हैदराबाद : राजाजी के नाम से लोकप्रिय सी. राजगोपालाचारी (C. Rajagopalachari) का जन्म 10 दिसंबर, 1878 को मद्रास (अब चेन्नई) में हुआ था. राजगोपालाचारी ने स्वतंत्र पार्टी की स्थापना की थी, जो भारत में पहली राजनीतिक पार्टी थी जिसने खुले तौर पर बाजार के अनुकूल आर्थिक नीतियों का समर्थन किया था.
राजगोपालाचारी एक लेखक, राजनीतिज्ञ और वकील थे, उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी. वह जवाहरलाल नेहरू और महात्मा गांधी के करीब थे. गांधीजी ने उन्हें 'मेरा विवेक रक्षक' (my conscience keeper) कहा था. राजगोपालाचारी को 1955 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया था. समाज सुधारक, गांधीवादी राजनीतिज्ञ चक्रवर्ती राजगोपालाचारी को आधुनिक भारत का 'चाणक्य' कहा जाता है.
प्रारंभिक जीवन
राजगोपालाचारी ने सन् 1891 में मैट्रिक पास किया. 1894 में, उन्होंने बैंगलोर के सेंट्रल कॉलेज से बीए की डिग्री हासिल की. इसके बाद उन्होंने मद्रास (अब चेन्नई) में प्रेसीडेंसी कॉलेज से कानून की पढ़ाई की और 1900 में सेलम में वकालत शुरू की. यहीं से उन्होंने राजनीति में कदम रखा. सन् 1911 में, वह सेलम नगर पालिका के सदस्य बने. साल 1916 में, उन्होंने तमिल साइंटिफिक टर्म्स सोसाइटी का गठन किया. इस संगठन ने रसायन विज्ञान, भौतिकी, गणित, खगोल विज्ञान और जीव विज्ञान के वैज्ञानिक शब्दों का सरल तमिल भाषा में अनुवाद किया.
राजगोपालाचारी को नमन करते हुए पीएम मोदी (फाइल फोटो) राजगोपालाचारी सन् 1917 में सेलम नगर पालिका के अध्यक्ष बने और दो साल तक पद पर रहे. उनके कार्यकाल के दौरान ही नगर पालिका को पहला दलित सदस्य मिला, जिसमें राजगोपालाचारी की बड़ी भूमिका थी.
राजनीतिक करियर
स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेते हुए राजगोपालाचारी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए और कानूनी सलाहकार के रूप में काम किया. उन्होंने 1917 में देशद्रोह के आरोपों का सामना कर रहे स्वतंत्रता सेनानी पी. वरदराजुलु नायडू (P. Varadarajulu Naidu) की कोर्ट में पैरवी की. राजगोपालाचारी को 1937 में मद्रास प्रेसीडेंसी के पहले प्रधानमंत्री के रूप में चुना गया था.
1939 में, राजगोपालाचारी ने छुआछूत और जातिवाद को खत्म करने की दिशा में कार्य किया और मद्रास मंदिर प्रवेश प्राधिकरण एंव क्षतिपूर्ति अधिनियम (Madras Temple Entry Authorisation and Indemnity Act) लागू किया. इस कानून के तहत दलितों को मंदिरों में प्रवेश की अनुमति दी गई. देश के बंटवारे के समय, उन्हें पश्चिम बंगाल का राज्यपाल नियुक्त किया गया था.
1947 में, अंतिम ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन के जाने के बाद उन्हें स्वतंत्र भारत का पहला गवर्नर जनरल चुना गया था, हालांकि यह पद अस्थायी था. इसलिए वह भारत के अंतिम गवर्नर जनरल भी थे.
स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका
सी. राजगोपालाचारी ने साल 1906 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में भाग लिया. उसके बाद, उनकी राष्ट्रीय राजनीति में सक्रियता बढ़ गई. उन्होंने रॉलेट एक्ट के खिलाफ आंदोलन में भाग लिया. इस दौरान वह महात्मा गांधी के संपर्क में आए और उनके अनुयायी बन गए. राजगोपालाचारी ने वकालत छोड़ दी और असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए. 1921 में, उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के महासचिव की जिम्मेदारी दी गई. उन्होंने कांग्रेस पार्टी में 'नो चेंजर्स' समूह का नेतृत्व किया, जो शाही और प्रांतीय विधान परिषदों में प्रवेश के खिलाफ थे. उन्होंने वैकम सत्याग्रह (Vaikom Satyagraha) में भी भाग लिया था.
सरदार पटेल के साथ राजगोपालाचारी राजगोपालाचारी 1946 से 1947 तक, जवाहरलाल नेहरू की अंतरिम सरकार में उद्योग, आपूर्ति, शिक्षा और वित्त मंत्री थे. 1947 में, उन्हें पश्चिम बंगाल का पहला राज्यपाल नियुक्त किया गया. नवंबर 1947 में कुछ दिनों के लिए उन्हें भारत का कार्यवाहक गवर्नर-जनरल बनाया गया. जून 1948 से 26 जनवरी 1950 तक, उन्होंने भारत के गवर्नर-जनरल के रूप में कार्य किया.
उन्होंने दिसंबर 1950 से 10 महीने तक देश के गृह मंत्री के रूप में भी कार्य किया. इस समय, उनके और नेहरू के बीच मतभेद पैदा हो गए और उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और मद्रास लौट आए. विधानसभा में कांग्रेस के अल्पमत में आने के बावजूद 1952 में उन्हें तत्कालीन मद्रास राज्य का मुख्यमंत्री चुना गया था.
तेलुगु राज्य आंध्र प्रदेश के लिए आंदोलन
सीएम के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान, अलग आंध्र प्रदेश राज्य के लिए आंदोलन हुआ था, लेकिन राजगोपालाचारी ने झुकने से इनकार कर दिया. उनकी सरकार तब और अलोकप्रिय हो गई जब उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा की विवादास्पद संशोधित प्रणाली शुरू की. आखिरकार उन्होंने 1954 में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया.
स्वतंत्र पार्टी का गठन
सी. राजगोपालाचारी ने 1957 में कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया. 1959 में, उन्होंने स्वतंत्र पार्टी की स्थापना की. वह नेहरू के नेतृत्व वाली कांग्रेस के वामपंथी झुकाव के खिलाफ थे और उदार नीतियों की वकालत करते थे. वह तत्कालीन सोवियत संघ (अब रूस) के समाजवाद के पक्ष में नहीं थे और उन्होंने 'लाइसेंस-परमिट राज' शब्द भी गढ़ा.
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साल 1965 में, जब भारत सरकार ने हिंदी को आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाया, राजगोपालाचारी ने ईवीआर पेरियार और सीएन अन्नादुरई (C. N. Annadurai) जैसे अन्य नेताओं के साथ इस कदम का विरोध किया. 1967 में, उनकी स्वतंत्र पार्टी ने DMK और फॉरवर्ड ब्लॉक के साथ गठबंधन किया और 30 वर्षों में पहली बार मद्रास में कांग्रेस को बाहर कर दिया. सीएन अन्नादुरई तब सीएम बने थे. 1967 के आम चुनावों में उनकी पार्टी लोकसभा में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के रूप में भी उभरी. 25 दिसंबर 1972 को 94 वर्ष की उम्र में राजगोपालाचारी का निधन हो गया.