमारे शरीर का कोई भी रोग स्थायी नहीं है. यह सब गंदे भोजन और प्रदूषित वातावरण से आता है. चरक ने पहले चयापचय और पाचन की अवधारणा को पेश किया गया था. चरक के अनुसार रोग केवल तीन प्रकार के होते हैं, वात, पित्त और कफ यदि आप इन तीन रोगों पर जीत पा लेते हैं, तो आप पूरी तरह से स्वस्थ जीवन जी सकते हैं.

आयुर्वेद क्या है और इसका क्या यह महत्व है?
आयुर्वेद अभी तक पारंपरिक रुप से भारतीय औषधीय प्रणाली, दार्शनिक और प्रयोगात्मक आधार के साथ सबसे प्राचीन जीवित परंपराएं बनी हुई है.यह स्वास्थ्य और व्यक्तिगत चिकित्सा के लिए एक समग्र दृष्टिकोण का विज्ञान है.

  • यह एक पूर्ण चिकित्सा प्रणाली के रूप में जाना जाती है,जिसमें शारीरिक, मनोवैज्ञानिक, दार्शनिक, नैतिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य शामिल थे.
  • यह बाइबिल के पूर्व काल से भारतीय उपमहाद्वीप में प्रचलित एक स्वदेशी जातीय चिकित्सा प्रणाली है.
  • यह औषधीय पौधों और खनिजों से प्राप्त प्राकृतिक उपचारों का उपयोग करके स्वास्थ्य और रोग के लिए प्रणाली की समग्र शक्ति है.
  • आयुर्वेद, जीवन का विज्ञान होने के नाते, स्वस्थ और खुश रहने के लिए प्रकृति के उपहारों को प्रदान करता है. आयुर्वेद मनुष्य को स्वस्थ जीवन जीने में मदद करता है. यह पौधों पर आधारित विज्ञान है
  • प्रमाण कहते हैं कि आयुर्वेद में कैंसर, मधुमेह, गठिया और अस्थमा जैसी कई पुरानी बीमारियों के इलाज के इलाज में कारगर है. जिसका इलाज आधुनिक चिकित्सा पद्धति से संभव नहीं है.
  • आयुर्वेद में, प्रत्येक कोशिका को स्वाभाविक रूप से शुद्ध बुद्धिमत्ता की एक अनिवार्य अभिव्यक्ति माना जाता है, जिसे स्व-चिकित्सा विज्ञान कहा जाता है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दुनिया की आबादी का लगभग 70 से 80 फीसदी लोग गैर पंरापरामत दवाओं पर निर्भर हैं, जो मुख्य रूप से उनके स्वास्थ्य देखभाल में हर्बल स्रोतों पर निर्भर है. आयुर्वेद का लक्ष्य जीवन को संरक्षित करना और स्वास्थ्य और कल्याण को बहाल करना है.

आधुनिक औषधीय प्रणाली और आयुर्वेद
आधुनिक औषधीय प्रणाली से इलाज बहुत महंगा पड़ रहा है, जिसका वहन लोगों पर भारी पड़ रहा है, जबकि आयुर्वेद से इलाज सस्ता पड़ता है. भारत जैसे आर्थिक रूप से गरीब देशों और पश्चिमी देशों में समस्याग्रस्त होने के कारण कई साइड इफेक्ट्स के कारण नशीली दवाओं पर आधारित दवाएं अप्रभावी हो रही हैं.

आधुनिक दवाओं को इस्तेमाल भारत जैसे आर्थिक रूप से गरीब देशों के लोगों के लिए महंगा पड़ रहा है. इतना ही नहीं पश्चिम देशों के लिए आधुनिक दवाओं के साइड इफेक्ट्स के कारण दवाएं अभावित साबित हो रही है.

कोरोना और आयुर्वेद
पूरी दुनिया कोरोना महामारी से प्रभावित है. इस वायरस से निबटने के लिए शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होना अत्यंत आवश्यक है. बात जब रोग प्रतिरोधक बढ़ाने का आती है तो आयुर्वेद इसमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. हालांकि पूरी दुनिया कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने में जुटी है, लेकिन अब तक वैक्सीन नहीं बन पाई है. इस समय कोरोना से बचने लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी होनी चाहिए. जब प्रतिरक्षा को बढ़ावा देने की बात आती है तो प्राकृतिक तरीके से आयुर्वेद का कोई विकल्प नहीं है. यह प्रतिरक्षा में सुधार के लिए सबसे विश्वसनीय और प्रभावी चिकित्सा प्रणाली है.

सामान्य उपाय

  • पूरे दिन गर्म पानी पिएं.
  • आयुष मंत्रालय (#YOGAatHome #StayHome #StaySafe) की सलाह के अनुसार योगासन, प्राणायाम और कम से कम 30 मिनट के लिए दैनिक अभ्यास करें.
  • खाना पकाने में हल्दी (हल्दी), जीरा (जीरा), धनिया (धनिया) और लहसून (लहसुन) जैसे मसालों का उपयोग करने के लिए कहा जाता है.

रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के उपाय

सुबह च्यवनप्राश 10gm (1tsf) लें. मधुमेह रोगियों को शुगर फ्री च्यवनप्राश लेना चाहिए.

तुलसी (तुलसी), दालचीनी (दालचीनी), कालीमिर्च (काली मिर्च), शुंठी (सूखी अदरक) और मुनक्का (किशमिश) से बना हर्बल चाय / काढ़ा (कढ़ा) दिन में एक या दो बार पिएं. यदि आवश्यक हो तो गुड़ (प्राकृतिक चीनी) और / या ताजा नींबू का रस का भी उपयोग करें.

गोल्डन मिल्क - 50 मिली गर्म दूध में आधा चम्मच हल्दी (हल्दी) पाउडर का पाउडर मिलाएं और इसे दिन में एक से दो बार पिएं.

नाक का अनुप्रयोग- तिल के तेल / नारियल का तेल या घी को में सुबह और शाम नाक में लगाएं.

ऑयल पुलिंग थेरेपी - मुंह में एक टेबल स्पून तिल या नारियल तेल लें. नहीं पीते हैं, दो से तीन मिनट के लिए मुंह में घुमाएं और इसे थूक दें. इसके बाद गर्म पानी से कुल्ला करें. यह दिन में एक या दो बार किया जा सकता है.

सूखी खांसी / गले में खराश के दौरान
ताजे पुदीना (पुदीना) के पत्तों या अजवाईन (कैरवे के बीजों) के साथ स्टीम इनहेलेशन का अभ्यास दिन में एक बार किया जा सकता है.

लौंग पाउडर को प्राकृतिक चीनी / शहद के साथ मिलाकर दिन में 2-3 बार खांसी या गले में जलन होने पर लिया जा सकता है.

आयुर्वेदिक उपायों से न केवल एक कोविड को रोकने में मदद करती है, बल्कि पोस्ट कोविड की जटिलताओं को भी दूर करने में सहायक है, जैसा कि आयुष मंत्रालय और केंद्र सरकार ने कहा है. कोरोना काल में आयुर्वेदिक उत्पादों की मांग बढ़ी है. ये हमेशा से स्थापित सत्य रहा है कि भारत के पास आरोग्य से जुड़ी कितनी बड़ी विरासत है. लेकिन ये भी उतना ही सही है कि ये ज्ञान ज्यादातर किताबों में, शास्त्रों में रहा है और थोड़ा-बहुत दादी-नानी के नुस्खों में. इस ज्ञान को आधुनिक आवश्यकताओं के अनुसार विकसित किया जाना आवश्यक है.

Last Updated : Nov 13, 2020, 2:22 PM IST

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