जयपुर :विश्व धरोहर के रूप में पहचाने जाने वाले भरतपुर के केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान की पहचान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर है. केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान को यह पहचान यहां आने वाले साइबेरियन सारस और तमाम प्रवासी पक्षियों की वजह से मिली है. साइबेरियन सारस ने भले ही बीते 20 साल से केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान से मुंह मोड़ लिया हो, लेकिन इनका नाता घना बर्ड सैंक्चुरी से 500 साल पुराना है. बता दें, करीब 500 साल पहले मुगल सम्राट जहांगीर के चित्रकार उस्ताद मंसूर ने घना में आने वाले साइबेरियन सारस का संभवतः सबसे पहला चित्र बनाया था.
उस्ताद मंसूर ने बनाया सारस का पहला चित्र
पक्षी प्रेमी लक्ष्मण सिंह ने बताया कि भरतपुर केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान से साइबेरियन सारस का 4 से 5 शताब्दी पुराना रिश्ता है. संभवत साइबेरियन सारस उससे पहले से भी भरतपुर के केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में आते रहे होंगे, लेकिन सबसे पुराना प्रमाण जहांगीरनामा पुस्तक में मिलता है. मुगल सम्राट जहांगीर के समय में उनके दरबारी चित्रकार उस्ताद मंसूर ने (साल 1590-1624) साइबेरियन सारस का सबसे पहला चित्र बनाया था. केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान से साइबेरियन सारस के जुड़ाव का इतिहास में सबसे पुराना प्रमाण संभवत यही है.
उस्ताद मंसूर का पक्षियों से जुड़ाव
पक्षी प्रेमी लक्ष्मण सिंह ने बताया कि मुगल सम्राट जहांगीर को पक्षियों से काफी प्रेम था. उस वक्त मुगल सल्तनत की राजधानी आगरा हुआ करती थी और राजपूताना (वर्तमान राजस्थान) आने जाने के लिए भरतपुर और बयाना होकर गुजरना होता था. उसी दौरान उस्ताद मंसूर ने यहां साइबेरियन सारस को देखा और उसका चित्र बनाया, यहां प्रवास के दौरान उस्ताद मंसूर ने साइबेरियन सारस के अलावा और भी पक्षियों के चित्र भी बनाए.