लखनऊ :हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच (Lucknow Bench of the High Court) ने वर्ष 1991 में पीलीभीत के 10 सिखों को कथित एनकाउंटर में मार दिए जाने के मामले में 43 पुलिसकर्मियों को गैर इरादतन हत्या का दोषी करार दिया है. न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट द्वारा पुलिसकर्मियों को हत्या में दोषसिद्ध किए जाने व आजीवन कारावास की सजा सुनाए जाने वाले 4 अप्रैल 2016 के निर्णय को निरस्त करते हुए, उक्त पुलिसकर्मियों को सात-सात साल के कारावास की सजा सुनाई है.
यह आदेश न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति सरोज यादव (Justice Ramesh Sinha and Justice Saroj Yadav) की खंडपीठ ने अभियुक्त पुलिसकर्मियों देवेंद्र पांडेय व अन्य की ओर से दाखिल अपीलों को आंशिक तौर पर मंजूर करते हुए पारित किया. अपीलार्थियों की ओर से दलील दी गई थी कि कथित एनकाउंटर में मारे गए मृतकों में से कई का लंबा आपराधिक इतिहास था. कहा गया कि यही नहीं वे खालिस्तान लिब्रेशन फ्रंट नामक आतंकी संगठन के सदस्य भी थे. कहा गया कि मृतकों में बलजीत सिंह उर्फ पप्पू, जसवंत सिंह, हरमिंदर सिंह उर्फ मिंटा, सुरजन सिंह उर्फ बिट्टू व लखविंदर सिंह के खिलाफ हत्या, लूट व टाडा आदि मामले दर्ज थे.
179 पेज में कोर्ट ने सुनाया फैसलाःहालांकि इस बिंदु पर न्यायालय ने अपने 179 पृष्ठों के निर्णय में कहा है कि मृतकों में से कुछ का कोई आपराधिक इतिहास नहीं था. ऐसे में निर्दोषों को आतंकियों के साथ मार देना स्वीकार नहीं किया जा सकता. न्यायालय ने आगे कहा कि इस मामले में अपीलार्थियों और मृतकों के बीच कोई दुश्मनी नहीं थी. अपीलार्थी सरकारी सेवक थे और उनका उद्देश्य कानून व्यवस्था बनाए रखने का था. न्यायालय ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि अपीलायर्थियों ने इस मामले में अपनी शक्तियों का आवश्यकता से अधिक इस्तेमाल किया, लेकिन उन्होंने यह इस विश्वास के साथ किया कि वे अपने विधिपूर्ण और आवश्यक दायित्व का निर्वहन कर रहे थे. न्यायालय ने कहा कि इन परिस्थितियों में अपीलार्थियों को आईपीसी की धारा 302 में नहीं, बल्कि सिर्फ धारा 304 पार्ट 1 में दोषी करार दिया जा सकता है.